जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने पढ़ाई कर रहे वयस्क बेटे से जुडे़ मामले में कहा है कि केवल वयस्क होने के आधार पर ही बेटे को भरण-पोषण भत्ता देने वाले आदेश को रद्द नहीं किया जा सकता. प्रार्थी पिता ने भी यह माना है कि जब घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण भत्ते के लिए प्रार्थना पत्र दायर किया गया था तो उसके बेटे की पढ़ाई जारी थी और वह बीए डिग्री कोर्स कर रहा था. ऐसे में एडीजे कोर्ट के आदेश में किसी भी तरह का दखल देने की जरूरत नहीं है. जस्टिस प्रवीर भटनागर ने यह आदेश पिता व अन्य की याचिका को खारिज करते हुए दिए.
याचिका में जयपुर मेट्रो-प्रथम की एडीजे कोर्ट के 29 अगस्त 2022 के उस आदेश को चुनौती दी गई थी. इसमें कहा था कि यदि वयस्क बेटा कोई आय अर्जित नहीं की कर रहा है और उसकी पढ़ाई जारी है तो केवल वयस्क होने के चलते पिता भरण-पोषण राशि देने से मना नहीं कर सकते. मामले से जुडे़ अधिवक्ता ने बताया कि एडीजे कोर्ट ने पिता की अपील को खारिज करते हुए निचली कोर्ट के उस आदेश को बहाल रखा था.
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इसमें निचली अदालत ने पत्नी व बेटे को मासिक भरण पोषण देने को कहा था. अपीलार्थी पिता ने अपनी पत्नी व बेटे को हर महीने दी जा रही भरण-पोषण राशि को देने में असमर्थता बताई थी. इसके साथ ही कहा था कि उसका बेटा वयस्क हो गया है और अब वह उसके भरण-पोषण दायित्व से मुक्त हो गया है, लेकिन एडीजे कोर्ट से उसे कोई राहत नहीं मिली. इस पर उसने हाईकोर्ट में अपील की थी.