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प्रयागराज महाकुंभ : गुरु ग्रंथ साहिब, गुरुनानक देव और सनातन का संगम है श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल, पढ़िए परंपरा और इतिहास - PRAYAGRAJ KUMBH

Prayagraj Kumbh : श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल की स्थापना से लेकर अब तक रोजाना किया जाता है गुरुग्रंथ साहिब का पाठ.

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल प्रयागराज
श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल प्रयागराज (Photo Credit : ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 5, 2024, 1:27 PM IST

प्रयागराज : श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल का संबंध गुरुनानक देव जी महाराज से है. गुरु कृपा से ही निर्मल संप्रदाय की शुरुआत सन 1564 में हुई. इसके बाद 1862 में इस अखाड़े की स्थापना हुई. उस वक्त से लेकर अभी तक अखाड़े में गुरुग्रंथ साहिब का पाठ प्रतिदिन किया जाता है. निर्मल अखाड़े के साधु-संत सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार भी करते हैं. इस अखाड़े में संगत और पंगत के एक समान भावना के आधार पर कार्य किए जाते हैं. अखाड़े में बड़े-छोटे में भेदभाव वाली कोई भावना नहीं है.

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के गौरवमयी परंपरा पर ईटीवी भारत की खास खबर. (Video Credit : ETV Bharat)

1564 से निर्मल संप्रदाय की शुरुआत : श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के सचिव महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री महाराज ने बताया कि निर्मल संप्रदाय श्री गुरु नानक देव जी महाराज ने ही बनाया. गुरु महाराज 1564 में भादो शुक्ल पक्ष की त्रयोदाशी के दिन सुल्तानपुर लोधी स्नान करते समय काली वेंई नदी के जरिए सचखण्ड (वैकुंठ धाम) पहुंचे. यहां प्रभु के समक्ष पहुंचे और परमपिता परमात्मा की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया. प्रभु ने प्रसन्न होकर संसार के कल्याण के लिए मूल मंत्र का उपदेश और निर्मल लिबास देकर वापस भेजा. गुरु जी वेंई नदी से संत घाट वाले स्थान पर बाहर निकले तो भागीरथ जी तीन दिन से उसी स्थान पर खड़े होकर उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे.

गुरु नानक देव जी ने उनके प्रेम, श्रद्धा और भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें मूल मंत्र का उपदेश और निर्मल भेष देकर कहा कि यह अकाल पुरुष के मूलमंत्र का अनमोल आशीष है. यह सबसे पहले हम आप को दे रहे हैं. अब आप इस मंत्र को खुद जपो और मानवता के कल्याण के लिए उन्हें भी देकर लोगों से अभ्यास करवाओ. इस तरह से निर्मल भेष और मूल मंत्र प्राप्त करने वाले प्रथम व्यक्ति भगीरथ बने.

निर्मल उपदेश अनुसार अपने जीवन में उच्च आचरण, पवित्र विचार, निर्मल कर्म और अहंता ममता उपाधि से रहित होकर जीवन मुक्ति, निजानन्द स्वरूप में स्थिति प्राप्त की, उन्हें ही निर्मल कहा जाने लगा है. इसी तरह से सदियों पहले जब लोगों के मन अंदर कायरता, हीनता, निर्बलता घर कर चुकी थी उसको मिटाने के लिए गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने पाउंदा साहिब की पवित्र धरा पर रहते हुए पांच सिक्खों को शस्त्र विद्या प्रदान की. साथ ही 1686 (संवत 1742) में उन्होंने शास्त्र की शिक्षा ग्रहण करने के लिए 5 निर्मल संतों को चुनकर संस्कृत विद्या अध्ययन करने के लिए काशी भेजा.

पांचों निर्मल संत गुरुवाणी, भाषा तथा गुरु इतिहास के जानकार थे. उनके नाम संत कर्म सिंह, संत राम सिंह, संत गण्डा सिंह, संत बीर सिंह, संत सैणा सिंह था. गुरु ने विरक्त साधुओं की तरह गेरुवे वस्त्र धारण काशी में शास्त्र संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करने लिए भेज दिया. उनसे यह भी कहाकि शास्त्र और संस्कृत में पारंगत होकर लौटना और दूसरों को भी उस शिक्षा का ज्ञान उपदेश देना. वेद, शास्त्र, पुराण, स्मृति और इतिहास आदि सभी विद्याओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए 13 वर्षों तक काशी में रहने के बाद वापस लौटे. इसके बाद गुरु सिखों ने शास्त्र और को संस्कृत विद्या की शिक्षा दूसरों को देते हुए उसका प्रचार-प्रसार कशुरू किया जो आज तक अनवरत चल रहा है.

