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क्या आप ऐसे वटवृक्ष को जानते हैं जो कई युगों से है विराजमान, प्राप्त है माता सीता का वरदान, मनोकामनाएं होती हैं पूरी - Akshay Vat Vriksha In Gaya

Vat Savitri 2024 In Gaya: गया में माना जाता है कि देश का पहला ऐसा वट-वृक्ष है, जो कई युगों से आज भी विराजमान है. इस वट वृक्ष से कई शाखाएं निकली है और यह वट वृक्ष साक्षात रूप में मौजूद है. देश का पहला ऐसा वट वृक्ष जो कई युगों से है साक्षात विराजमान है, जिसे माता सीता का वरदान है प्राप्त, मनोकामनाएं होती है पूर्ण. आगे पढ़ें पूरी खबर.

Akshay Vat Vriksha In Gaya
गया का अक्षय वट वृक्ष (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jun 6, 2024, 1:45 PM IST

गया: बिहार के गया में है एक अनोखा वट वृक्ष, जिसे लेकर कई धार्मिक कथाएं हैं. कहा जाता है कि इस अक्षय वटवृक्ष को माता सीता का वरदान प्राप्त है. वरदान प्राप्त इस वट वृक्ष की शाखाओं पर लोग अपनी मन्नत के धागे बांधते हैं. गहरी आस्था है कि मन्नत पूर्ण होती है और बड़े से बड़े कष्ट दूर हो जाते हैं. वहीं मोक्ष धाम विष्णुपद में पिंडदान करने के बाद अक्षय वट में ही गयापाल पंडा तीर्थथात्री को विदाई दी जाती है.

गया में है अक्षय वट वृक्ष: अक्षय वट वृक्ष रामायण काल से है और आज भी मौजूद है. इस वट वृक्ष को अक्षय का वरदान प्राप्त है. शास्त्र पुराणों के अनुसार माता सीता ने इस वट वृक्ष को ये वरदान दिया था और कई युगों से आज भी ये यहां विराजमान है. इस वट वृक्ष को लेकर कहा जाता है, कि जब तक सूर्य, चंद्रमा, आकाश रहेगा, तब तक यह अक्षय वटवृक्ष मौजूद रहेगा.

Akshay Vat Vriksha In Gaya
गया का अक्षय वट वृक्ष (ETV Bharat)

रामायण काल से जुड़ी है कथा: गया के विष्णुपद पंंचकोशी तीर्थ में यह अक्षय वटवृक्ष है. इसकी कथा रामायण काल से जुड़ी हुई है. भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता वनवास के दौरान जंगल में पहुंचे थे. इस बीच में राजा दशरथ का निधन हो गया था. पिता के निधन के बाद श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पिंडदान करने पहुंचे थे, जो गयाजी की भूमि थी. पिंडदान की सामग्री लाने राम, लक्ष्मण जंगल की ओर चले गए. माता सीता अकेली थी. इस बीच अचानक आकाशवाणी हुई. यह आकाशवाणी राजा दशरथ की थी. इसमें कहा गया तुरंत पिंडदान कर दो, यह सुनकर सीता माता को कुछ समझ में नहीं आया.

Akshay Vat Vriksha In Gaya
गया का अक्षय वट वृक्ष (ETV Bharat)

माता सीता ने किया पिंडदान: कहा जाता है कि एक बार फिर से आकाशवाणी हुई कि शुभ मुहूर्त निकला जा रहा है, सूर्यास्त के बाद स्वर्ग का रास्ता बंद हो जाएगा, तो सीता माता ने कहा कि मेरे पास कुछ भी नहीं है, जिससे कि मैं पिंडदान करूं. राम और लक्ष्मण जी पिंडदान की सामग्री लाने गए हैं, तो आकाशवाणी हुई कि सोचो मत, यह शुभ मुहूर्त है. इसके बाद माता सीता ने पास से बहती फल्गु, केतकी फूल, गाय, ब्राह्मण और वट वृक्ष को साक्षी मानकर बालू से अपने ससुर का पिंडदान कर दिया.

