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क्या पूरा होगा अमित शाह का आश्वासन या दिल्ली दौड़ में पीछे रह जाएगा सिंधिया का प्रतिद्वंदी - RAJYA SABHA ELECTION 2024

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Aug 13, 2024, 11:49 AM IST

लोकसभा चुनाव 2024 में गुना सीट से बीजेपी ने केपी यादव का टिकट काटा तो अमित शाह ने दिल्ली ले जाने का वादा कर मरहम लगाया. अब राज्यसभा के चुनाव होने जा रहे हैं तो फिर अमित शाह का आश्वासन चर्चा में है. लेकिन क्या केपी यादव इतनी आसानी से राज्यसभा जा पाएंगे. खासकर तब जब कई बड़े नाम रेस में शामिल हैं. आइये जानते हैं राज्यसभा को लेकर अब क्या समीकरण बन रहे हैं.

RAJYA SABHA ELECTION 2024
राज्यसभा सीट के ये हैं प्रमुख दावेदार (ETV BHARAT)

ग्वालियर। बीते 4 साल से बीजेपी में दो नेताओं के बीच कोल्डवॉर की खबरें आती रही हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया और केपी यादव के बीच वर्चस्व की लड़ाई की अटकलें आज भी हैं. क्योंकि दोनों ही पहले विरोधी दलों के नेता थे और अब एक ही पार्टी के सदस्य हैं. सिंधिया तो लोकसभा जीतकर सांसद और मोदी कैबिनेट में मंत्री बन चुके हैं लेकिन अब सवाल केपी यादव के राजनीतिक भविष्य पर अटका हुआ है. लोकसभा चुनाव जीतने से सिंधिया की राज्यसभा सीट तो ख़ाली हो चुकी लेकिन केपी यादव इस सीट से चुने जाएंगे.

साल 2019 में केपी यादव ने सिंधिया को दी थी शिकस्त

लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने गुना सीट पर केपी यादव की जगह ज्योतिरादित्य सिंधिया को टिकट दिया था. यह वही सीट थी जो 2019 के पहले तक सिंधिया राजघराने का वर्चस्व हुआ करती थी. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार केपी यादव ने सिंधिया को उनकी ही परंपरागत सीट से हराकर चलता कर दिया था. ऐसे में 2024 के चुनाव में जब टिकट कटा तो केपी यादव और गुना की जनता को ख़ुद अमित शाह ने भरोसा दिलाया था.

प्रचार के दौरान अमित शाह ने किया था वादा

अमित शाह ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान गुना की एक सभा में कहा था "आप केपी की चिंता मत करो, उनकी चिंता पार्टी करेगी. हम उन्हें दिल्ली ले जाएँगे", सीधे तौर पर ये माना जा रहा था कि अब लोकसभा के बाद राज्यसभा में बीजेपी केपी यादव को सांसद बना सकती है. अब जब समय आया है तो राजनीतिक गलियारों में सिंधिया की राज्यसभा सीट के उपचुनाव को लेकर चर्चा ज़ोरों पर हैं.

जातीय समीकरण का पड़ सकता है असर

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली कहते हैं "केपी यादव का राज्यसभा पहुंचना इतना आसान नज़र नहीं आ रहा है. क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश में पहले ही ओबीसी वर्ग का मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया है. ऐसे में जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए इस बार किसी ब्राह्मण या सामान्य वर्ग के कार्यकर्ता को यह मौक़ा दिया जा सकता है. रहा सवाल अमित शाह के वादे का तो ख़ुद अमित शाह यह कह चुके हैं कि चुनाव के समय कई वादे किए जाते हैं लेकिन सभी को पूरा कर पाना किसी के लिये भी मुश्किल होता है."