1862 में बना निर्मल अखाड़ा : निर्मल संप्रदाय के गठन के काफी बाद 1862 में श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल का गठन बाबा महताब सिंह जी ने किया. वहीं गुरु गोविंद सिंह के निर्देश के बाद शास्त्र और संस्कृत की शिक्षा हासिल करने की वजह से निर्मल सम्प्रदाय का लगातार विकास होता गया. निर्मल अखाड़े के बनने के बाद निर्मल संतों के बड़े-बड़े आश्रम, मठ, विद्यालय और आध्यात्मिक केन्द्र देश के अलग अलग हिस्सों में बन गए. श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल की धर्म ध्वजा की स्थापना पटियाला में हुई. इस अखाड़े का मुख्यालय हरिद्वार के कनखल में है. इसकी शाखाएं देश भर में फैली हुई हैं. अखाड़े के पहले श्री महंत अध्यक्ष बाबा महताब सिंह थे. निर्मल अखाड़े की तरफ से अभी कुंम्भ पर्व समेत ऐसे अन्य आयोजनों में भक्तों संतो महंतों के लिए रहन सहन से लेकर खान पान तक के लिए व्यवस्था की जाती है.

नगर प्रवेश नहीं करते बल्कि जखीरा आता है : 13 अखाड़ों में जहां 12 अखाड़े महाकुम्भ क्षेत्र में जाने से पहले नगर प्रवेश करते हैं. नगर प्रवेश के बाद अखाड़े के साधु संत महंत उसी स्थान से पेशवाई यात्रा के जरिये मेला क्षेत्र में प्रवेश करते हैं.ज बकि निर्मल अखाड़े की तरफ से नगर प्रवेश नहीं किया जाता है बल्कि उनके अखाड़े के संतों का जखीरा आता है. हरिद्वार और दूसरे स्थानों से आने वाले सारे संत-महंत अपने सामान का जखीरा ट्रक-ट्रैक्टर पर लेकर शहर में प्रवेश करते हैं जिसे उनके अखाड़े में जखीरा आगमन कहा जाता है.

इस अखाड़े में श्री महंत के अलावा 6 महामंडलेश्वर : श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल की स्थापना 1662 में बाबा मेहताब सिंह महाराज ने की थी. उसके बाद से अभी तक 10 महंत हो चुके हैं. पहले महंत बाबा महताब सिंह जी महाराज, महंत रामसिंह जी, महंत उधव सिंह, महंत साधु सिंह, महंत रामसिंह, महंत दया सिंह, महंत जीवन सिंह, महंत सुच्चा सिंह जी महाराज, महंत बलवीर सिंह और वर्तमान में स्वामी ज्ञानदेव सिंह जी महाराज महंत के पद पर आसीन हैं. इसी तरह से निर्मल अखाड़े के पहले महामंडलेश्वर के रूप में सांसद साक्षी महाराज का पट्टाभिषेक हुआ था. फिलहाल साक्षी महाराज के अलावा 5 और महामंडलेश्वर भी हैं. इनके नाम भक्तानंद हरि जी महाराज, जनार्दन हरिजी महाराज, स्वामी ज्ञानेश्वर जी महाराज,जयराम हरिजी महाराज और दिव्यानंद गिरी जी हैं. ये महामंडलेश्वर के रूप में इस अखाड़े की तरफ से सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं.

इस अखाड़े में कौन और कैसे जुड़ सकता है : श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के सचिव महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री का कहना है कि उनके अखाड़े में किसी प्रकार का छोटे-बड़े का भेद भाव नहीं है. जिसके भी अंदर पूरी तरह से सेवा त्याग और तप करने की अंदर से भावना हो जागृत होती है वही उनके अखाड़े से जुड़ सकता है. जब भी कोई व्यक्ति निर्मल अखाड़े से जुड़ने के लिए आता है तो वो वहां पर सेवा करता है. फिर अखाड़े से जुड़े हुए संत-महात्मा देखते हैं कि यह योग करता है कि नहीं, भजन पूजन करता है कि नहीं करता है, उसकी अंदर की वृत्ति किसके तरफ है, उसकी मानसिक वृत्ति धार्मिक है या नहीं.

