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कुंभ से कहां चले जाते हैं नागा साधु? आम जन के बीच क्यों नहीं दिखते, ये है वजह - MAHAKUMBH 2025

नागा संन्यासियों का रहस्यमयी संसार, अब अगले कुंभ में ही होंगे इनके दर्शन

कुंभ से कहां चले जाते हैं नागा, एक रिपोर्ट.
कुंभ से कहां चले जाते हैं नागा, एक रिपोर्ट. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 7, 2025, 5:12 PM IST

Updated : Feb 7, 2025, 5:58 PM IST

प्रयागराज: महाकुंभ में बसंत पंचमी के स्नान के बाद अब अखाड़े कुंभ से लौटने लगे हैं. सबसे पहले धीरे-धीरे कुंभ से नागा संन्यासी गायब हो रहे हैं. अलग-अलग अखाड़े के बाहर शिविर जमा कर बैठे नागा संन्यासियों की संख्या अब गिनी-चुनी ही है. बसंत पंचमी पर तीसरे शाही स्नान के पूरे होते ही यह नागा संन्यासी कहां चले गए? यह सिर्फ कुंभ में ही क्यों दिखाई देते हैं? और अब इनके दर्शन कब होंगे? इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश ईटीवी भारत ने की. हमने नागा संन्यासियों के इस रहस्यमयी संसार में इनके कुंभ से अचानक गायब होने की पड़ताल की. यह जानने की कोशिश की है कि आखिर नागा संन्यासी चले जाते हैं? इतने दिनों तक आम जनता के बीच में रहने के बाद अब यह कहां जाएंगे?

कुंभ से कहां चले जाते हैं नागा, एक रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat)

पुलिस सिस्टम की तरह होती है तैनाती: दरअसल, नागा सन्यासी सनातन परंपरा की एक ऐसी अद्भुत कड़ी हैं, जिसे सनातन की रक्षा के लिए शंकराचार्य के द्वारा तैयार किया गया. अलग-अलग अखाड़े के नागा संन्यासियों का कार्य क्षेत्र और उससे जुड़ी उनकी कार्यशैली भी अलग-अलग होती है. जिस तरह से आम जनजीवन में लोगों की सुरक्षा के लिए एसपी थानेदार चौकी इंचार्ज होते हैं, वैसे ही अखाड़े में सभापति, थानापति और क्षेत्र रक्षक के रूप में भी नागा संन्यासियों को तैनात किया जाता है. चारों दिशाओं यानी उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम के लिए अलग-अलग खाना पतियों की नियुक्ति होती है.

महाकुंभ में भक्तों को आशीर्वाद देते नागा संन्यासी.
महाकुंभ में भक्तों को आशीर्वाद देते नागा संन्यासी. (Photo Credit; ETV Bharat)

13 अखाड़े में लाखों नागा: जूना अखाड़ा, महानिर्वाणी, निरंजनी अखाड़ा अटल अखाड़ा या फिर आनंद अखाड़ा, सभी 13 अखाड़े और उससे संबंधित अलग-अलग अखाड़ों में नागा संन्यासियों की मौजूदगी अलग-अलग रूप में नजर आती है. नागा संन्यासी एक विशाल सेना के रूप में काम करते हैं. माना जाता है कि सभी अखाड़ों को मिलाकर लाखों की संख्या में नागा पूरे भारत में मौजूद हैं, जो महान निर्वाणी से लेकर जूना अखाड़े में तैनात रहते हैं. सबसे ज्यादा संख्या जूना अखाड़े में नागा संन्यासियों की है, जो अपने गुरु के इशारे पर कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. ज्ञान, भक्ति, वैराग्य के साथ नागा संन्यासी अपना पूरा जीवन अपने गुरु की सेवा और गुरु के आदेश के लिए ही बिता देते हैं. धर्म प्रचार के साथ सनातन धर्म की रक्षा के लिए पूरे समय वह इधर-उधर घूमते ही रहते हैं.

