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उपचुनाव के परिणाम का कांग्रेस की सियासत पर दिखेगा असर, बेनीवाल-रोत के लिए भी चुनौती

सात सीटों पर उपचुनाव के परिणाम का कांग्रेस की अंदरूनी सियासत पर दिखेगा असर. बेनीवाल और रोत के सियासी कद पर भी दिखेगा प्रभाव.

Rajasthan Election Result 2024
उपचुनाव के परिणाम का असर (ETV Bharat GFX)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : 5 hours ago

जयपुर: राजस्थान में सात सीटों पर 13 नवंबर को हुए उपचुनाव में मतदाताओं ने किसे अपना विधायक चुना है, इसका फैसला शनिवार को हो जाएगा. सभी सात सीटों पर शनिवार को मतगणना होगी और ईवीएम में दर्ज नतीजे सबके सामने आ जाएंगे. राजनीतिक विश्लेषक श्याम सुंदर शर्मा के अनुसार इन नतीजों का जहां कांग्रेस की अंदरूनी सियासत पर असर पड़ेगा. वहीं, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सुप्रीमो व नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल और भारत आदिवासी पार्टी से बांसवाड़ा-डूंगरपुर सांसद राजकुमार रोत के सियासी कद पर भी इन नतीजों का साफ असर दिखाई देगा.

डोटासरा ने पांच सीटों पर दिखाया दम : उन्होंने बताया कि उपचुनाव के दौरान कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा दौसा में दीनदयाल बैरवा और देवली-उनियारा में केसी मीणा की नामांकन सभा को संबोधित करने पहुंचे थे. इसके बाद 8 से 10 नवंबर तक वे फिर से चुनावी अभियान पर निकले. इस दौरान उन्होंने रामगढ़ में आर्यन जुबैर खान, दौसा में दीनदयाल बैरवा, खींवसर में डॉ. रतन चौधरी और सलूंबर में रेशमा मीणा के समर्थन में चुनावी सभाएं की. हालांकि, वे चौरासी और झुंझुनू में प्रचार करने नहीं पहुंचे थे.

पढ़ें : Rajasthan: राजस्थान की 7 सीटों पर उपचुनाव, इन दिग्गजों की साख दांव पर

दौसा और देवली नामांकन भरवाने पहुंचे गहलोत : राजनीतिक विश्लेषक श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस पूरे उपचुनाव में दौसा और देवली-उनियारा में प्रत्याशियों की नामांकन सभा में ही पहुंचे. इस दौरान प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली भी उनके साथ थे. इसके बाद वे उपचुनाव वाली एक भी सीट पर पार्टी प्रत्याशियों का प्रचार करने नहीं पहुंचे. मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि उन्होंने उपचुनाव के प्रचार अभियान से दूरी बनाकर रखी. हालांकि, उनके पास महाराष्ट्र चुनाव में मुंबई और कोंकण रीजन के सीनियर ऑब्जर्वर का भी जिम्मा रहा. ऐसे में वे महाराष्ट्र में ज्यादा व्यस्त दिखे.

पढ़ें : Rajasthan: उपचुनाव का रणः सात सीटों में कहीं त्रिकोणीय तो कहीं अपनों की नाराजगी का खतरा! कांग्रेस-बीजेपी ने किए ये दावे

पायलट दो बार दौसा, एक बार देवली-रामगढ़ गए : सचिन पायलट ने दो बार दौसा में, एक बार रामगढ़ में और एक बार देवली-उनियारा में कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में सभाओं को संबोधित किया. सचिन पायलट के पास भी महाराष्ट्र के मराठवाड़ा रीजन के सीनियर ऑब्जर्वर का जिम्मा है. उन्होंने इस दौरान वायनाड (केरल) में प्रियंका गांधी के लिए भी प्रचार किया. जबकि झारखंड और मध्यप्रदेश में भी चुनावी सभाओं को संबोधित किया.