Akshay Vat Vriksha In Gaya
गया का अक्षय वट वृक्ष (ETV Bharat)

सिर्फ वट वृक्ष ने बोला था सच: वहीं पिंडदान की सामग्री लेकर जंगल से जब भगवान राम और लक्ष्मण लौटे, तो माता सीता ने सारी बात बताई. दोनों भाइयों को विश्वास नहीं हुआ तो उन्होंने साक्षी जानना चाहा. माता सीता ने साक्ष्य के रूप में फल्गु, केतकी पुष्प, गाय, ब्राह्मण और वट वृक्ष का नाम लिया. हालांकि वट वृक्ष को छोड़कर सभी ने झूठ बोल दिया. इससे कुपित होकर माता सीता ने केतकी फुल, फल्गु, ब्राह्मण, गाय को श्रापित किया. वहीं वटवृक्ष को अक्षय का वरदान दिया. कहा जाता है कि तभी से फल्गु अंत सलिला हो गई है. वहीं अन्य के श्रापित होने के संबंध में भी कथाएं हैं.

Akshay Vat Vriksha In Gaya
गया का अक्षय वट वृक्ष (ETV Bharat)

वट वृक्ष को मिला वरदान: वहीं वट वृक्ष को माता सीता ने अक्षय होने का वरदान दिया. तब से कई युगों से वटवृक्ष अक्षय वट के नाम से प्रसिद्ध होकर गया जी में विराजमान है. यहां पूजा करने काफी संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं और अपनी मन्नत भी मांगते हैं. इस तरह अक्षय वट कई प्राचीन धार्मिक कथाओं के साथ आज भी अक्षय हैं और संभवत: देश में ऐसा पहला वटवृक्ष है, जो कई युगों से विराजमान है. काहा जाता है ऐसा माता सीता के वरदान के कारण है. आज भी अंत: सलिला फल्गु मौजूद है, जिसमें वर्षा ऋतु में जल की धारा दृष्टि गोचर होती है. वहीं अन्य ऋतु में यहां केवल रेत भरा होता है. रेत को हाथों से हटाने पर नीचे से स्वच्छ निर्मल जल निकल आता है.

पढ़ें-वट सावित्री व्रत है आज, सुहाग की रक्षा के लिए पूजा, जानें शुभ मुहूर्त - Vat Savitri Vrat 2024

गया: बिहार के गया में है एक अनोखा वट वृक्ष, जिसे लेकर कई धार्मिक कथाएं हैं. कहा जाता है कि इस अक्षय वटवृक्ष को माता सीता का वरदान प्राप्त है. वरदान प्राप्त इस वट वृक्ष की शाखाओं पर लोग अपनी मन्नत के धागे बांधते हैं. गहरी आस्था है कि मन्नत पूर्ण होती है और बड़े से बड़े कष्ट दूर हो जाते हैं. वहीं मोक्ष धाम विष्णुपद में पिंडदान करने के बाद अक्षय वट में ही गयापाल पंडा तीर्थथात्री को विदाई दी जाती है.

गया में है अक्षय वट वृक्ष: अक्षय वट वृक्ष रामायण काल से है और आज भी मौजूद है. इस वट वृक्ष को अक्षय का वरदान प्राप्त है. शास्त्र पुराणों के अनुसार माता सीता ने इस वट वृक्ष को ये वरदान दिया था और कई युगों से आज भी ये यहां विराजमान है. इस वट वृक्ष को लेकर कहा जाता है, कि जब तक सूर्य, चंद्रमा, आकाश रहेगा, तब तक यह अक्षय वटवृक्ष मौजूद रहेगा.

