इंदौर। हर साल पराली जलाने के कारण लगातार तापमान बढ़ रहा है और खेतों की उर्वरक क्षमता भी लगातार नष्ट हो रही है. इसके अलावा पराली जलने के कारण कई स्थानों पर आगजनी की घटनाएं हर साल होती हैं. इसके अलावा पराली के धुएं और कचरे से लगातार प्रदूषण फैलता है, जिसका खामियाजा न केवल किसानों को बल्कि आम नागरिकों और पर्यावरण को भुगतना पड़ रहा है. किसानों की इसी समस्या के मद्देनजर भारतीय कृषि अनुसंधान द्वारा पराली से निजात दिलाने के लिए बायो डिकम्पोजर कैप्सूल का ईजाद किया गया है.
भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र से मंगा सकते हैं कैप्सूल
फिलहाल यह कैप्सूल अन्य कंपनियां भी बना रही हैं लेकिन अधिकृत तौर पर भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र की वेबसाइट पर ऑनलाइन आर्डर करके ये कैप्सूल मंगाए जा सकते हैं. मध्य प्रदेश में भी इसी समस्या के मद्देनजर राज्य शासन द्वारा पराली या नरवाई से बचने के लिए अब किसानों को यही सलाह दी जा रही है. फिलहाल प्रदेश भर में रवि सीजन की फसल कट गई है और उसके ठूंट जो खेत में बचे हैं, किसान उसे जला दे रहे हैं. जिससे खेतों की उर्वरक क्षमता और पर्यावरण को भारी नुकसान होता है. इससे खेतों की नमी और उर्वकता क्षमता नष्ट होती है. जिससे जैविक खेती नहीं हो सकती है.
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फसलों की ठूंठ बन जाएगी जैविक खाद
फसलों की ठूंठ जलाने से उपजाऊ जमीन भी बंजर होने का खतरा बढ़ जाता है. इसी को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र ने कैप्सूल तैयार किया है. इस कैप्सूल को हल्के से खेतों में नमी कर कैप्सूल दवाई के रूप में छिड़काव कर सकते हैं और स्प्रे करने से खेतों के ठूंठ नष्ट होकर खेतों में गिर जाने के बाद ऑर्गेनिक खाद में तब्दील हो जाते हैं. इसमें समय भी बहुत कम लगता है वहीं खेतों में नमी भी बनी रहती है. इंदौर कृषि कॉलेज के प्रोफेसर और मौसम विज्ञानी एचएल खपेडिया के मुताबिक "परली से मुक्ति के लिए यह कैप्सूल अब सबसे बढ़िया विकल्प है, जो नाममात्र के खर्चे पर मंगाकर पानी में घोलकर परली पर डाला जा सकता है. कुछ ही दिनों में खेतों में मौजूद पराली अपने आप झड़कर खेत में ही मिल जाती है, जो बाद में खाद के रूप में उपयोगी साबित होती है."