रेस में शामिल हैं बीजेपी के कई दिग्गज

देव श्रीमाली के मुताबिक "केपी यादव के अलावा राज्यसभा सीट के लिए बीजेपी के पास पहले से ही कई वरिष्ठ नेताओं की फ़ेहरिस्त है जो राज्यसभा सांसद बनने की कतार में हैं. क्योंकि इनकी अनदेखी भी बीजेपी के लिये ठीक नहीं होगा. वर्तमान में राज्यसभा की दौड़ में सबसे पहला नाम बीजेपी के मुकेश चौधरी का है. क्योंकि 2020 के उपचुनाव में मेहगांव विधानसभा सीट पर सिंधिया समर्थित मंत्री ओपीएस भदौरिया को जिताने में उनकी अहम भूमिका थी. 2023 में उनका टिकट लगभग फाइनल था लेकिन अंतिम समय में बीजेपी ने राकेश शुक्ला को प्रत्याशी घोषित किया. इसलिए इस बार उन्हें राज्यसभा भेजने की ज़्यादा संभावना है. क्योंकि ग्वालियर चंबल क्षेत्र में ब्राह्मण वोटर पर उनका ख़ास प्रभाव भी है."

संघ से भी आ सकता है चौकाने वाला नाम

मुकेश चौधरी के साथ साथ पूर्व गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, जयभान सिंह पवैया का नाम भी चर्चा में है. संघ की और से भी कोई चौकने वाला नाम सामने आ सकता है. ऐसे में केपी यादव को राज्यसभा का सफ़र तय करने में तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि इस राह पर उनके अपने ही पार्टी के तमाम नाम स्पीड ब्रेकर की तरह खड़े हुए हैं.

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राज्यसभा की चेयर रेस, सिंधिया की जगह बीजेपी में किसके नाम पर भरोसे की मुहर

21 अगस्त को दाखिल होंगे नामांकन

ग़ौरतलब है कि, वर्तमान में राज्यसभा में बीजेपी दलित, आदिवासी, पिछड़ा और महिला वर्ग से सांसद बनाये हुए हैं. ऐसे में अब मध्यप्रदेश की राज्यसभा सीट पर सामान्य वर्ग से किसी ब्राह्मण या ठाकुर समज के व्यक्ति को आगे बढ़ा सकती है. चूँकि राज्यसभा के उपचुनाव के लिए भी तारीख़े घोषित कर दी गई हैं 14 अगस्त को नामकान प्रक्रिया की अधिसूचना भी जारी जाएगी और 21 अगस्त को नॉमिनेशन फाइल होंगे ऐसे में जल्द बीजेपी का निर्णय सबके सामने आजाएगा की अमित शाह गुना में किया वादा पुराने वाले हैं या चुनाव में तो वादे बस किए जाते हैं. हालाँकि राज्यसभा तक कौन पहुँचेगा इसका निर्णय भी 3 सितंबर को चुनाव के बाद घोषित कर दिया जाएगा.

ग्वालियर। बीते 4 साल से बीजेपी में दो नेताओं के बीच कोल्डवॉर की खबरें आती रही हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया और केपी यादव के बीच वर्चस्व की लड़ाई की अटकलें आज भी हैं. क्योंकि दोनों ही पहले विरोधी दलों के नेता थे और अब एक ही पार्टी के सदस्य हैं. सिंधिया तो लोकसभा जीतकर सांसद और मोदी कैबिनेट में मंत्री बन चुके हैं लेकिन अब सवाल केपी यादव के राजनीतिक भविष्य पर अटका हुआ है. लोकसभा चुनाव जीतने से सिंधिया की राज्यसभा सीट तो ख़ाली हो चुकी लेकिन केपी यादव इस सीट से चुने जाएंगे.

साल 2019 में केपी यादव ने सिंधिया को दी थी शिकस्त

लोकसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने गुना सीट पर केपी यादव की जगह ज्योतिरादित्य सिंधिया को टिकट दिया था. यह वही सीट थी जो 2019 के पहले तक सिंधिया राजघराने का वर्चस्व हुआ करती थी. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार केपी यादव ने सिंधिया को उनकी ही परंपरागत सीट से हराकर चलता कर दिया था. ऐसे में 2024 के चुनाव में जब टिकट कटा तो केपी यादव और गुना की जनता को ख़ुद अमित शाह ने भरोसा दिलाया था.

