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दंतेश्वरी मंदिर में रक्षाबंधन पर 800 सालों से निभाई जा रही खास परम्परा - Cotton Rakhi Offered To Danteshwari

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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Aug 19, 2024, 5:37 PM IST

Updated : Aug 19, 2024, 6:19 PM IST

दंतेश्वरी मंदिर में रक्षाबंधन पर्व पर 800 सालों से एक खास परम्परा निभाई जाती है. इस परम्परा के बाद ही पूरे दंतेवाड़ा में राखी पर्व मनाया जाता है. क्या है रेशम के कच्चे सूत की कहानी.

Maa Danteshwari temple
रक्षाबंधन पर 800 सालों से निभाई जा रही खास परम्परा (ETV Bharat)

दंतेवाड़ा: मां दंतेश्वरी को बस्तर की आराध्य देवी माना जाता है. मां दंतेश्वरी के मंदिर से 800 साल पुरानी एक परंपरा आज भी निभाई जा रही है. परंपरा के मुताबिक सबसे पहले मां दंतेश्वरी को कच्चे रेशम के धागे से बनी राखी बांधी जाती है. मां को राखी बांधे जाने के बाद ही लोग इस पर्व को अपने अपने घरों में मनाते हैं. आठ सौ सालों से ये प्राचीन परंपरा आज भी उसी तरह से मनाई जा रही है.

दंतेश्वरी मंदिर में रक्षाबंधन (ETV Bharat)

800 सालों से निभाई जा रही परंपरा: राखी के त्योहार से एक हफ्ते पहले मंदिर में राखी पर्व की तैयारियां शुरु हो जाती हैं. विशेष पूजा की तैयारियां खास तौर पर की जाती हैं. राखी से पहले राखी बनाने के लिए रेशम का धागा लाया जाता है. रेशम के धागे से मंदिर के सेवादार ही राखी को खास तरीके से तैयार करते हैं.

रेशम के कच्चे सूत से बनी राखी मां को अर्पित की जाती है: विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर बांस के टोकरी में रखकर लाल कपड़े से ढक कर रक्षा सूत्र को वापस मंदिर लाया जाता है. रक्षाबंधन के 1 दिन पहले विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर मां दंतेश्वरी देवी को रेशम के कच्चे सूत से बनी राखी अर्पित कर रक्षाबंधन' त्योहार मनाया जाता है. यह परंपरा पिछले 800 साल से चली आ रही है.

"सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार मंदिर के सेवादारों की ओर से मां दंतेश्वरी माता के लिए राखी तैयार की जाती है. इसके लिए एक हफ्ता पहले से ही इस परिवार के लोग तैयारी में लग जाते हैं. रक्षाबंधन के 2 दिन पहले प्रातः काल में महाआरती का आयोजन कर मां दंतेश्वरी मंदिर से 12 लंकवार सेवादार पुजारी की ओर से ढोलबाजों के साथ मां दंतेश्वरी सरोवर पहुंचते हैं''. - विजेंद्र नाथ जीया, पुजारी

सदियों पुरानी परंपरा का किया जा रहा पालन: इस साल भी मादरी परिवार के सदस्यों के साथ मंदिर के सेवादारों ने मंदिर परिसर में रेशम सूत की राखी बनाई. फिर विधि-विधान से रेशम सूत की राखी को दंतेश्वरी सरोवर में लाया गया. विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर सूत को धोकर बांस की टोकरी में रखकर वापस मां दंतेश्वरी मंदिर लाया गया. दूसरे दिन सुबह विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर महाआरती का आयोजन किया गया. इसके बाद सर्वप्रथम रेशम के धागे से बनी राखी को मां दंतेश्वरी के चरणों में अर्पित किया गया.

