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बड़ा फैसला : 35 लाख की रिश्वत के आरोप में थानेदार और हेड कांस्टेबल को सस्पेंड करने के निर्देश - RAJASTHAN HIGH COURT

राजस्थान हाई कोर्ट का बड़ा आदेश. 35 लाख की रिश्वत के आरोप. थानेदार और हेड कांस्टेबल को सस्पेंड करने के निर्देश.

Rajasthan High Court
राजस्थान हाई कोर्ट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 7, 2024, 10:16 PM IST

जोधपुर: बासनी थाने में दर्ज हुए मादक पदार्थ की तस्करी के एक मामलें में पुलिस द्वारा आरोपी को छोड़ने के एवज में 35 लाख रुपये की रिश्वत लेने की शिकायत पर कार्रवाई नहीं होने पर कोर्ट में पेश की गई याचिका पर नियमित सुनवाई के दौरान सोमवार को जस्टिस फरजंद अली ने जोधपुर पुलिस पर कई तल्ख टिप्पणियां की. उन्होंने इस मामले में तत्कालीन बासनी वर्तमान में विवेक विहार थानाधिकारी जितेंद्र सिंह और हेड कांस्टेबल स्वरूपराम विश्नोई को सस्पेंड करने के निर्देश दिए हैं.

अधिवक्ता शिवप्रकाश भाटी ने बताया कि कोर्ट ने पूरे प्रकरण की सीबीआई से जांच करवाने की मंशा जाहिर की है. इतना ही नहीं, कोर्ट ने इस मामलें से जुड़े दो अन्य पुलिस निरीक्षक शास्त्रीनगर थानाधिकारी देवेंद्र सिंह देवड़ा व बासनी थानाधिकारी मो. शफीक खान की भूमिका संदेह के घेरे में है. इसलिए इनकी ईमानदारी से जांच करने के भी आदेश दिए हैं. कोर्ट ने राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह), को नोटिस जारी किए हैं. सरकारी महाधिवक्ता से अगली सुनवाई 17 अक्टूबर को जवाब-तलब किया है, साथ ही पुलिस महानिदेशक को पांच दिन में सीआई व हेड कांस्टेबल सस्पेंड करने व दोषी पुलिसकर्मियों की भूमिका की जांच के निर्देश दिए हैं.

कोर्ट ने मामले को लेकर चल रही एसीबी जांच व पुलिस कश्मिनर की जांच पर भी सवाल खड़े करते हुए आदेश में लिखा है कि एसीबी के अधिकारियों और पुलिस निरीक्षक जितेन्द्र सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों के बीच मिलीभगत की एक स्वतंत्र व विश्वसनीय एजेंसी से जांच होनी चाहिए. यदि किसी पुलिस अधिकारी द्वारा रिश्वत मांगने, जबरन वसूली करने, अवैध हिरासत में रखने तथा झूठा मामला दर्ज करने के संबंध में जांच किसी अन्य पुलिस अधिकारी से कराने की अनुमति दी जाती है तो सच्चाई सामने आने की संभावना बहुत कम हो जाएगी. यह पुरानी कहावत है कि न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए, बल्कि ऐसा प्रतीत भी होना चाहिए कि न्याय हुआ है और इसलिए यह न्यायालय इस बात पर विचार कर रहा है कि निरीक्षक जितेन्द्र सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सीबीआई जैसी केन्द्रीय एजेंसी को क्यों न सौंपी जाए. कोर्ट ने इसके लिए सीबीआई के वकील नोटिस देकर उनका इस मामले पर रूख पूछा है.

पढे़ं : अनुशासन की तलवार : रिश्वत मामले में ASI व सिपाही निलंबित, गैरहाजिर कांस्टेबल बर्खास्त - Disciplinary Action Against Police

स्पष्टीकरण तक नहीं पूछा : आदेश में लिखा गया है कि इस प्रकरण की कमिश्नर कार्यालय से जांच करवाई जा रही है, जिसको लेकर याचिकाकर्ता ने सीसीटीवी सहित अन्य सबूत कमिश्नर को दिए थे, लेकिन हैरानी है कि इसके बावजूद अभी जांच में कुछ गवाहों के बयान हैं, लेकिन जितेंद्र सिंह व स्वरूप राम से स्पष्टीकरण तक नहीं पूछा गया है. जबकि प्रथम दृष्टया पुलिस निरीक्षक जितेंद्र सिंह, हेड कांस्टेबल की मिलीभगत दिखाने वाले मजबूत सामग्री रिकॉर्ड पर उपलब्ध है. इसी तरह से कोर्ट ने एसीबी की जांच पर लिखा है कि जांच बंद करने की तैयारी है, सिर्फ आदेश नहीं किए गए हैं. बहुत ज्यादा तथ्य एसीबी ने एकत्र नहीं किए, जिससे निराश हुई है. जिसके चलते एसीबी के जांच अधिकारी को भी संदेह के दायरे में रखा गया है.

यह की पुलिस पर टिप्पणियां : कोर्ट ने आदेश में लिखा है कि आरोपी अवैध गतिविधियां करते है तो पुलिस सजा दिलाए, लेकिन यह अनुमति नहीं दी जा सकती है कि पुलिस अधिकारी उनसे पैसे ऐंठने के उद्देश्य से आरोपियों की अवैध गतिविधियों का फायदा उठाए. यदि पुलिस अधिकारी, जो कानून के रक्षक माने जाते हैं इनको अपराधियों जैसा काम करने दिया जाएगा और उन पर भारी मात्रा में वसूली के आरोपों की अनदेखी की जाएगी, तो आम जनता का निवारक बल पर भरोसा खत्म हो जाएगा और समाज में रोष बढ़ेगा.

