जयपुर : प्रदेश की 7 सीटों पर 13 नवंबर को उपचुनाव के लिए मतदान होगा. उपचुनाव के लिए कांग्रेस-बीजेपी के साथ बीएपी, आरएलपी ने मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है. हालांकि, पूर्व के चुनावी आंकड़े देखें तो 2 सीटें ऐसी हैं, जहां बीजेपी और बीएपी में सीधा मुकाबला दिख रहा है. वहीं, एक सीट पर बीजेपी का मुकाबला आरएलपी से है. इसके अलावा बाकी तीन सीटों पर कांग्रेस और भाजपा में सीधा मुकाबला बनता हुआ नजर आ रहा है. हालांकि, दो सीट पर निर्दलीय के चुनावी मैदान में होने से कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों को कड़ी चुनौती मिलती हुई दिखाई दे रही है. इस चुनाव में कांग्रेस और बीएपी को बागियों से तो बीजेपी को भितरघात से खतरा हो सकता है.
बागियों पर बीजेपी कामयाब, कांग्रेस फेल : वैसे तो प्रदेश की 7 सीटों हो रहे विधानसभा के उपचुनाव हैं, लेकिन इन चुनाव से भाजपा में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ की प्रतिष्ठा दांव पर है. सत्ता में आने के बाद श्रीकरणपुर को छोड़ दें तो ये बड़ी परीक्षा सीएम के लिए है. इसके साथ अध्यक्ष पद संभालने के बाद मदन राठौड़ की तो ये पहली परीक्षा है. सत्ता और संगठन ने मिलकर सत्ताधारी बीजेपी ने डैमेज कंट्रोल करते हुए नाराज नेताओं को मना लिया और जनाधार वाले बागियों को मैदान में नहीं रहने दिया. फिर रामगढ़ से जय आहूजा और नरेंद्र मीणा को, तो झुंझुनू से बबलू चौधरी, देवली-उनियारा से विजय बैंसला को बागी नहीं होने दिया, लेकिन कांग्रेस और भारत आदिवसी पार्टी अपनों को मनाने में कामयाब नहीं हो सकी. देवली-उनियारा सीट पर कांग्रेस के बागी नरेश मीणा मैदान में डटे हैं. चौरासी सीट पर बीएपी के बागी बादमी लाल समीकरण बिगाड़ रहे हैं.
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राजनीति के जानकार कहते हैं कि कांग्रेस में तो नाराजगी साफ दिख रही है, लेकिन बीजेपी में इस बार छिपी हुई नाराजगी और लोकल समीकरणों से छिपे हुए भितरघात का डर है. वहीं, बीजेपी प्रदेश महामंत्री श्रवण सिंह बागड़ी ने पार्टी में किसी तरह की भितरघात से इनकार किया है. बागड़ी ने कहा कि पार्टी एकजुट है. कहीं कोई ना नाराजगी है और ना ही भितरघात. वहीं, बागियों की नाराजगी से गुजर रही कांग्रेस को नहीं लगता कि उन्हें बागियों से कोई नुकसान होगा. कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविन्द सिंह डोटासरा ने कहा कि पार्टी में कहीं कोई नाराजगी नहीं है, जो बागी होने का दिखावा कर रहे हैं, उनसे चुनाव में कोई फर्क नहीं पड़ेगा. ये वो लोग हैं जो जनता के हित के लिए नहीं, बल्कि अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए चुनाव लड़ते हैं.
चौरासी विधानसभा सीट : 2 लाख 51 हजार से ज्यादा मतदाताओं वाली इस आदिवासी बाहुल्य चौरासी सीट पर इस बार बीएपी के बागी बादमी लाल ने मुकाबले को रोचक बना दिया है. राजकुमार रोत के सांसद बनने से खाली हुई सीट पर आदिवासियों के मुद्दे हावी हैं. 2023 के चुनाव में रोत 61 हजार से अधिक मतों के बड़े अंतराल से जीते थे. यहां बीएपी उम्मीदवार अनिल कटारा, बीजेपी से कारीलाल ननोमा, कांग्रेस उम्मीदवार महेश रोत और बीएपी के बागी बादामी लाल के बीच मुकाबला है.
