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आस्था पर भारी अंधविश्वास, परंपरा के नाम पर धधकते अंगारों पर से निकलते हैं ग्रामीण - superstition outweighs faith

देश-प्रदेश के कई अंचलों में आज भी रूढ़िवादी परंपराएं देखने मिलती हैं. रायसेन जिले में भी होली पर दहकते अंगारों पर से निकलने की परंपरा है. ग्रामीणों का मानना है कि उन्हें कोई नुकसान नहीं होता लेकिन आस्था पर अंधविश्वास भारी नजर आता है.

SUPERSTITION OUTWEIGHS FAITH
अंगारों पर चलने की परंपरा
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 26, 2024, 8:52 AM IST

धधकते अंगारों पर से निकलने की परंपरा

रायसेन। मध्यप्रदेश में होली का पर्व अलग-अलग क्षेत्र में अपने अलग-अलग अंदाज में मनाया जाता है लेकिन कुछ रूढ़िवादी परंपराएं आज भी नजर आती हैं. ग्रामीण अंचल में ये आम बात भी है. रायसेन जिले में भी परंपरा के नाम पर धधकते अंगारों पर से निकलने की परंपरा है. गांव वालों का कहना है कि ऐसा करने से साल भर ना तो बीमारियां होती हैं और ना ही गांव में प्राकृतिक आपदा आती है. इसे आप यही कहेंगे आस्था पर भारी है अंधविश्वास.

अंगारों पर चलने की परंपरा

देश के अलग-अलग हिस्सों में होली हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है. कहीं फूलों से तो कही रंगों से होली खेली जाती है, तो कहीं पर लोग एक दूसरे पर डंडा बरसाते हुए होली खेलते हैं लेकिन जिले के इन दो गांव में अंगारों पर चलने के बाद होली खेलने का रिवाज है. इस पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है लेकिन रायसेन जिले की सिलवानी तहसील के दो गांवों में होलिका दहन के दिन अंगारों पर चलने की अनोखी परंपरा है.

'प्राकृतिक आपदाएं नहीं आतीं'

सिलवानी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले मेहगंवा में यह परंपरा पांच सौ वर्ष पुरानी है और चंद्रपुरा में इसे 10 से 15 साल पूरे हो चुके हैं. ग्रामीणों का मानना ​​है कि अंगारों पर से निकलने के बाद होली खेलने से गांव पर प्राकृतिक आपदाएं और ग्रामीण बीमारियों से दूर रहते हैं. आस्था व श्रद्धा के चलते ग्रामीण धधकते हुए अंगारों के बीच से नंगे पैर चलते हैं. ग्रामीणों की आस्था का आलम यह है कि नाबालिग बच्चों से लेकर महिलाएं,बुजुर्ग तक अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं.

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पैरों में नहीं पड़ते छाले

मेहगंवा के रहने वाले मनोज शास्त्री बताते हैं कि "मेहगंवा और चन्द्रपुरा गांव में हर साल होलिका दहन के अंगारों पर सभी ग्रामीण धधकते हुए अंगारों के बीच से नंगे पैर निकलते हैं. ग्रामीणों के अनुसार बच्चों और महिलाओं से लेकर बुजुर्ग तक के पैर आग पर चलने के बाद भी नहीं जलते और ना ही छाले पड़ते हैं. ऐसा करने से किसी भी व्यक्ति को कोई परेशानी नहीं होती है".

धधकते अंगारों पर से निकलने की परंपरा

रायसेन। मध्यप्रदेश में होली का पर्व अलग-अलग क्षेत्र में अपने अलग-अलग अंदाज में मनाया जाता है लेकिन कुछ रूढ़िवादी परंपराएं आज भी नजर आती हैं. ग्रामीण अंचल में ये आम बात भी है. रायसेन जिले में भी परंपरा के नाम पर धधकते अंगारों पर से निकलने की परंपरा है. गांव वालों का कहना है कि ऐसा करने से साल भर ना तो बीमारियां होती हैं और ना ही गांव में प्राकृतिक आपदा आती है. इसे आप यही कहेंगे आस्था पर भारी है अंधविश्वास.

अंगारों पर चलने की परंपरा

देश के अलग-अलग हिस्सों में होली हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है. कहीं फूलों से तो कही रंगों से होली खेली जाती है, तो कहीं पर लोग एक दूसरे पर डंडा बरसाते हुए होली खेलते हैं लेकिन जिले के इन दो गांव में अंगारों पर चलने के बाद होली खेलने का रिवाज है. इस पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है लेकिन रायसेन जिले की सिलवानी तहसील के दो गांवों में होलिका दहन के दिन अंगारों पर चलने की अनोखी परंपरा है.

'प्राकृतिक आपदाएं नहीं आतीं'

सिलवानी क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले मेहगंवा में यह परंपरा पांच सौ वर्ष पुरानी है और चंद्रपुरा में इसे 10 से 15 साल पूरे हो चुके हैं. ग्रामीणों का मानना ​​है कि अंगारों पर से निकलने के बाद होली खेलने से गांव पर प्राकृतिक आपदाएं और ग्रामीण बीमारियों से दूर रहते हैं. आस्था व श्रद्धा के चलते ग्रामीण धधकते हुए अंगारों के बीच से नंगे पैर चलते हैं. ग्रामीणों की आस्था का आलम यह है कि नाबालिग बच्चों से लेकर महिलाएं,बुजुर्ग तक अंगारों पर नंगे पैर चलते हैं.

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पैरों में नहीं पड़ते छाले

मेहगंवा के रहने वाले मनोज शास्त्री बताते हैं कि "मेहगंवा और चन्द्रपुरा गांव में हर साल होलिका दहन के अंगारों पर सभी ग्रामीण धधकते हुए अंगारों के बीच से नंगे पैर निकलते हैं. ग्रामीणों के अनुसार बच्चों और महिलाओं से लेकर बुजुर्ग तक के पैर आग पर चलने के बाद भी नहीं जलते और ना ही छाले पड़ते हैं. ऐसा करने से किसी भी व्यक्ति को कोई परेशानी नहीं होती है".

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