रामगढ़ में सक्रिय रहे जूली और जितेंद्र सिंह : उपचुनाव में दौसा और देवली-उनियारा में कांग्रेस प्रत्याशियों की नामांकन सभा के बाद से नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली का ध्यान लगातार अलवर जिले की रामगढ़ सीट पर केंद्रित रहा. इसी तरह भंवर जितेंद्र सिंह भी लगातार रामगढ़ सीट पर ही सक्रिय दिखे. इन दोनों नेताओं में रामगढ़ में आर्यन खान के नामांकन से लेकर चुनावी कार्यालय के उद्घाटन तक में सक्रिय भागीदारी निभाई. कई गांव-कस्बों में चुनावी सभाएं भी की.

कौनसी सीट से जुड़ी कांग्रेस के किस नेता की साख ? :

  • दौसा सीट उपचुनाव में सबसे चर्चित है. भाजपा से डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन के सामने कांग्रेस के दीनदयाल बैरवा हैं. दौसा पायलट परिवार की परंपरागत सीट रही है. यहीं से विधायक मुरारीलाल मीणा बाद में दौसा सांसद बने. इसके चलते कांग्रेस में सचिन पायलट और मुरारीलाल मीणा के लिए इस सीट के नतीजे अहम होंगे.
  • खींवसर में रालोपा सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल, भाजपा के रेवंतराम डांगा और कांग्रेस की डॉ. रतन चौधरी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है. इस सीट के नतीजों का हनुमान बेनीवाल पर तो असर पड़ेगा ही. कांग्रेस के प्रदर्शन का असर प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा पर भी पड़ेगा. यहां रालोपा-कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की चर्चा थी, लेकिन दोनों पार्टियां अलग-अलग लड़ीं.
  • झुंझुनू सीट कांग्रेस के ओला परिवार की परंपरागत सीट है, जहां सांसद बृजेंद्र ओला के बेटे अमित ओला कांग्रेस प्रत्याशी हैं. भाजपा के राजेंद्र भांबू और पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा निर्दलीय मैदान में हैं. प्रदेश की राजनीती में खास जगह रखने वाले ओला परिवार की राजनीतिक विरासत इस सीट के परिणाम से तय होगी.
  • सलूंबर सीट पर कांग्रेस की रेशमा मीणा, भाजपा की शांता देवी और भारत आदिवासी पार्टी के जितेश कटारा में मुकाबला है. शांता देवी दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा की पत्नी हैं. इस सीट के नतीजों का असर कांग्रेस में प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा पर पड़ेगा. भारत आदिवासी पार्टी की भविष्य की सियासत भी इस सीट के परिणाम पर काफी हद तक निर्भर करेगी.
  • टोंक जिले की देवली-उनियारा सीट उपचुनाव के मतदान और उसके बाद सबसे ज्यादा चर्चा में रही. इस सीट पर भाजपा के राजेंद्र गुर्जर, कांग्रेस के केसी मीणा और निर्दलीय नरेश मीणा के भाग्य का फैसला होगा. सचिन पायलट का इस सीट पर प्रभाव है, जबकि टोंक सांसद हरिशचंद्र मीणा पहले इसी सीट से विधायक रहे.
  • रामगढ़ सीट पर कांग्रेस के आर्यन जुबैर खान और भाजपा के सुखवंत सिंह के बीच सीधा मुकाबला है. कांग्रेस के जुबैर विधायक जुबैर खान के निधन से यह सीट खाली हुई थी. जुबैर खान की पत्नी साफिया भी इस सीट से विधायक रह चुकी हैं. इस सीट के नतीजों का नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और पूर्व मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह पर सीधा असर पड़ेगा.
  • चौरासी सीट पर भारत आदिवासी पार्टी के सांसद राजकुमार रोत की सीट है. उनके सांसद बनने के बाद उपचुनाव में पार्टी ने अनिल कटारा को मैदान में उतारा. जबकि भाजपा से कारीलाल ननोमा और कांग्रेस से युवा चेहरे के रूप में महेश रोत मैदान में हैं. महेश रोत को मौका देकर कांग्रेस ने भविष्य के लिए एक मजबूत चेहरा तैयार करने का दांव खेला है. इस सीट के नतीजों का भारत आदिवासी पार्टी और सांसद राजकुमार रोत के राजनीतिक भविष्य पर खास असर होगा.