Akshay Vat Vriksha In Gaya
गया का अक्षय वट वृक्ष (ETV Bharat)

रामायण काल से जुड़ी है कथा: गया के विष्णुपद पंंचकोशी तीर्थ में यह अक्षय वटवृक्ष है. इसकी कथा रामायण काल से जुड़ी हुई है. भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता वनवास के दौरान जंगल में पहुंचे थे. इस बीच में राजा दशरथ का निधन हो गया था. पिता के निधन के बाद श्रीराम, लक्ष्मण और सीता पिंडदान करने पहुंचे थे, जो गयाजी की भूमि थी. पिंडदान की सामग्री लाने राम, लक्ष्मण जंगल की ओर चले गए. माता सीता अकेली थी. इस बीच अचानक आकाशवाणी हुई. यह आकाशवाणी राजा दशरथ की थी. इसमें कहा गया तुरंत पिंडदान कर दो, यह सुनकर सीता माता को कुछ समझ में नहीं आया.

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गया का अक्षय वट वृक्ष (ETV Bharat)

माता सीता ने किया पिंडदान: कहा जाता है कि एक बार फिर से आकाशवाणी हुई कि शुभ मुहूर्त निकला जा रहा है, सूर्यास्त के बाद स्वर्ग का रास्ता बंद हो जाएगा, तो सीता माता ने कहा कि मेरे पास कुछ भी नहीं है, जिससे कि मैं पिंडदान करूं. राम और लक्ष्मण जी पिंडदान की सामग्री लाने गए हैं, तो आकाशवाणी हुई कि सोचो मत, यह शुभ मुहूर्त है. इसके बाद माता सीता ने पास से बहती फल्गु, केतकी फूल, गाय, ब्राह्मण और वट वृक्ष को साक्षी मानकर बालू से अपने ससुर का पिंडदान कर दिया.

Akshay Vat Vriksha In Gaya
गया का अक्षय वट वृक्ष (ETV Bharat)

सिर्फ वट वृक्ष ने बोला था सच: वहीं पिंडदान की सामग्री लेकर जंगल से जब भगवान राम और लक्ष्मण लौटे, तो माता सीता ने सारी बात बताई. दोनों भाइयों को विश्वास नहीं हुआ तो उन्होंने साक्षी जानना चाहा. माता सीता ने साक्ष्य के रूप में फल्गु, केतकी पुष्प, गाय, ब्राह्मण और वट वृक्ष का नाम लिया. हालांकि वट वृक्ष को छोड़कर सभी ने झूठ बोल दिया. इससे कुपित होकर माता सीता ने केतकी फुल, फल्गु, ब्राह्मण, गाय को श्रापित किया. वहीं वटवृक्ष को अक्षय का वरदान दिया. कहा जाता है कि तभी से फल्गु अंत सलिला हो गई है. वहीं अन्य के श्रापित होने के संबंध में भी कथाएं हैं.

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गया का अक्षय वट वृक्ष (ETV Bharat)

वट वृक्ष को मिला वरदान: वहीं वट वृक्ष को माता सीता ने अक्षय होने का वरदान दिया. तब से कई युगों से वटवृक्ष अक्षय वट के नाम से प्रसिद्ध होकर गया जी में विराजमान है. यहां पूजा करने काफी संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं और अपनी मन्नत भी मांगते हैं. इस तरह अक्षय वट कई प्राचीन धार्मिक कथाओं के साथ आज भी अक्षय हैं और संभवत: देश में ऐसा पहला वटवृक्ष है, जो कई युगों से विराजमान है. काहा जाता है ऐसा माता सीता के वरदान के कारण है. आज भी अंत: सलिला फल्गु मौजूद है, जिसमें वर्षा ऋतु में जल की धारा दृष्टि गोचर होती है. वहीं अन्य ऋतु में यहां केवल रेत भरा होता है. रेत को हाथों से हटाने पर नीचे से स्वच्छ निर्मल जल निकल आता है.

पढ़ें-वट सावित्री व्रत है आज, सुहाग की रक्षा के लिए पूजा, जानें शुभ मुहूर्त - Vat Savitri Vrat 2024

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