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पसोपेश में कांग्रेस, राजस्थान की इस सीट पर ज्योति मिर्धा के मुकाबले कौन ? - rajasthan Lok sabha election 2024

nagaur constituency , राजस्थान में लोकसभा चुनाव को लेकर सरगर्मियां पारे के साथ परवान चढ़ रही हैं. इस बीच चर्चा हॉट सीट्स की है, जिन पर बड़े नेताओं के प्रदर्शन को लेकर निगाहें हैं. ऐसी ही हॉट सीट मारवाड़ की नागौर संसदीय क्षेत्र की है, जहां ज्योति मिर्धा के मुकाबले में कौन आएगा ? नागौर समेत पूरे प्रदेश की सियासी निगाहें इस ओर टिकी हुई हैं. नागौर लोकसभा सीट पर मतदान 19 अप्रैल को है नागौर लोकसभा सीट पर मतगणना 4 जून को होगी

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Mar 19, 2024, 5:58 PM IST

Updated : Apr 18, 2024, 2:14 PM IST

Hot Seat Nagaur
Hot Seat Nagaur

जयपुर. कांग्रेस किसी भी वक्त राजस्थान की बाकी बची हुई 15 सीटों की घोषणा कर सकती है. इस बीच चर्चा इतनी नहीं है कि नागौर का अगला सांसद कौन होगा, इससे ज्यादा बात इस बारे में हो रही है कि बीजेपी को चुनौती देने के लिए मैदान में सामने कौन आएगा ? जाट लैंड की राजनीति का मुख्य केन्द्र रही नागौर की सीट किसी वक्त भाजपा के लिए अभेद्य दुर्ग के समान थी, जहां 2014 में सीआर चौधरी ने कमल खिलाया.

इसके पहले नाथूराम मिर्धा के निधन के बाद उनके पुत्र भानु प्रताप मिर्धा और 2004 में भंवर सिंह डांगावास कमल के निशान पर चुने गए थे. पर इन चुनिंदा मौकों को छोड़ दिया जाए, तो मारवाड़ में इस जगह कांग्रेस का असर ही नजर आया है. ऐसे में इस बार कांग्रेस अपने मोहरे को खोने के बाद चुनौती के लिए मजबूत विकल्प की तलाश कर रही है. खास तौर पर बड़े पैमाने पर जाट नेताओं की रुखसती के बाद कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं है.

मोदी काल में बदला राजनीति का मैदान : नागौर की परंपरागत राजनीति में भाजपा ने कांग्रेस की शिकस्त के लिए कभी गैर जाट पर दांव लगाए, तो कभी मजबूत चेहरे की तलाश की. साल 2014 में आरपीएससी के चेयरमैन रहे और कोर जाट छवि वाले छोटूराम चौधरी को मैदान में उतारकर बीजेपी ने परंपरागत मिर्धा परिवार को शिकस्त देकर जाट लैंड में लंबे वर्चस्व को खत्म किया. इसके बाद 2019 के चुनाव में बीजेपी ने राजस्थान में एक मात्र सीट पर हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी से गठबंधन किया और फिर से मिर्धा परिवार की ज्योति को करीब पौने दो लाख मतों से हरा दिया.

पढ़ें : नागौर में त्रिकोणीय मुकाबला, ज्योति मिर्धा भाजपा से लड़ेंगीं चुनाव, आरएलपी बिगाड़ सकता है 'खेल'!

इस बार बेनीवाल के साथ तालमेल की गाड़ी पटरी से उतरी, तो मिशन 25 को पूरा करने के लिए बीजेपी ने ज्योति मिर्धा को ही खेमे में शामिल कर लिया. इस बार फिर से बीजेपी की हैट्रिक पर ब्रेक लगाने के लिए कांग्रेस को मजबूत चेहरे की तलाश है, जिसमें आरएलपी का साथ एक विकल्प भी है, लेकिन नागौर का परंपरागत कांग्रेसी विकल्प से ज्यादा सीधी चुनौती की ओर भरोसा रख रहा है.

मिर्धा परिवार ने बढ़ाई चुनौती : कांग्रेस फिलहाल नागौर में मजबूत जाट चेहरे की तलाश में है. ज्योति मिर्धा के बाद दिग्गज रिछपाल मिर्धा और उनके पुत्र विजयपाल मिर्धा का पार्टी छोड़कर जाना पार्टी के लिए बड़े डैमेज का कारण बना. इसी तरह परंपरागत मिर्धा परिवार के आसरे से स्थानीय राजनीति में कई मोहेर और चेहरे पार्टी से अलग हो गए. इसके पहले पूर्व सांसद स्वर्गीय रामरघुनाथ चौधरी के परिवार से पुत्र अजय किलक और बेटी बिंदु चौधरी भी कांग्रेस के खिलाफ ही लड़े हैं. ऐसे में रामनिवास मिर्धा की विरासत से भले ही हरेन्द्र मिर्धा जीतकर विधायक के रूप में कांग्रेस का परचम लहरा रहे हैं, लेकिन अकेले उनके आसरे जाट लैंड के इस केंद्र में फतेह मुश्किल है. पूरे संसदीय क्षेत्र में सर्वमान्य चेहरे का विकल्प पार्टी के लिए काफी मुश्किल हो चला है.