जोधपुर: बासनी थाने में दर्ज हुए मादक पदार्थ की तस्करी के एक मामलें में पुलिस द्वारा आरोपी को छोड़ने के एवज में 35 लाख रुपये की रिश्वत लेने की शिकायत पर कार्रवाई नहीं होने पर कोर्ट में पेश की गई याचिका पर नियमित सुनवाई के दौरान सोमवार को जस्टिस फरजंद अली ने जोधपुर पुलिस पर कई तल्ख टिप्पणियां की. उन्होंने इस मामले में तत्कालीन बासनी वर्तमान में विवेक विहार थानाधिकारी जितेंद्र सिंह और हेड कांस्टेबल स्वरूपराम विश्नोई को सस्पेंड करने के निर्देश दिए हैं.

अधिवक्ता शिवप्रकाश भाटी ने बताया कि कोर्ट ने पूरे प्रकरण की सीबीआई से जांच करवाने की मंशा जाहिर की है. इतना ही नहीं, कोर्ट ने इस मामलें से जुड़े दो अन्य पुलिस निरीक्षक शास्त्रीनगर थानाधिकारी देवेंद्र सिंह देवड़ा व बासनी थानाधिकारी मो. शफीक खान की भूमिका संदेह के घेरे में है. इसलिए इनकी ईमानदारी से जांच करने के भी आदेश दिए हैं. कोर्ट ने राज्य के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह), को नोटिस जारी किए हैं. सरकारी महाधिवक्ता से अगली सुनवाई 17 अक्टूबर को जवाब-तलब किया है, साथ ही पुलिस महानिदेशक को पांच दिन में सीआई व हेड कांस्टेबल सस्पेंड करने व दोषी पुलिसकर्मियों की भूमिका की जांच के निर्देश दिए हैं.

कोर्ट ने मामले को लेकर चल रही एसीबी जांच व पुलिस कश्मिनर की जांच पर भी सवाल खड़े करते हुए आदेश में लिखा है कि एसीबी के अधिकारियों और पुलिस निरीक्षक जितेन्द्र सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों के बीच मिलीभगत की एक स्वतंत्र व विश्वसनीय एजेंसी से जांच होनी चाहिए. यदि किसी पुलिस अधिकारी द्वारा रिश्वत मांगने, जबरन वसूली करने, अवैध हिरासत में रखने तथा झूठा मामला दर्ज करने के संबंध में जांच किसी अन्य पुलिस अधिकारी से कराने की अनुमति दी जाती है तो सच्चाई सामने आने की संभावना बहुत कम हो जाएगी. यह पुरानी कहावत है कि न्याय केवल होना ही नहीं चाहिए, बल्कि ऐसा प्रतीत भी होना चाहिए कि न्याय हुआ है और इसलिए यह न्यायालय इस बात पर विचार कर रहा है कि निरीक्षक जितेन्द्र सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सीबीआई जैसी केन्द्रीय एजेंसी को क्यों न सौंपी जाए. कोर्ट ने इसके लिए सीबीआई के वकील नोटिस देकर उनका इस मामले पर रूख पूछा है.

पढे़ं : अनुशासन की तलवार : रिश्वत मामले में ASI व सिपाही निलंबित, गैरहाजिर कांस्टेबल बर्खास्त - Disciplinary Action Against Police

स्पष्टीकरण तक नहीं पूछा : आदेश में लिखा गया है कि इस प्रकरण की कमिश्नर कार्यालय से जांच करवाई जा रही है, जिसको लेकर याचिकाकर्ता ने सीसीटीवी सहित अन्य सबूत कमिश्नर को दिए थे, लेकिन हैरानी है कि इसके बावजूद अभी जांच में कुछ गवाहों के बयान हैं, लेकिन जितेंद्र सिंह व स्वरूप राम से स्पष्टीकरण तक नहीं पूछा गया है. जबकि प्रथम दृष्टया पुलिस निरीक्षक जितेंद्र सिंह, हेड कांस्टेबल की मिलीभगत दिखाने वाले मजबूत सामग्री रिकॉर्ड पर उपलब्ध है. इसी तरह से कोर्ट ने एसीबी की जांच पर लिखा है कि जांच बंद करने की तैयारी है, सिर्फ आदेश नहीं किए गए हैं. बहुत ज्यादा तथ्य एसीबी ने एकत्र नहीं किए, जिससे निराश हुई है. जिसके चलते एसीबी के जांच अधिकारी को भी संदेह के दायरे में रखा गया है.

यह की पुलिस पर टिप्पणियां : कोर्ट ने आदेश में लिखा है कि आरोपी अवैध गतिविधियां करते है तो पुलिस सजा दिलाए, लेकिन यह अनुमति नहीं दी जा सकती है कि पुलिस अधिकारी उनसे पैसे ऐंठने के उद्देश्य से आरोपियों की अवैध गतिविधियों का फायदा उठाए. यदि पुलिस अधिकारी, जो कानून के रक्षक माने जाते हैं इनको अपराधियों जैसा काम करने दिया जाएगा और उन पर भारी मात्रा में वसूली के आरोपों की अनदेखी की जाएगी, तो आम जनता का निवारक बल पर भरोसा खत्म हो जाएगा और समाज में रोष बढ़ेगा.

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