श्रीनगर: उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं समय-समय पर दम तोड़ती नजर आती है. राज्य गठन के 23 साल बाद भी पहाड़ के ज्यादातर अस्पताल रेफर सेंटर बने हुए हैं. कारण, अस्पतालों में न ही स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी मूलभूत सुविधाएं हैं और न ही डॉक्टर. नतीजा ये है कि कई बार मरीजों को अपनी जान देकर इसकी कीमत चुकानी पड़ती है. यही कारण है कि पहाड़ की स्वास्थ्य सेवा पर 'बदहाली' का दाग लगा है. जिसे प्रदेश सरकार मंचों से अपने भाषण के जरिए धोने का अक्सर काम करती है. चलिए अब बात करते हैं पौड़ी में घटी घटना की.
बुधवार सुबह 9 बजे पौड़ी जिले के तहसील चौबट्टाखाल के अंतर्गत नौगांवखाल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में नौगांवखाल निवासी प्रसूता प्रसव पीड़ा के बाद पहुंची. प्रसूता के अस्पताल पहुंचने के महज 15 मिनट बाद ही चिकित्सा अधिकारी ने प्रसूता के केस को गंभीर बताते हुए पौड़ी जिला अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. प्रसूता को 108 एंबुलेंस के माध्यम से पौड़ी जिला अस्पताल ले जाया गया. इस दौरान ज्वाल्पा धाम के पास प्रसूता ने एंबुलेंस में ही नवजात को जन्म दे दिया. इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन (ईएमटी) अंजलि बिष्ट ने एंबुलेंस में ही महिला की नॉर्मल डिलीवरी करवाई.
इसी तरह पहले भी कई ऐसे मामले सामने आए हैं. कई मामलों में जच्चा-बच्चा दोनों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी है. हालांकि, इस प्रकरण में अच्छी बात ये है कि दोनों ही स्वस्थ हैं.
विधानसभा में भी उठा स्वास्थ्य की मुद्दा: इसी तरह का मामला आज बजट सत्र के दौरान प्रतापनगर विधायक विक्रम नेगी भी ने विधानसभा में उठाया. उन्होंने टिहरी गढ़वाल के चौड़ लमगांव पीएचसी में प्रसूता की मौत का मामला उठाया. उक्त केस में स्वास्थ्य सुविधा और डॉक्टर की कमी के कारण जच्चा-बच्चा दोनों ने दम तोड़ दिया था. विधायक के सदन में मुद्दा उठाने के बाद स्वास्थ्य मंत्री धन सिंह रावत ने पीएचसी के डॉक्टर को सस्पेंड कर दिया है.
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