महाकुंभ में भक्तों को आशीर्वाद देते नागा संन्यासी.
महाकुंभ में भक्तों को आशीर्वाद देते नागा संन्यासी. (Photo Credit; ETV Bharat)

12 साल की कठिन तपस्या होती है: नागा संन्यासी और जूना अखाड़े के थानापति के रूप में उत्तर भारत में सनातन की रक्षा के लिए लंबे वक्त से लोग बनकर जीवन व्यतीत करने वाले प्रशांत गिरि महाराज का कहना है कि नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन है. सभी को नागा संन्यास नहीं दिया जाता, सिर्फ उन्हीं को नागा बनाया जाता है, जो बचपन से नागा संन्यासियों की शरण में रहते हैं. नागा संन्यासी भगवान शिव के बालक रूप के रूप में पूजे जाते हैं. ध्यान योग के साथ पूजा पाठ और 12 वर्ष की लंबी तपस्या के बाद नागा को तैयार करने की प्रक्रिया शुरू होती है.

महाकुंभ में भक्तों को आशीर्वाद देते नागा संन्यासी.
महाकुंभ में भक्तों को आशीर्वाद देते नागा संन्यासी. (Photo Credit; ETV Bharat)

नए नागा पाएंगे काशी में दस्तावेज: इस बार के महाकुंभ में लगभग 1200 से ज्यादा नए नागा संन्यासी तैयार हुए हैं. इन नागा संन्यासियों का जीवन अब 12 वर्षों तक कठिन तपस्या से गुजरेगा. इनके ऊपर उनके गुरु और थानापति के साथ सभापति की विशेष निगाह रहेगी. अगर सन्यास परंपरा का जरा सा भी पालन नहीं होता तो इन्हें तत्काल अखाड़े से बाहर कर दिया जाएगा. प्रशांत गिरि का कहना है कि जो नए नागा संन्यासी बने हैं, उनको वाराणसी में मोर मुकुट, आई कार्ड और अखाड़े के कानूनी दस्तावेज जारी किए जाएंगे, जो हमारे संरक्षक और अध्यक्ष के सिग्नेचर के जरिए इन्हें दिए जाएंगे. उनके गुरु निर्धारित होंगे और उन्हें गुरु के आदेश पर यह सन्यास परंपरा और कठिन तप का पालन करेंगे. संन्यास लेते वक्त उनके गले में एक सफेद रंग के धागे में सिंगल रुद्राक्ष भी डाला गया है, वह इन्हें धारण करना होगा हमेशा.

इसलिए रहते हैं समाज से दूर: नागा संन्यासी सिर्फ कुंभ में क्यों दिखाई देते हैं? यह भी महत्वपूर्ण है. इस बारे में नागा संन्यासी अजय गिरि का कहना है कि नागा बनने से पहले अपने परिवार को छोड़कर अपने बाल, अपने कपड़ों और अपनी सारी चीजों का दान संगम तट पर या जहां भी कुंभ लगता है, वहां कर देते हैं. उसके बाद अपना और अपने परिवार के साथ अपनी कई पीढ़ियों का पिंडदान करते हैं. जिसके बाद वह सामाजिक रिश्तों से पूरी तरह से मुक्त हो जाते हैं. उनको सामाजिकता से कोई मतलब नहीं होता, इसलिए वह समाज और लोगों की भीड़ से दूर रहते हैं. मुख्य मकसद यही होता है कुंभ में आने का की 3 साल 6 साल या 12 वर्ष की अवधि में ही वह लोगों के सामने आए और एक निर्धारित वक्त तक लोगों के बीच रहकर अपनी साधना को मजबूत करके वापस अपने-अपने स्थान पर लौट जाए.

