जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने न्यायिक अधिकारियों को सुरक्षा देने के राज्य सरकार से यह स्पष्टीकरण देने के लिए कहा है कि उन्होंने इस संबंध में अभी तक क्या कार्रवाई की है और क्या नीति बनाई है. सीजे एमएम श्रीवास्तव व जस्टिस आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश प्रकरण में लिए गए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई करते हुए दिए.
सुनवाई के दौरान राज्य के एजी राजेन्द्र प्रसाद ने अदालत को बताया कि जजों की सुरक्षा के लिए सुरक्षाकर्मियों के 1025 पद रखे हैं और हाई सिक्योरिटी कैमरे लगाने के लिए पोल भी लगा दिए हैं. जिस पर न्यायमित्र अधिवक्ता डॉ. अभिनव शर्मा ने कहा कि राज्य सरकार ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि जो सुरक्षाकर्मी लगाए जाएंगे वे पुलिसकर्मी होंगे या होमगार्ड. वहीं, न्यायमित्र ने कहा कि शहर के अलावा अन्य जगहों पर न्यायिक अफसर सरकारी क्वार्टर या निजी आवासों में रहते हैं। ऐसे में उनकी सुरक्षा भी होनी चाहिए. जिस पर खंडपीठ ने राज्य सरकार से कहा कि निजी आवास व क्वार्टर में रहने वाले न्यायिक अफसरों की सुरक्षा के लिए क्या करेंगे.
गौरतलब है कि न्याय शिखा अपार्टमेंट में एक महिला न्यायिक अधिकारी के घर पर चोरी की वारदात हुई थी. इसके बाद सामने आया कि न्यायिक अफसरों की सुरक्षा के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हैं, जबकि उस क्षेत्र में 150 से ज्यादा जज रहते हैं. इस बारे में राजस्थान न्यायिक सेवा अधिकारी संघ के अध्यक्ष ने भी मुख्य सचिव को पत्र लिखा था, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
न्यायिक अफसरों की सुरक्षा में लापरवाही को गंभीर मानते हुए हाईकोर्ट ने स्वप्रेरित प्रसंज्ञान लिया था. पूर्व में अदालत ने मामले में सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह घर व कोर्ट कक्ष में उनकी सुरक्षा के लिए एक-एक सुरक्षाकर्मी लगाए. इसके साथ ही अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि जब न्यायिक अधिकारियों के घर ही सुरक्षित नहीं है तो आमजन में सुरक्षा का भरोसा कैसे पैदा होगा.