जयपुर: राजस्थान में सात सीटों पर 13 नवंबर को हुए उपचुनाव में मतदाताओं ने किसे अपना विधायक चुना है, इसका फैसला शनिवार को हो जाएगा. सभी सात सीटों पर शनिवार को मतगणना होगी और ईवीएम में दर्ज नतीजे सबके सामने आ जाएंगे. राजनीतिक विश्लेषक श्याम सुंदर शर्मा के अनुसार इन नतीजों का जहां कांग्रेस की अंदरूनी सियासत पर असर पड़ेगा. वहीं, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के सुप्रीमो व नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल और भारत आदिवासी पार्टी से बांसवाड़ा-डूंगरपुर सांसद राजकुमार रोत के सियासी कद पर भी इन नतीजों का साफ असर दिखाई देगा.

डोटासरा ने पांच सीटों पर दिखाया दम : उन्होंने बताया कि उपचुनाव के दौरान कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा दौसा में दीनदयाल बैरवा और देवली-उनियारा में केसी मीणा की नामांकन सभा को संबोधित करने पहुंचे थे. इसके बाद 8 से 10 नवंबर तक वे फिर से चुनावी अभियान पर निकले. इस दौरान उन्होंने रामगढ़ में आर्यन जुबैर खान, दौसा में दीनदयाल बैरवा, खींवसर में डॉ. रतन चौधरी और सलूंबर में रेशमा मीणा के समर्थन में चुनावी सभाएं की. हालांकि, वे चौरासी और झुंझुनू में प्रचार करने नहीं पहुंचे थे.

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दौसा और देवली नामांकन भरवाने पहुंचे गहलोत : राजनीतिक विश्लेषक श्याम सुंदर शर्मा कहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस पूरे उपचुनाव में दौसा और देवली-उनियारा में प्रत्याशियों की नामांकन सभा में ही पहुंचे. इस दौरान प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली भी उनके साथ थे. इसके बाद वे उपचुनाव वाली एक भी सीट पर पार्टी प्रत्याशियों का प्रचार करने नहीं पहुंचे. मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि उन्होंने उपचुनाव के प्रचार अभियान से दूरी बनाकर रखी. हालांकि, उनके पास महाराष्ट्र चुनाव में मुंबई और कोंकण रीजन के सीनियर ऑब्जर्वर का भी जिम्मा रहा. ऐसे में वे महाराष्ट्र में ज्यादा व्यस्त दिखे.

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पायलट दो बार दौसा, एक बार देवली-रामगढ़ गए : सचिन पायलट ने दो बार दौसा में, एक बार रामगढ़ में और एक बार देवली-उनियारा में कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में सभाओं को संबोधित किया. सचिन पायलट के पास भी महाराष्ट्र के मराठवाड़ा रीजन के सीनियर ऑब्जर्वर का जिम्मा है. उन्होंने इस दौरान वायनाड (केरल) में प्रियंका गांधी के लिए भी प्रचार किया. जबकि झारखंड और मध्यप्रदेश में भी चुनावी सभाओं को संबोधित किया.

रामगढ़ में सक्रिय रहे जूली और जितेंद्र सिंह : उपचुनाव में दौसा और देवली-उनियारा में कांग्रेस प्रत्याशियों की नामांकन सभा के बाद से नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली का ध्यान लगातार अलवर जिले की रामगढ़ सीट पर केंद्रित रहा. इसी तरह भंवर जितेंद्र सिंह भी लगातार रामगढ़ सीट पर ही सक्रिय दिखे. इन दोनों नेताओं में रामगढ़ में आर्यन खान के नामांकन से लेकर चुनावी कार्यालय के उद्घाटन तक में सक्रिय भागीदारी निभाई. कई गांव-कस्बों में चुनावी सभाएं भी की.

