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'सरकार का बजट हो रहा बर्बाद, आदिवासी भाषा से अंजान को न बनाएं टीचर', विधायक की केन्द्र से मांग - kamleshwar dodiyar letter Jual Oram

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Jul 21, 2024, 1:55 PM IST

रतलाम के सैलाना से विधायक कमलेश्वर डोडियार ने आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासी भाषा और संस्कृति के जानकार शिक्षकों की नियुक्ति की मांग की है. उन्होंने इस संबंध में भारत सरकार के जनजातीय मंत्री को पत्र लिखा है.

MLA DEMAND TRIBAL LANGUAGE TEACHER
कमलेश्वर डोडियार ने केन्द्रीय मंत्री को लिखा पत्र (ETV Bharat)

रतलाम: भारतीय आदिवासी पार्टी के मध्य प्रदेश में एकमात्र विधायक कमलेश्वर डोडियार ने भील प्रदेश के बाद आदिवासी बोली, भाषा और संस्कृति के मुद्दे को उठाया है. सैलाना विधायक कमलेश्वर डोडियार ने भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री जुएल उरांव और मंत्रालय सचिव को पत्र लिखकर आदिवासी बजट से संचालित देश भर के एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की योग्यता में जनजातीय बोली, भाषा और संस्कृति संबंधी ज्ञान होने की मांग की है.

सैलाना विधायक ने सरकार से की मांग (ETV Bharat)

'शिक्षकों को आदिवासी भाषा आना जरुरी'
रतलाम जिले के सैलाना से विधायक कमलेश्वर डोडियार ने आदिवासी मामलों के केंद्रीय मंत्री को पत्र लिखा है. डोडियार ने केंद्रीय मंत्री को लिखे पत्र में बताया कि ''अध्यापकों और अन्य स्टाफ की नियुक्ति नेशनल एजुकेशन सोसायटी फॉर ट्राइबल स्टूडेन्ट्स (NEST) द्वारा केन्द्रीय स्तर की परीक्षा के माध्यम से की जा रही है. जिसमें अंग्रेजी और हिन्दी का ज्ञान आवश्यक हैं. शिक्षकों की योग्यता में आदिवासी भाषाओं और संस्कृति को कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है और ना ही अलग-अलग राज्यों में बोली जाने वाली भाषा का प्रावधान है. जिस वजह से आदिवासी बच्चों को अपनी मातृबोली या भाषा में शिक्षा नहीं मिल पा रही है जिससे उन्हें पढ़ाई में मुश्किलें आ रही हैं.''

स्टूडेंट और टीचर के बीच हो जाता है कम्यूनिकेशन गैप
कमलेश्वर डोडियार ने भारत सरकार से मांग करते हुए लिखा कि, ''नेशनल एजुकेशन सोसायटी फॉर ट्राइबल स्टूडेन्ट्स द्वारा चयनित शिक्षक और अन्य स्टॉफ अलग-अलग राज्यों से अलग-अलग बोली, भाषा और संस्कृति से आते हैं. ऐसी स्थिति में शिक्षक और छात्रों के बीच कम्युनिकेशन गैप हो जाता है, जिससे आदिवासी छात्रों का भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है. आदिवासी बच्चों को उन्हीं की बोली, भाषा और संस्कृति में समझने वाले शिक्षकों की आवश्यकता है. यदि शिक्षक आदिवासी बोली और संस्कृति नहीं जानता है तो वह छात्रों को अच्छी शिक्षा देने में असमर्थ होगा. विधायक ने भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री से आदिवासी छात्रों के स्कूलों में केवल उन्हीं शिक्षकों की नियुक्ति किए जाने की मांग की है जो आदिवासी बोली भाषा और संस्कृति को समझते हैं.''

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गुरुजी की जातिवादी जेहनियत, बच्चों से नफरत ऐसी कि सुनकर मां-बाप का फट गया कलेजा

'बजट राशि हो रही है बर्बाद'
विधायक डोडियार ने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि, ''भारत सरकार द्वारा जारी संविधान के अनुच्छेद 275 की बजट राशि बर्बाद होगी अगर आदिवासी बोली, भाषा और संस्कृति की समझ वाले शिक्षक एकलव्य आवासीय विद्यालयों में भर्ती नहीं किए जायेंगे. आदिवासियों के लिए इस बजट राशि का सही उपयोग हो इसके लिए आवश्यक है कि आदिवासी छात्रों के विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति उनके आदिवासी बोली, भाषा एवं संस्कृति के ज्ञान के आधार पर की जानी चाहिए.'' उन्होंने चीन का भी उदाहरण देते हुए बताया कि, ''चीन में सभी बच्चों को चीनी भाषा में शिक्षा दी जाती है, जिससे उन्हें पढ़ाई में किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं आती.''

