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मजदूर-चरवाहे की बेटियां बनीं नेशनल फुटबॉल चैंपियन, राजस्थान की टीम ने कर्नाटक को 3-1 से रौंदा - National Football Championship

Girls National Football Championship, बीकानेर के नोखा की ढिंगसरी गांव की बेटियों ने कमाल कर दिखाया है. कर्नाटक के बेलगांव में हुई नेशनल फुटबॉल चैंपियनशिप अंडर-17 बालिका वर्ग में राजस्थान टीम ने फाइनल मुकाबले में कर्नाटक को 3-1 से हराकर चैंपियनशिप जीती है.

राजस्थान टीम ने जीती नेशनल चैंपियनशिप
राजस्थान टीम ने जीती नेशनल चैंपियनशिप (ETV Bharat Karnataka)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Aug 11, 2024, 3:59 PM IST

बीकानेर पहुंचने पर चैंपियन टीम का रेलवे स्टेशन पर स्वागत (ETV Bharat Bikaner)

बीकानेर : राजस्थान के नोखा तहसील के ढिंगसरी गांव की बेटियों ने कर्नाटक के बेलगांव में हुई अंडर-17 नेशनल फुटबॉल चैंपियनशिप में जीत हासिल की है. इस टीम में गांव की 12 बेटियां बतौर खिलाड़ी शामिल हैं और गांव की बेटी ही टीम की कप्तान और उपकप्तान भी है. राजस्थान टीम में खेल रही सभी बेटियां गांव में ही संचालित मगनसिंह राजवी फुटबॉल क्लब से ट्रेनिंग ले रही हैं. रविवार को बीकानेर पहुंचने पर चैंपियन टीम का रेलवे स्टेशन पर स्वागत किया गया.

कोच ने बदली तस्वीर तो बेटियों ने दिया साथ : कोच विक्रम सिंह टीम की सफलता पर भावुक होते हुए कहते हैं कि जब उन्होंने अकादमी शुरू की तब संघर्ष देखने को मिला, लेकिन आज छोटी सी आबादी वाले इस गांव में हर घर से एक फुटबॉल खिलाड़ी प्रशिक्षण ले रहा है. आने वाले दिनों में भारतीय टीम में गांव के खिलाड़ी नजर आएंगे. इसको लेकर भी प्रयास कर रहे हैं. दरअसल, भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान, अर्जुन अवार्डी एवं राजस्थान फुटबॉल के ब्रांड एम्बेसडर मगनसिंह राजवी के पुत्र और भारतीय रेलवे के कर्मचारी विक्रम सिंह राजवी ने अपने पिता और खुद के फुटबॉल के जुनून के चलते गांव में अपने पिता के नाम से एक अकादमी शुरू की. गांव में एक-एक घर जाकर उन्होंने गांव वालों से फुटबॉल खेलने के लिए प्रेरित किया. आज करीब 6 साल बाद उनके संघर्ष को एक मुकाम मिला है.

पढ़ें. बॉल बैडमिंटन की राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में टोंक बना विजेता

साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं सभी खिलाड़ी : कोच विक्रम सिंह ने गांव में रहने वाले लोगों से जब बात की तो शुरुआत में काफी संघर्ष देखने को मिला और लोग फुटबॉल खेलने के लिए बच्चों को भेजने के लिए तैयार नहीं हुई, लेकिन धीरे-धीरे उनका संघर्ष काम आया और आज गांव के साधारण मजदूर, चरवाहे और श्रमिक की बेटियां अकादमी में ट्रेनिंग ले रहीं हैं. चैंपियन टीम की खिलाड़ी भी इन्हीं परिवारों से है, जिनमें किसी के पिता मजदूर हैं तो किसी खिलाड़ी के पिता गांव में ही बकरी चराने का काम करते हैं.

अर्जुन अवॉर्डी पहुंचे स्वागत में : चैंपियन ट्रॉफी जीतने के बाद रविवार को टीम और कोच बीकानेर पहुंचे, जहां रेलवे स्टेशन पर कोच विक्रम सिंह के पिता और भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान और अर्जुन अवॉर्डी मगन सिंह राजवी, पूर्व विधायक बिहारीलाल बिश्नोई सहित गांव के अनेक लोग भी स्वागत के लिए पहुंचे. ढिंगसरी गांव के ही मूल निवासी मगन सिंह ने कहा कि उनके लिए यह दोहरी खुशी है. एक तो उनके गांव का नाम रोशन हुआ है और गांव की बेटियां इसका कारण हैं. दूसरा उनके बेटे की कोचिंग सफल हुई है. वहीं, पूर्व विधायक बिहारी लाल बिश्नोई ने कहा कि निश्चित रूप से गांव की बेटियों की यह सफलता आने वाले कई सालों तक याद रखी जाएगी.