इसके बाद उसके रहन सहन को देखकर फैसला लेते हैं. उनके अखाड़े में इस तरह का माहौल है कि जिस व्यक्ति के मन में भक्ति है तब ही वो यहां या टिकेगा. जो भी व्यक्ति सांसारिक मोह में रहता है और संसार के कार्यों में लिप्त रहता है उसको अखाड़े में जोड़ने में बहुत समय लगता है. उन्होंने बताया कि अध्यात्म का मार्ग बहुत कठिन है. उन्होंने कहा कि उनके अखाड़े के संतों के लिए आध्यात्मिक राह पर चलना तलवार की धार पर चलने जैसा है. संतों की जीवनशैली देखकर कुछ लोग कहते हैं, महात्मा जी बहुत अच्छा खाते रहते हैं लेकिन वास्तव में उनके अखाड़े के संत महंत बाल के बराबर पतले रास्ते से होकर गुजरते हैं.

ब्रह्म मुहूर्त में होता है गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ : अखाड़े के सचिव महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री ने बताया कि उनके अखाड़े में सुबह 4 बजे से पहले से ही गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ शुरू हो जाता है. उनके संत ब्रह्म मुहूर्त में ही उठकर पूजा पाठ जप तप और भगवान की आराधना करते हैं. यह परंपरा है निर्मल संतों की है. इसके साथ ही उन्हें और राग द्वेष से रहित विचरण करने के साथ ही किसी के साथ भेदभाव न करना और सभी के साथ एक समान दृष्टि व्यवहार करने की सीजन दी जाती है. निर्मल अखाड़े के संतों को बताया जाता है कि साधु संत वही है जो सभी के लिए एक समान दृष्टि रखता हो सभी के साथ समान व्यवहार करता वहीअसली योगी होता है.

यह भी पढ़ें : प्रयागराज महाकुंभ; श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाण से जुड़ने के लिए देनी होती है कठिन परीक्षा, पढ़िए इतिहास और परंपरा

प्रयागराज : श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल का संबंध गुरुनानक देव जी महाराज से है. गुरु कृपा से ही निर्मल संप्रदाय की शुरुआत सन 1564 में हुई. इसके बाद 1862 में इस अखाड़े की स्थापना हुई. उस वक्त से लेकर अभी तक अखाड़े में गुरुग्रंथ साहिब का पाठ प्रतिदिन किया जाता है. निर्मल अखाड़े के साधु-संत सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार भी करते हैं. इस अखाड़े में संगत और पंगत के एक समान भावना के आधार पर कार्य किए जाते हैं. अखाड़े में बड़े-छोटे में भेदभाव वाली कोई भावना नहीं है.

श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के गौरवमयी परंपरा पर ईटीवी भारत की खास खबर. (Video Credit : ETV Bharat)

1564 से निर्मल संप्रदाय की शुरुआत : श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के सचिव महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री महाराज ने बताया कि निर्मल संप्रदाय श्री गुरु नानक देव जी महाराज ने ही बनाया. गुरु महाराज 1564 में भादो शुक्ल पक्ष की त्रयोदाशी के दिन सुल्तानपुर लोधी स्नान करते समय काली वेंई नदी के जरिए सचखण्ड (वैकुंठ धाम) पहुंचे. यहां प्रभु के समक्ष पहुंचे और परमपिता परमात्मा की स्तुति कर उन्हें प्रसन्न किया. प्रभु ने प्रसन्न होकर संसार के कल्याण के लिए मूल मंत्र का उपदेश और निर्मल लिबास देकर वापस भेजा. गुरु जी वेंई नदी से संत घाट वाले स्थान पर बाहर निकले तो भागीरथ जी तीन दिन से उसी स्थान पर खड़े होकर उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे.