कौनसी सीट से जुड़ी कांग्रेस के किस नेता की साख ? :

  • दौसा सीट उपचुनाव में सबसे चर्चित है. भाजपा से डॉ. किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन के सामने कांग्रेस के दीनदयाल बैरवा हैं. दौसा पायलट परिवार की परंपरागत सीट रही है. यहीं से विधायक मुरारीलाल मीणा बाद में दौसा सांसद बने. इसके चलते कांग्रेस में सचिन पायलट और मुरारीलाल मीणा के लिए इस सीट के नतीजे अहम होंगे.
  • खींवसर में रालोपा सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल, भाजपा के रेवंतराम डांगा और कांग्रेस की डॉ. रतन चौधरी के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है. इस सीट के नतीजों का हनुमान बेनीवाल पर तो असर पड़ेगा ही. कांग्रेस के प्रदर्शन का असर प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा पर भी पड़ेगा. यहां रालोपा-कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की चर्चा थी, लेकिन दोनों पार्टियां अलग-अलग लड़ीं.
  • झुंझुनू सीट कांग्रेस के ओला परिवार की परंपरागत सीट है, जहां सांसद बृजेंद्र ओला के बेटे अमित ओला कांग्रेस प्रत्याशी हैं. भाजपा के राजेंद्र भांबू और पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा निर्दलीय मैदान में हैं. प्रदेश की राजनीती में खास जगह रखने वाले ओला परिवार की राजनीतिक विरासत इस सीट के परिणाम से तय होगी.
  • सलूंबर सीट पर कांग्रेस की रेशमा मीणा, भाजपा की शांता देवी और भारत आदिवासी पार्टी के जितेश कटारा में मुकाबला है. शांता देवी दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा की पत्नी हैं. इस सीट के नतीजों का असर कांग्रेस में प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा पर पड़ेगा. भारत आदिवासी पार्टी की भविष्य की सियासत भी इस सीट के परिणाम पर काफी हद तक निर्भर करेगी.
  • टोंक जिले की देवली-उनियारा सीट उपचुनाव के मतदान और उसके बाद सबसे ज्यादा चर्चा में रही. इस सीट पर भाजपा के राजेंद्र गुर्जर, कांग्रेस के केसी मीणा और निर्दलीय नरेश मीणा के भाग्य का फैसला होगा. सचिन पायलट का इस सीट पर प्रभाव है, जबकि टोंक सांसद हरिशचंद्र मीणा पहले इसी सीट से विधायक रहे.
  • रामगढ़ सीट पर कांग्रेस के आर्यन जुबैर खान और भाजपा के सुखवंत सिंह के बीच सीधा मुकाबला है. कांग्रेस के जुबैर विधायक जुबैर खान के निधन से यह सीट खाली हुई थी. जुबैर खान की पत्नी साफिया भी इस सीट से विधायक रह चुकी हैं. इस सीट के नतीजों का नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और पूर्व मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह पर सीधा असर पड़ेगा.
  • चौरासी सीट पर भारत आदिवासी पार्टी के सांसद राजकुमार रोत की सीट है. उनके सांसद बनने के बाद उपचुनाव में पार्टी ने अनिल कटारा को मैदान में उतारा. जबकि भाजपा से कारीलाल ननोमा और कांग्रेस से युवा चेहरे के रूप में महेश रोत मैदान में हैं. महेश रोत को मौका देकर कांग्रेस ने भविष्य के लिए एक मजबूत चेहरा तैयार करने का दांव खेला है. इस सीट के नतीजों का भारत आदिवासी पार्टी और सांसद राजकुमार रोत के राजनीतिक भविष्य पर खास असर होगा.
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