परम्परा निभाने के बाद मनाया गया पर्व: इसके बाद मंदिर प्रांगण में जितने भी देवी-देवता को रेशम से बने धागे की राखी चढ़ाई गई. इस अनूठी परंपरा को देखने दूर-दूर से लोग मां दंतेश्वरी के दरबार पहुंचे. इसके बाद रेशम के धागे से बनी राखी को सभी गांव वालों को बांटा गया. मान्यता है कि इस रक्षा सूत बांधने से दरिद्रता दूर होती हैं. इसके बाद पूरे गांव और शहर में रक्षाबंधन का पर्व मनाया गया.

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दंतेवाड़ा: मां दंतेश्वरी को बस्तर की आराध्य देवी माना जाता है. मां दंतेश्वरी के मंदिर से 800 साल पुरानी एक परंपरा आज भी निभाई जा रही है. परंपरा के मुताबिक सबसे पहले मां दंतेश्वरी को कच्चे रेशम के धागे से बनी राखी बांधी जाती है. मां को राखी बांधे जाने के बाद ही लोग इस पर्व को अपने अपने घरों में मनाते हैं. आठ सौ सालों से ये प्राचीन परंपरा आज भी उसी तरह से मनाई जा रही है.

दंतेश्वरी मंदिर में रक्षाबंधन (ETV Bharat)

800 सालों से निभाई जा रही परंपरा: राखी के त्योहार से एक हफ्ते पहले मंदिर में राखी पर्व की तैयारियां शुरु हो जाती हैं. विशेष पूजा की तैयारियां खास तौर पर की जाती हैं. राखी से पहले राखी बनाने के लिए रेशम का धागा लाया जाता है. रेशम के धागे से मंदिर के सेवादार ही राखी को खास तरीके से तैयार करते हैं.

रेशम के कच्चे सूत से बनी राखी मां को अर्पित की जाती है: विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर बांस के टोकरी में रखकर लाल कपड़े से ढक कर रक्षा सूत्र को वापस मंदिर लाया जाता है. रक्षाबंधन के 1 दिन पहले विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर मां दंतेश्वरी देवी को रेशम के कच्चे सूत से बनी राखी अर्पित कर रक्षाबंधन' त्योहार मनाया जाता है. यह परंपरा पिछले 800 साल से चली आ रही है.

"सालों से चली आ रही परंपरा के अनुसार मंदिर के सेवादारों की ओर से मां दंतेश्वरी माता के लिए राखी तैयार की जाती है. इसके लिए एक हफ्ता पहले से ही इस परिवार के लोग तैयारी में लग जाते हैं. रक्षाबंधन के 2 दिन पहले प्रातः काल में महाआरती का आयोजन कर मां दंतेश्वरी मंदिर से 12 लंकवार सेवादार पुजारी की ओर से ढोलबाजों के साथ मां दंतेश्वरी सरोवर पहुंचते हैं''. - विजेंद्र नाथ जीया, पुजारी

सदियों पुरानी परंपरा का किया जा रहा पालन: इस साल भी मादरी परिवार के सदस्यों के साथ मंदिर के सेवादारों ने मंदिर परिसर में रेशम सूत की राखी बनाई. फिर विधि-विधान से रेशम सूत की राखी को दंतेश्वरी सरोवर में लाया गया. विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर सूत को धोकर बांस की टोकरी में रखकर वापस मां दंतेश्वरी मंदिर लाया गया. दूसरे दिन सुबह विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर महाआरती का आयोजन किया गया. इसके बाद सर्वप्रथम रेशम के धागे से बनी राखी को मां दंतेश्वरी के चरणों में अर्पित किया गया.

परम्परा निभाने के बाद मनाया गया पर्व: इसके बाद मंदिर प्रांगण में जितने भी देवी-देवता को रेशम से बने धागे की राखी चढ़ाई गई. इस अनूठी परंपरा को देखने दूर-दूर से लोग मां दंतेश्वरी के दरबार पहुंचे. इसके बाद रेशम के धागे से बनी राखी को सभी गांव वालों को बांटा गया. मान्यता है कि इस रक्षा सूत बांधने से दरिद्रता दूर होती हैं. इसके बाद पूरे गांव और शहर में रक्षाबंधन का पर्व मनाया गया.

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Last Updated : Aug 19, 2024, 6:19 PM IST
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