गुरु नानक देव जी ने उनके प्रेम, श्रद्धा और भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें मूल मंत्र का उपदेश और निर्मल भेष देकर कहा कि यह अकाल पुरुष के मूलमंत्र का अनमोल आशीष है. यह सबसे पहले हम आप को दे रहे हैं. अब आप इस मंत्र को खुद जपो और मानवता के कल्याण के लिए उन्हें भी देकर लोगों से अभ्यास करवाओ. इस तरह से निर्मल भेष और मूल मंत्र प्राप्त करने वाले प्रथम व्यक्ति भगीरथ बने.

निर्मल उपदेश अनुसार अपने जीवन में उच्च आचरण, पवित्र विचार, निर्मल कर्म और अहंता ममता उपाधि से रहित होकर जीवन मुक्ति, निजानन्द स्वरूप में स्थिति प्राप्त की, उन्हें ही निर्मल कहा जाने लगा है. इसी तरह से सदियों पहले जब लोगों के मन अंदर कायरता, हीनता, निर्बलता घर कर चुकी थी उसको मिटाने के लिए गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने पाउंदा साहिब की पवित्र धरा पर रहते हुए पांच सिक्खों को शस्त्र विद्या प्रदान की. साथ ही 1686 (संवत 1742) में उन्होंने शास्त्र की शिक्षा ग्रहण करने के लिए 5 निर्मल संतों को चुनकर संस्कृत विद्या अध्ययन करने के लिए काशी भेजा.

पांचों निर्मल संत गुरुवाणी, भाषा तथा गुरु इतिहास के जानकार थे. उनके नाम संत कर्म सिंह, संत राम सिंह, संत गण्डा सिंह, संत बीर सिंह, संत सैणा सिंह था. गुरु ने विरक्त साधुओं की तरह गेरुवे वस्त्र धारण काशी में शास्त्र संस्कृत की शिक्षा ग्रहण करने लिए भेज दिया. उनसे यह भी कहाकि शास्त्र और संस्कृत में पारंगत होकर लौटना और दूसरों को भी उस शिक्षा का ज्ञान उपदेश देना. वेद, शास्त्र, पुराण, स्मृति और इतिहास आदि सभी विद्याओं का ज्ञान प्राप्त करने के लिए 13 वर्षों तक काशी में रहने के बाद वापस लौटे. इसके बाद गुरु सिखों ने शास्त्र और को संस्कृत विद्या की शिक्षा दूसरों को देते हुए उसका प्रचार-प्रसार कशुरू किया जो आज तक अनवरत चल रहा है.

1862 में बना निर्मल अखाड़ा : निर्मल संप्रदाय के गठन के काफी बाद 1862 में श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल का गठन बाबा महताब सिंह जी ने किया. वहीं गुरु गोविंद सिंह के निर्देश के बाद शास्त्र और संस्कृत की शिक्षा हासिल करने की वजह से निर्मल सम्प्रदाय का लगातार विकास होता गया. निर्मल अखाड़े के बनने के बाद निर्मल संतों के बड़े-बड़े आश्रम, मठ, विद्यालय और आध्यात्मिक केन्द्र देश के अलग अलग हिस्सों में बन गए. श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल की धर्म ध्वजा की स्थापना पटियाला में हुई. इस अखाड़े का मुख्यालय हरिद्वार के कनखल में है. इसकी शाखाएं देश भर में फैली हुई हैं. अखाड़े के पहले श्री महंत अध्यक्ष बाबा महताब सिंह थे. निर्मल अखाड़े की तरफ से अभी कुंम्भ पर्व समेत ऐसे अन्य आयोजनों में भक्तों संतो महंतों के लिए रहन सहन से लेकर खान पान तक के लिए व्यवस्था की जाती है.

नगर प्रवेश नहीं करते बल्कि जखीरा आता है : 13 अखाड़ों में जहां 12 अखाड़े महाकुम्भ क्षेत्र में जाने से पहले नगर प्रवेश करते हैं. नगर प्रवेश के बाद अखाड़े के साधु संत महंत उसी स्थान से पेशवाई यात्रा के जरिये मेला क्षेत्र में प्रवेश करते हैं.ज बकि निर्मल अखाड़े की तरफ से नगर प्रवेश नहीं किया जाता है बल्कि उनके अखाड़े के संतों का जखीरा आता है. हरिद्वार और दूसरे स्थानों से आने वाले सारे संत-महंत अपने सामान का जखीरा ट्रक-ट्रैक्टर पर लेकर शहर में प्रवेश करते हैं जिसे उनके अखाड़े में जखीरा आगमन कहा जाता है.