कठिन तप की वजह से बन जाते हैं मजबूत: उन्होंने बताया कि हम नंगे बदन रहते हैं, लेकिन हमें ठंड नहीं लगती. हमें गर्मी नहीं लगती, हम पर बारिश का कोई असर नहीं होता, क्योंकि हम प्रकृति को ही अपना वस्त्र मानते हैं. प्रकृति के ही रूप को वस्त्र के रूप में धारण करते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि हमारा रूटीन अन्य संन्यासियों की तुलना में बिल्कुल अलग होता है. 3 बजे उठना, उसके बाद स्नान और लगभग आधे घंटे तक हमें अपना श्रृंगार करने में समय लगता है. हम अपने पूरे शरीर पर भस्म लगाते हैं. भस्म हमारे शरीर का एक कवच है, जो हमें गर्मी, सर्दी और बारिश के असर से बचाता है. यह भगवान शिव का साक्षात स्वरूप माना जाता है और हम इसे अपने चेहरे से लेकर अपने पूरे शरीर पर लगाते हैं. यह हमारे शरीर का वह रक्षा कवच है, जिसके जरिए हम अपने आप को सुरक्षित रखते हैं. ठंडा स्थान पर रहने के साथ ही गर्मी बर्दाश्त करने की क्षमता हमें इसी भस्म के जरिए मिलती है.

सनातन की रक्षा पहला कर्तव्य: प्रशांत गिरि बताते हैं कि यह सवाल हर किसी के मन में आता है कि आखिर हम सिर्फ महाकुंभ में ही क्यों दिखाई देते हैं और उसके बाद हम चले कहां जाते हैं. उनका कहना है कि अगर हम आपके और अन्य लोगों के बीच में हमेशा रहेंगे तो फिर हमारी बकत क्या होगी, जो आप महाकुंभ में देख कर करते हैं. उनका कहना है कि नागा संन्यासी आम जीवन से बिल्कुल दूर रहते हैं. हमें हमारे गुरु कठिन तपस्या के बाद नागा इसीलिए ही बनाते हैं कि हम सनातन की रक्षा और सनातन के लिए हमेशा तत्पर रहें. पूरे भारतवर्ष में घूमते हुए कठिन तपस्या के जरिए अपने आप को इतना मजबूत बनाएं कि जब भी जरूरत पड़े हम मैदान में उतर सकें.

महाकुंभ के बाद जाएंगे इन जगहों पर: वहीं, नागा संन्यासी महंत वशिष्ठ गिरी रुद्राक्ष वाले बाबा बताते हैं कि हम कभी भी शहरों में नहीं रहते. हम हमेशा शहरों से बाहर जंगलों में गुफाओं में पहाड़ों में और ऐसी-ऐसी जगह पर रहते हैं, जहां लोगों का बिल्कुल आना-जाना नहीं होता है. हमारी साधना अनवरत चलती रहती है. हमारे गुरु का आदेश यदि हो गया कि आपको इस दिशा की तरफ जाना है तो हम बिना कुछ पूछे उस दिशा की तरफ निकल जाते हैं और कुंभ के शुरू होने के पहले तक हम इस दिशा के अलग-अलग इलाकों में भ्रमण करके साधना में लीन रहते हैं. हम कभी भी, किसी के सामने नहीं आते.

पहाड़, गुफाएं और जंगल हैं पसंद: जब उनसे पूछा गया कि आखिर आप लोग जाते कहां हैं, तो उनका कहना था सभी का अपना अलग-अलग रास्ता है. कोई हिमालय की तरफ निकलेगा तो कोई उत्तराखंड, हरिद्वार, नैनीताल और हिमाचल के पहाड़ों की तरफ चला जाएगा. हमें ठंड या गर्मी का कोई असर नहीं होता. हमें सुकून और शांति चाहिए. हम कुंभ में सिर्फ इसलिए आते हैं, क्योंकि हमारे अखाड़े की पेशवाई और अखाड़ों का शक्ति प्रदर्शन होता है. हमारे अखाड़े और हमारे गुरु की आज्ञा ही हमारे लिए सर्वोपरि है. हम हर कुंभ में पहुंचते हैं और अब हम 2027 में नासिक में होने वाले कुंभ में आएंगे. इसके बाद उज्जैन में होने वाले 2028 के सिंहस्थ कुंभ में भी हम दर्शन देंगे. महाकुंभ के बाद हम अब तपस्या और साधना में लीन होने के लिए अपने-अपने मठ या अपने गुरु के आदेश पर जिस भी दिशा में कहा जाएगा वहां निकल जाएंगे.