बीकानेर पहुंचने पर चैंपियन टीम का रेलवे स्टेशन पर स्वागत (ETV Bharat Bikaner)

बीकानेर : राजस्थान के नोखा तहसील के ढिंगसरी गांव की बेटियों ने कर्नाटक के बेलगांव में हुई अंडर-17 नेशनल फुटबॉल चैंपियनशिप में जीत हासिल की है. इस टीम में गांव की 12 बेटियां बतौर खिलाड़ी शामिल हैं और गांव की बेटी ही टीम की कप्तान और उपकप्तान भी है. राजस्थान टीम में खेल रही सभी बेटियां गांव में ही संचालित मगनसिंह राजवी फुटबॉल क्लब से ट्रेनिंग ले रही हैं. रविवार को बीकानेर पहुंचने पर चैंपियन टीम का रेलवे स्टेशन पर स्वागत किया गया.

कोच ने बदली तस्वीर तो बेटियों ने दिया साथ : कोच विक्रम सिंह टीम की सफलता पर भावुक होते हुए कहते हैं कि जब उन्होंने अकादमी शुरू की तब संघर्ष देखने को मिला, लेकिन आज छोटी सी आबादी वाले इस गांव में हर घर से एक फुटबॉल खिलाड़ी प्रशिक्षण ले रहा है. आने वाले दिनों में भारतीय टीम में गांव के खिलाड़ी नजर आएंगे. इसको लेकर भी प्रयास कर रहे हैं. दरअसल, भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान, अर्जुन अवार्डी एवं राजस्थान फुटबॉल के ब्रांड एम्बेसडर मगनसिंह राजवी के पुत्र और भारतीय रेलवे के कर्मचारी विक्रम सिंह राजवी ने अपने पिता और खुद के फुटबॉल के जुनून के चलते गांव में अपने पिता के नाम से एक अकादमी शुरू की. गांव में एक-एक घर जाकर उन्होंने गांव वालों से फुटबॉल खेलने के लिए प्रेरित किया. आज करीब 6 साल बाद उनके संघर्ष को एक मुकाम मिला है.

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साधारण परिवार से ताल्लुक रखती हैं सभी खिलाड़ी : कोच विक्रम सिंह ने गांव में रहने वाले लोगों से जब बात की तो शुरुआत में काफी संघर्ष देखने को मिला और लोग फुटबॉल खेलने के लिए बच्चों को भेजने के लिए तैयार नहीं हुई, लेकिन धीरे-धीरे उनका संघर्ष काम आया और आज गांव के साधारण मजदूर, चरवाहे और श्रमिक की बेटियां अकादमी में ट्रेनिंग ले रहीं हैं. चैंपियन टीम की खिलाड़ी भी इन्हीं परिवारों से है, जिनमें किसी के पिता मजदूर हैं तो किसी खिलाड़ी के पिता गांव में ही बकरी चराने का काम करते हैं.

अर्जुन अवॉर्डी पहुंचे स्वागत में : चैंपियन ट्रॉफी जीतने के बाद रविवार को टीम और कोच बीकानेर पहुंचे, जहां रेलवे स्टेशन पर कोच विक्रम सिंह के पिता और भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान और अर्जुन अवॉर्डी मगन सिंह राजवी, पूर्व विधायक बिहारीलाल बिश्नोई सहित गांव के अनेक लोग भी स्वागत के लिए पहुंचे. ढिंगसरी गांव के ही मूल निवासी मगन सिंह ने कहा कि उनके लिए यह दोहरी खुशी है. एक तो उनके गांव का नाम रोशन हुआ है और गांव की बेटियां इसका कारण हैं. दूसरा उनके बेटे की कोचिंग सफल हुई है. वहीं, पूर्व विधायक बिहारी लाल बिश्नोई ने कहा कि निश्चित रूप से गांव की बेटियों की यह सफलता आने वाले कई सालों तक याद रखी जाएगी.

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