इस अखाड़े में श्री महंत के अलावा 6 महामंडलेश्वर : श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल की स्थापना 1662 में बाबा मेहताब सिंह महाराज ने की थी. उसके बाद से अभी तक 10 महंत हो चुके हैं. पहले महंत बाबा महताब सिंह जी महाराज, महंत रामसिंह जी, महंत उधव सिंह, महंत साधु सिंह, महंत रामसिंह, महंत दया सिंह, महंत जीवन सिंह, महंत सुच्चा सिंह जी महाराज, महंत बलवीर सिंह और वर्तमान में स्वामी ज्ञानदेव सिंह जी महाराज महंत के पद पर आसीन हैं. इसी तरह से निर्मल अखाड़े के पहले महामंडलेश्वर के रूप में सांसद साक्षी महाराज का पट्टाभिषेक हुआ था. फिलहाल साक्षी महाराज के अलावा 5 और महामंडलेश्वर भी हैं. इनके नाम भक्तानंद हरि जी महाराज, जनार्दन हरिजी महाराज, स्वामी ज्ञानेश्वर जी महाराज,जयराम हरिजी महाराज और दिव्यानंद गिरी जी हैं. ये महामंडलेश्वर के रूप में इस अखाड़े की तरफ से सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं.

इस अखाड़े में कौन और कैसे जुड़ सकता है : श्री पंचायती अखाड़ा निर्मल के सचिव महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री का कहना है कि उनके अखाड़े में किसी प्रकार का छोटे-बड़े का भेद भाव नहीं है. जिसके भी अंदर पूरी तरह से सेवा त्याग और तप करने की अंदर से भावना हो जागृत होती है वही उनके अखाड़े से जुड़ सकता है. जब भी कोई व्यक्ति निर्मल अखाड़े से जुड़ने के लिए आता है तो वो वहां पर सेवा करता है. फिर अखाड़े से जुड़े हुए संत-महात्मा देखते हैं कि यह योग करता है कि नहीं, भजन पूजन करता है कि नहीं करता है, उसकी अंदर की वृत्ति किसके तरफ है, उसकी मानसिक वृत्ति धार्मिक है या नहीं.

इसके बाद उसके रहन सहन को देखकर फैसला लेते हैं. उनके अखाड़े में इस तरह का माहौल है कि जिस व्यक्ति के मन में भक्ति है तब ही वो यहां या टिकेगा. जो भी व्यक्ति सांसारिक मोह में रहता है और संसार के कार्यों में लिप्त रहता है उसको अखाड़े में जोड़ने में बहुत समय लगता है. उन्होंने बताया कि अध्यात्म का मार्ग बहुत कठिन है. उन्होंने कहा कि उनके अखाड़े के संतों के लिए आध्यात्मिक राह पर चलना तलवार की धार पर चलने जैसा है. संतों की जीवनशैली देखकर कुछ लोग कहते हैं, महात्मा जी बहुत अच्छा खाते रहते हैं लेकिन वास्तव में उनके अखाड़े के संत महंत बाल के बराबर पतले रास्ते से होकर गुजरते हैं.

ब्रह्म मुहूर्त में होता है गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ : अखाड़े के सचिव महंत देवेंद्र सिंह शास्त्री ने बताया कि उनके अखाड़े में सुबह 4 बजे से पहले से ही गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ शुरू हो जाता है. उनके संत ब्रह्म मुहूर्त में ही उठकर पूजा पाठ जप तप और भगवान की आराधना करते हैं. यह परंपरा है निर्मल संतों की है. इसके साथ ही उन्हें और राग द्वेष से रहित विचरण करने के साथ ही किसी के साथ भेदभाव न करना और सभी के साथ एक समान दृष्टि व्यवहार करने की सीजन दी जाती है. निर्मल अखाड़े के संतों को बताया जाता है कि साधु संत वही है जो सभी के लिए एक समान दृष्टि रखता हो सभी के साथ समान व्यवहार करता वहीअसली योगी होता है.

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