प्रचार के दौरान अमित शाह ने किया था वादा

अमित शाह ने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान गुना की एक सभा में कहा था "आप केपी की चिंता मत करो, उनकी चिंता पार्टी करेगी. हम उन्हें दिल्ली ले जाएँगे", सीधे तौर पर ये माना जा रहा था कि अब लोकसभा के बाद राज्यसभा में बीजेपी केपी यादव को सांसद बना सकती है. अब जब समय आया है तो राजनीतिक गलियारों में सिंधिया की राज्यसभा सीट के उपचुनाव को लेकर चर्चा ज़ोरों पर हैं.

जातीय समीकरण का पड़ सकता है असर

राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली कहते हैं "केपी यादव का राज्यसभा पहुंचना इतना आसान नज़र नहीं आ रहा है. क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश में पहले ही ओबीसी वर्ग का मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया है. ऐसे में जातीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए इस बार किसी ब्राह्मण या सामान्य वर्ग के कार्यकर्ता को यह मौक़ा दिया जा सकता है. रहा सवाल अमित शाह के वादे का तो ख़ुद अमित शाह यह कह चुके हैं कि चुनाव के समय कई वादे किए जाते हैं लेकिन सभी को पूरा कर पाना किसी के लिये भी मुश्किल होता है."

रेस में शामिल हैं बीजेपी के कई दिग्गज

देव श्रीमाली के मुताबिक "केपी यादव के अलावा राज्यसभा सीट के लिए बीजेपी के पास पहले से ही कई वरिष्ठ नेताओं की फ़ेहरिस्त है जो राज्यसभा सांसद बनने की कतार में हैं. क्योंकि इनकी अनदेखी भी बीजेपी के लिये ठीक नहीं होगा. वर्तमान में राज्यसभा की दौड़ में सबसे पहला नाम बीजेपी के मुकेश चौधरी का है. क्योंकि 2020 के उपचुनाव में मेहगांव विधानसभा सीट पर सिंधिया समर्थित मंत्री ओपीएस भदौरिया को जिताने में उनकी अहम भूमिका थी. 2023 में उनका टिकट लगभग फाइनल था लेकिन अंतिम समय में बीजेपी ने राकेश शुक्ला को प्रत्याशी घोषित किया. इसलिए इस बार उन्हें राज्यसभा भेजने की ज़्यादा संभावना है. क्योंकि ग्वालियर चंबल क्षेत्र में ब्राह्मण वोटर पर उनका ख़ास प्रभाव भी है."

संघ से भी आ सकता है चौकाने वाला नाम

मुकेश चौधरी के साथ साथ पूर्व गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा, जयभान सिंह पवैया का नाम भी चर्चा में है. संघ की और से भी कोई चौकने वाला नाम सामने आ सकता है. ऐसे में केपी यादव को राज्यसभा का सफ़र तय करने में तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. क्योंकि इस राह पर उनके अपने ही पार्टी के तमाम नाम स्पीड ब्रेकर की तरह खड़े हुए हैं.

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21 अगस्त को दाखिल होंगे नामांकन

ग़ौरतलब है कि, वर्तमान में राज्यसभा में बीजेपी दलित, आदिवासी, पिछड़ा और महिला वर्ग से सांसद बनाये हुए हैं. ऐसे में अब मध्यप्रदेश की राज्यसभा सीट पर सामान्य वर्ग से किसी ब्राह्मण या ठाकुर समज के व्यक्ति को आगे बढ़ा सकती है. चूँकि राज्यसभा के उपचुनाव के लिए भी तारीख़े घोषित कर दी गई हैं 14 अगस्त को नामकान प्रक्रिया की अधिसूचना भी जारी जाएगी और 21 अगस्त को नॉमिनेशन फाइल होंगे ऐसे में जल्द बीजेपी का निर्णय सबके सामने आजाएगा की अमित शाह गुना में किया वादा पुराने वाले हैं या चुनाव में तो वादे बस किए जाते हैं. हालाँकि राज्यसभा तक कौन पहुँचेगा इसका निर्णय भी 3 सितंबर को चुनाव के बाद घोषित कर दिया जाएगा.

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