देहरादून: दुर्लभ माने जाने वाले भारतीय सिवेट की मौजूदगी मालसी रेंज में मिली है. इस क्षेत्र में कई जगह कैमरा ट्रैप लगाए गए हैं. ताकि, वन्यजीवों की इस इलाके में गतिविधियों को जाना जा सके. खास तौर पर गुलदार के मानव बस्ती के आसपास होने की जानकारी कैमरा ट्रैप के माध्यम से पता लगाई जा सके, लेकिन वन विभाग को इसी कैमरा ट्रैप में एक ऐसा दुर्लभ वन्यजीव दिखाई दिया है, जो इस क्षेत्र के लिए दुर्लभ माना जाता है.
रात्रिचर कीटभक्षी भारतीय सिवेट कैमरे में कैद: भारत में इसकी अच्छी खासी संख्या है, लेकिन देहरादून और आसपास के इलाके में इसकी मौजूदगी कम ही देखी गई है. खास बात ये है कि कैमरा ट्रैप में भारतीय सिवेट (विवेरिकुला इंडिका) के दिखने से वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी भी रोमांचित हुए हैं. कीटभक्षी इस रात्रिचर के यहां दिखाने के बाद वन विभाग इस इलाके में पारिस्थितिकी स्वास्थ्य के बेहतर होने की बात कह रहा है.
सिवेट की मौजूदगी बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र का संकेत: मालसी रेंज की रेंज वन अधिकारी शुचि चौहान कहती हैं कि स्मॉल इंडियन सिवेट एक शर्मिला जीव माना जाता है, जो की बेहतर पारिस्थितिकी तंत्र के होने का संकेत देता है. कीटभक्षी होने के कारण इंडियन सिवेट को प्राकृतिक कीट नियंत्रक के रूप में भी देखा जाता है. इस रात्रिचर के यहां होने का मतलब क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में वन्यजीव के लिए भोजन की उपलब्धता का होना भी है.
इनका शिकार करता है सिवेट: स्मॉल इंडियन सिवेट कीटभक्षी होता है. जो कि चूहों और छोटे जीवों के साथ सांपों, पक्षियों को भी खाता है. यह रात्रिचर मुख्य तौर पर स्थल पर ही रहता है. यह अपने लिए बिल बनाकर रहने के साथ ही दूसरे जीवो के बिलों पर भी कब्जा करता है. घनी झाड़ियों के अलावा चट्टानों और अंधेरी जगह पर रहना भी इसे पसंद है. माना जाता है कि ज्यादातर यह जीव रात के समय ही बाहर निकलते हैं.
वन विभाग गदगद: छोटे भारतीय सिवेट भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, श्रीलंका, थाईलैंड और नेपाल के साथ मलेशिया में भी पाए जाते हैं. देहरादून में इसकी मौजूदगी काफी दुर्लभ है और अब जब कैमरा ट्रैप में यह जीव दिखाई दिया है तो वनकर्मी भी इससे काफी खुश नजर आ रहे हैं. साथ ही इसकी यहां मौजूदगी कई मायने में इस क्षेत्र में वन्यजीवों के लिए आज से बेहद सकारात्मक रूप से देखी जा रही है.
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