वैशाली: धार्मिक ग्रंथो के अनुसार ऋषि मुनियों को परेशान करने वाली राक्षसी ताड़का का वध महर्षि वाल्मीकि के कहने पर श्री राम ने किया था. ताड़कासुर एक नारी थी, इसलिए इस घटना के बाद श्रीराम और लक्ष्मण के ऊपर नारी वध का दोष आ गया था. जिससे मुक्ति के लिए महर्षि वाल्मीकि तब उन्हें लेकर गंगा और गंडक के संगम के पास स्थित एक मिट्टी के ऊंचे टीले पर पहुंचे थे. यह स्थान वैशाली जिला के हाजीपुर में स्थित रामभद्र का रामचौरा मंदिर है.
रामभद्र स्थान पर ऋषि मुनियों का जमावड़ा: कभी यहां बड़े पैमाने पर ऋषि मुनियों का जमावड़ा रहता था. यह जगह इतनी पवित्र थी कि पाप से मुक्ति के लिए यहां पर श्रीराम और लक्ष्मण का मुंडन करवाया गया था. धार्मिक जानकार बताते हैं कि इसका जिक्र वाल्मीकि रामायण की हिंदी अनुवाद में भी मौजूद है. यहां से शुद्धिकरण के बाद ऋषि विश्वामित्र राजा श्री राम और लक्ष्मण के साथ जनकपुर गए थे.
पहले बलभद्र के नाम से था विख्यात: रामभद्र स्थित यह रामचौरा मंदिर त्रेता युग से है. पौराणिक काल में यह जगह बेलभद्र के नाम से प्रसिद्ध था, लेकिन श्री राम के आगमन के बाद इसका नाम रामभद्र हो गया. यहां प्रभु श्री राम के दो पद चिन्ह भी मौजूद हैं, जिसको लेकर अलग-अलग कथाएं कही जाती हैं. कुछ लोगों का मानना है कि इस जगह पर राम दो बार आए थे. पहली बार सिर मुंडन के लिए और दूसरी बार वनवास जाते समय. इसी कारण यहां उनके दो पद चिन्ह मौजूद हैं.
"राम लक्ष्मण गुरु विश्वामित्र तीन आदमी यहां आए थे थे. तारका बध को दोष लगा था इसीलिए उनका बाल मुंडवाया गया था. शुद्धिकरण हुआ. यह जो बात है वह त्रेता युग की बात है. सत्संग से सारी जानकारी मिली है यहां दो चरण है एक वनवास जाने के समय का चरण है और जो काला वाला है यह त्रेता युग का है, जिस समय श्री राम का मुंडन हुआ था. यहां पर वह दो बार आये हैं."- बाबूलाल राय, मंदिर न्यास कमिटी के सचिव
विश्वामित्र के साथ आए थे श्रीराम: वहीं न्यास कमेटी के सदस्य शिवकुमार झा ने बताया कि जनकपुर जाने के क्रम में प्रभु श्री राम यहां आए लक्ष्मण और विश्वामित्र के साथ नगर में रहे. उसके बाद यहां से पदार्पण किए हैं. यहीं पर उन्होंने अहिल्या का उद्धार किया है. यहां ताड़का का वध करने के बाद पाप के प्रायश्चित के लिए यहां पर उनका मुंडन हुआ था. इस नगर को देखकर वह बहुत विस्मृति हुए. वहीं ऋषि विश्वामित्र ने भी कहा था कि इतना सुंदर मंदिर और इतने साधु संत यहां कहां से आए. इसका जिक्र वाल्मीकि रामायण की हिंदी अनुवाद प्रकरण में किया गया है, लेकिन इस मंदिर का अपेक्षाकृत विकास नहीं हो सका. अभी भी यह मंदिर कहीं ना कहीं सरकारी उदासीनता का शिकार है.
"प्रभु श्रीराम यहां लक्ष्मण और ऋषि विश्वामित्र के साथ आए थे. यहां उन्होंने स्नान के साथ मुंडन कराया था. मंदिर तो त्रेता युग से है. पूरे जिले में इतना पवित्र और भव्य जगह है ही नहीं, लेकिन सरकार इस पर ध्यान नहीं देती है. बार-बार न्यास परिषद को लिख कर देते हैं, इसके बावजूद कुछ नहीं हो रहा."- शिवकुमार झा, सदस्य, न्यास कमेटी
नारी वध के दोष से श्रीराम को मिली मुक्ति: कहते हैं जाने अनजाने में अगर इंसान से कोई पाप हो जाता है, तो उससे मुक्ति के लिए ईश्वर की शरण में जाना एक सशक्त माध्यम है. लेकिन जब ईश्वर ही साधु संतों की रक्षा और जनकल्याण के लिए नारी वध के पाप से घिर जाए तो क्या कहेंगे. हालांकि पाप से मुक्ति के लिए ईश्वर को भी प्रयत्न करना पड़ा और उन्हें वैशाली के इस खास पवित्र स्थल पर आना पड़ा. जहां बाल मुंडन के बाद नारी वध दोष से मुक्ति मिली.
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