इन चेहरों पर कांग्रेस का दांव : कांग्रेस अगर राजस्थान में गठबंधन के साथ नहीं जाती है, तो फिर हनुमान बेनीवाल का कदम नतीजों पर काफी कुछ असर डालेगा. वहीं, असल मुद्दा कांग्रेस के लिए जिताऊ चेहरे की तलाश का होगा, जिसमें पूर्व पीसीसी सदस्य वीरेन्द्र चौधरी, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी जस्साराम चौधरी के नाम चर्चा में है. हालांकि, जानकारों का कहना है कि अशोक गहलोत की दिल्ली से दूरी भी जाहिर करता है कि फिलहाल पार्टी गठबंधन की ओर नहीं बढ़ रही है. ऐसे में मंगलवार सुबह सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर नागौर_मांगे_कांग्रेस ट्रेंड कर रहा था. जिससे भी जाहिर हो रहा है कि यहां कांग्रेस के लिए किसी और का साथ आसान नहीं होगा.

जयपुर. कांग्रेस किसी भी वक्त राजस्थान की बाकी बची हुई 15 सीटों की घोषणा कर सकती है. इस बीच चर्चा इतनी नहीं है कि नागौर का अगला सांसद कौन होगा, इससे ज्यादा बात इस बारे में हो रही है कि बीजेपी को चुनौती देने के लिए मैदान में सामने कौन आएगा ? जाट लैंड की राजनीति का मुख्य केन्द्र रही नागौर की सीट किसी वक्त भाजपा के लिए अभेद्य दुर्ग के समान थी, जहां 2014 में सीआर चौधरी ने कमल खिलाया.

इसके पहले नाथूराम मिर्धा के निधन के बाद उनके पुत्र भानु प्रताप मिर्धा और 2004 में भंवर सिंह डांगावास कमल के निशान पर चुने गए थे. पर इन चुनिंदा मौकों को छोड़ दिया जाए, तो मारवाड़ में इस जगह कांग्रेस का असर ही नजर आया है. ऐसे में इस बार कांग्रेस अपने मोहरे को खोने के बाद चुनौती के लिए मजबूत विकल्प की तलाश कर रही है. खास तौर पर बड़े पैमाने पर जाट नेताओं की रुखसती के बाद कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं है.

मोदी काल में बदला राजनीति का मैदान : नागौर की परंपरागत राजनीति में भाजपा ने कांग्रेस की शिकस्त के लिए कभी गैर जाट पर दांव लगाए, तो कभी मजबूत चेहरे की तलाश की. साल 2014 में आरपीएससी के चेयरमैन रहे और कोर जाट छवि वाले छोटूराम चौधरी को मैदान में उतारकर बीजेपी ने परंपरागत मिर्धा परिवार को शिकस्त देकर जाट लैंड में लंबे वर्चस्व को खत्म किया. इसके बाद 2019 के चुनाव में बीजेपी ने राजस्थान में एक मात्र सीट पर हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी से गठबंधन किया और फिर से मिर्धा परिवार की ज्योति को करीब पौने दो लाख मतों से हरा दिया.

पढ़ें : नागौर में त्रिकोणीय मुकाबला, ज्योति मिर्धा भाजपा से लड़ेंगीं चुनाव, आरएलपी बिगाड़ सकता है 'खेल'!

इस बार बेनीवाल के साथ तालमेल की गाड़ी पटरी से उतरी, तो मिशन 25 को पूरा करने के लिए बीजेपी ने ज्योति मिर्धा को ही खेमे में शामिल कर लिया. इस बार फिर से बीजेपी की हैट्रिक पर ब्रेक लगाने के लिए कांग्रेस को मजबूत चेहरे की तलाश है, जिसमें आरएलपी का साथ एक विकल्प भी है, लेकिन नागौर का परंपरागत कांग्रेसी विकल्प से ज्यादा सीधी चुनौती की ओर भरोसा रख रहा है.

मिर्धा परिवार ने बढ़ाई चुनौती : कांग्रेस फिलहाल नागौर में मजबूत जाट चेहरे की तलाश में है. ज्योति मिर्धा के बाद दिग्गज रिछपाल मिर्धा और उनके पुत्र विजयपाल मिर्धा का पार्टी छोड़कर जाना पार्टी के लिए बड़े डैमेज का कारण बना. इसी तरह परंपरागत मिर्धा परिवार के आसरे से स्थानीय राजनीति में कई मोहेर और चेहरे पार्टी से अलग हो गए. इसके पहले पूर्व सांसद स्वर्गीय रामरघुनाथ चौधरी के परिवार से पुत्र अजय किलक और बेटी बिंदु चौधरी भी कांग्रेस के खिलाफ ही लड़े हैं. ऐसे में रामनिवास मिर्धा की विरासत से भले ही हरेन्द्र मिर्धा जीतकर विधायक के रूप में कांग्रेस का परचम लहरा रहे हैं, लेकिन अकेले उनके आसरे जाट लैंड के इस केंद्र में फतेह मुश्किल है. पूरे संसदीय क्षेत्र में सर्वमान्य चेहरे का विकल्प पार्टी के लिए काफी मुश्किल हो चला है.

इन चेहरों पर कांग्रेस का दांव : कांग्रेस अगर राजस्थान में गठबंधन के साथ नहीं जाती है, तो फिर हनुमान बेनीवाल का कदम नतीजों पर काफी कुछ असर डालेगा. वहीं, असल मुद्दा कांग्रेस के लिए जिताऊ चेहरे की तलाश का होगा, जिसमें पूर्व पीसीसी सदस्य वीरेन्द्र चौधरी, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी जस्साराम चौधरी के नाम चर्चा में है. हालांकि, जानकारों का कहना है कि अशोक गहलोत की दिल्ली से दूरी भी जाहिर करता है कि फिलहाल पार्टी गठबंधन की ओर नहीं बढ़ रही है. ऐसे में मंगलवार सुबह सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर नागौर_मांगे_कांग्रेस ट्रेंड कर रहा था. जिससे भी जाहिर हो रहा है कि यहां कांग्रेस के लिए किसी और का साथ आसान नहीं होगा.

Last Updated : Apr 18, 2024, 2:14 PM IST
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