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सलूंबर विधानसभा सीट : अमृत लाल मीणा के निधन के बाद खाली हुई सलूंबर सीट पर कांग्रेस, बीजेपी और बीएपी से कोई बागी नहीं है. 2 लाख 95 हजार से अधिक मतदाता वाली इस सीट पर बीजेपी ने शांता देवी को टिकट देकर सहानुभूति का दांव खेला है, लेकिन परिवार के सदस्य को टिकट देने से पार्टी में स्थानीय नेताओं की अंदरूनी नाराजगी से नुकसान उठाना पड़ सकता है. वहीं, कांग्रेस को भी यहां भितरघात का खतरा हो सकता है. वहीं, बीएपी ने उम्मीदवार जितेश कुमार, जो 2023 विधानसभा चुनाव में 51 हजार से अधिक वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहे, वो इस सीट पर मैदान में हैं.
देवली-उनियारा विधानसभा सीट : 2 लाख 99 हजार से अधिक मतदाताओं वाली इस सीट पर कांग्रेस के बागी नरेश मीणा ने मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है. नरेश मीणा को मनाने के कांग्रेस के प्रयास कामयाब नहीं हुए, जबकि बीजेपी में बगावत नहीं होने से मजबूती से चुनावी मैदान में है, लेकिन पिछली बार के उम्मीदवार विजय बैंसला टिकट नहीं मिलने से नाराज हैं. वहीं, टिकट की उम्मीद में रहे पूर्व मंत्री प्रभुलाल सैनी की खामोशी भी इस सीट पर बीजेपी आंतरिक नुकसान पहुंचा सकती है. वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार कस्तूरचंद मीणा को बागी चुनाव लड़ रहे नरेश मीणा से मीणा वोट बैंक में तो नुकसान हो सकता है. साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री नमोनारायण मीणा की नाराजगी का भी खामियाजा उठाना पड़ सकता है.
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झुंझुनू विधानसभा सीट : ओला परिवार की मजबूत सीटों में शुमार झुंझुनू सीट पर कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे राजेंद्र गुढ़ा के निर्दलीय मैदान में होने से इस बार मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है. 2 लाख 70 हजार से अधिक मतदाता वाली इस सीट पर कांग्रेस और बीजेपी अंदरखाने नाराज नेताओं से नुकसान का खतरा हो सकता है. पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा के मैदान में डटे रहने को खुद के लिए फायदेमंद मान रहे हैं.
दौसा विधानसभा सीट : प्रदेश की हॉट सीट मानी जा रही दौसा में कांग्रेस और बीजेपी को बागियों का डर नहीं है, लेकिन बीजेपी में परिवारवाद के चलते अंदरखाने नाराजगी दिखाई पड़ सकती है. 2 लाख 63 हजार से अधिक मतदाता वाली इस सीट पर मंत्री पद से इस्तीफा दे चुके किरोड़ी लाल मीणा के भाई जगमोहन मीणा चुनावी मैदान में हैं. वहीं, कांग्रेस के लिहाज से ये सीट पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट का लोकसभा क्षेत्र रहा है. पायलट इस सीट पर मजबूती से चुनावी प्रचार में जुट गए हैं, ऐसे में यह सीट हाई प्रोफाइल बन गई है.
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खींवसर विधानसभा सीट : पिछले तीन चुनाव से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के कब्जे वाली खींवसर सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय बना हुआ है. इस सीट पर 2 लाख 83 हजार से अधिक मतदाता प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला करेंगे. इस सीट पर आरएलपी सांसद हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल, कांग्रेस से रतन चौधरी और बीजेपी से पिछले उम्मीदवार रेवंत राम डांगा के बीच मुकाबला है. 2023 के चुनाव में मुकाबला बेनीवाल और डांगा के बीच में रहा था. डांगा महज 2100 के करीब वोट के अंतर से हारे थे, ऐसे में इस बार भी मुकाबला आरएलपी और बीजेपी के बीच दिखाई दे रहा है.
रामगढ़ विधानसभा सीट : 2 लाख 72 हजार से अधिक मतदाता वाली रामगढ़ सीट कांग्रेस विधायक जुबेर खान के निधन से खाली हुई है. इस सीट पर हो रहे उपचुनाव में बीजेपी और कांग्रेस से कोई बागी नहीं है. बीजेपी ने पिछले उम्मीदवार जय आहूजा और बागी तेवर दिखा रहे नरेंद्र मीणा को मना लिया है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन राठौड़ लगातर दो दिन तक रामगढ़ में रुके और नाराज नेताओं को मानाने में जुटे रहे. कांग्रेस ने दिवंगत विधायक जुबेर खान के बेटे आर्यन जुबेर खान को टिकट देकर सहानुभूति कार्ड चला है.