रतलाम: भारतीय आदिवासी पार्टी के मध्य प्रदेश में एकमात्र विधायक कमलेश्वर डोडियार ने भील प्रदेश के बाद आदिवासी बोली, भाषा और संस्कृति के मुद्दे को उठाया है. सैलाना विधायक कमलेश्वर डोडियार ने भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय के केंद्रीय मंत्री जुएल उरांव और मंत्रालय सचिव को पत्र लिखकर आदिवासी बजट से संचालित देश भर के एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की योग्यता में जनजातीय बोली, भाषा और संस्कृति संबंधी ज्ञान होने की मांग की है.

सैलाना विधायक ने सरकार से की मांग (ETV Bharat)

'शिक्षकों को आदिवासी भाषा आना जरुरी'
रतलाम जिले के सैलाना से विधायक कमलेश्वर डोडियार ने आदिवासी मामलों के केंद्रीय मंत्री को पत्र लिखा है. डोडियार ने केंद्रीय मंत्री को लिखे पत्र में बताया कि ''अध्यापकों और अन्य स्टाफ की नियुक्ति नेशनल एजुकेशन सोसायटी फॉर ट्राइबल स्टूडेन्ट्स (NEST) द्वारा केन्द्रीय स्तर की परीक्षा के माध्यम से की जा रही है. जिसमें अंग्रेजी और हिन्दी का ज्ञान आवश्यक हैं. शिक्षकों की योग्यता में आदिवासी भाषाओं और संस्कृति को कोई महत्व नहीं दिया जा रहा है और ना ही अलग-अलग राज्यों में बोली जाने वाली भाषा का प्रावधान है. जिस वजह से आदिवासी बच्चों को अपनी मातृबोली या भाषा में शिक्षा नहीं मिल पा रही है जिससे उन्हें पढ़ाई में मुश्किलें आ रही हैं.''

स्टूडेंट और टीचर के बीच हो जाता है कम्यूनिकेशन गैप
कमलेश्वर डोडियार ने भारत सरकार से मांग करते हुए लिखा कि, ''नेशनल एजुकेशन सोसायटी फॉर ट्राइबल स्टूडेन्ट्स द्वारा चयनित शिक्षक और अन्य स्टॉफ अलग-अलग राज्यों से अलग-अलग बोली, भाषा और संस्कृति से आते हैं. ऐसी स्थिति में शिक्षक और छात्रों के बीच कम्युनिकेशन गैप हो जाता है, जिससे आदिवासी छात्रों का भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है. आदिवासी बच्चों को उन्हीं की बोली, भाषा और संस्कृति में समझने वाले शिक्षकों की आवश्यकता है. यदि शिक्षक आदिवासी बोली और संस्कृति नहीं जानता है तो वह छात्रों को अच्छी शिक्षा देने में असमर्थ होगा. विधायक ने भारत सरकार के केंद्रीय मंत्री से आदिवासी छात्रों के स्कूलों में केवल उन्हीं शिक्षकों की नियुक्ति किए जाने की मांग की है जो आदिवासी बोली भाषा और संस्कृति को समझते हैं.''

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'बजट राशि हो रही है बर्बाद'
विधायक डोडियार ने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि, ''भारत सरकार द्वारा जारी संविधान के अनुच्छेद 275 की बजट राशि बर्बाद होगी अगर आदिवासी बोली, भाषा और संस्कृति की समझ वाले शिक्षक एकलव्य आवासीय विद्यालयों में भर्ती नहीं किए जायेंगे. आदिवासियों के लिए इस बजट राशि का सही उपयोग हो इसके लिए आवश्यक है कि आदिवासी छात्रों के विद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति उनके आदिवासी बोली, भाषा एवं संस्कृति के ज्ञान के आधार पर की जानी चाहिए.'' उन्होंने चीन का भी उदाहरण देते हुए बताया कि, ''चीन में सभी बच्चों को चीनी भाषा में शिक्षा दी जाती है, जिससे उन्हें पढ़ाई में किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं आती.''

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