ये है भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा: नागा संन्यासी का कहना है कि हम सात्विक भोजन करते हैं. हमें मांस इत्यादि से परहेज है. पसंद में आलू, शकरकंद मुख्य है. इसके अलावा मटर, दूध, दही इत्यादि बेहद पसंद है. हम इन्हीं चीजों का सेवन करते हैं. इसके अलावा चावल और रोटी खाते हैं. हम एक वक्त अनाज का और बाकी वक्त फल और फलहार का सेवन करते हैं. हमारे लिए दत्तात्रेय और भगवान शिव सर्वोपरि ईश्वर हैं. हम सभी की पूजा करते हैं लेकिन भगवान दत्तात्रेय और भगवान शिव हमारे आराध्य हैं.

भस्म के अलावा और भी है नागा के श्रृंगार: नागा संन्यासी प्रशांत गिरि का कहना है कि नागा साधुओं का श्रृंगार मुख्य रूप से 17 तरह का होता है. इसमें लंगोट, भभूत, चंदन' अंगूठी, कड़ा, पंचकेश, कमर में माला, माथे पर रोली, कुंडल, चिमटा, डमरू, कमंडल, जटा, तिलक, काजल और बाहों में रुद्राक्ष की माला के साथ गले में रुद्राक्ष और हाथों में कड़ा महत्वपूर्ण माना जाता है. यह श्रृंगार हमारे लिए सर्वोपरि होता है.

यह भी पढ़ें : महाकुंभ में भगवान शिव के प्रतीक रुद्राक्ष की जबरदस्त डिमांड, जानिए असली-नकली में फर्क और धारण करने के नियम - MAHA KUMBH MELA 2025

प्रयागराज: महाकुंभ में बसंत पंचमी के स्नान के बाद अब अखाड़े कुंभ से लौटने लगे हैं. सबसे पहले धीरे-धीरे कुंभ से नागा संन्यासी गायब हो रहे हैं. अलग-अलग अखाड़े के बाहर शिविर जमा कर बैठे नागा संन्यासियों की संख्या अब गिनी-चुनी ही है. बसंत पंचमी पर तीसरे शाही स्नान के पूरे होते ही यह नागा संन्यासी कहां चले गए? यह सिर्फ कुंभ में ही क्यों दिखाई देते हैं? और अब इनके दर्शन कब होंगे? इन्हीं सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश ईटीवी भारत ने की. हमने नागा संन्यासियों के इस रहस्यमयी संसार में इनके कुंभ से अचानक गायब होने की पड़ताल की. यह जानने की कोशिश की है कि आखिर नागा संन्यासी चले जाते हैं? इतने दिनों तक आम जनता के बीच में रहने के बाद अब यह कहां जाएंगे?

कुंभ से कहां चले जाते हैं नागा, एक रिपोर्ट. (Video Credit; ETV Bharat)

पुलिस सिस्टम की तरह होती है तैनाती: दरअसल, नागा सन्यासी सनातन परंपरा की एक ऐसी अद्भुत कड़ी हैं, जिसे सनातन की रक्षा के लिए शंकराचार्य के द्वारा तैयार किया गया. अलग-अलग अखाड़े के नागा संन्यासियों का कार्य क्षेत्र और उससे जुड़ी उनकी कार्यशैली भी अलग-अलग होती है. जिस तरह से आम जनजीवन में लोगों की सुरक्षा के लिए एसपी थानेदार चौकी इंचार्ज होते हैं, वैसे ही अखाड़े में सभापति, थानापति और क्षेत्र रक्षक के रूप में भी नागा संन्यासियों को तैनात किया जाता है. चारों दिशाओं यानी उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम के लिए अलग-अलग खाना पतियों की नियुक्ति होती है.

महाकुंभ में भक्तों को आशीर्वाद देते नागा संन्यासी.
महाकुंभ में भक्तों को आशीर्वाद देते नागा संन्यासी. (Photo Credit; ETV Bharat)

13 अखाड़े में लाखों नागा: जूना अखाड़ा, महानिर्वाणी, निरंजनी अखाड़ा अटल अखाड़ा या फिर आनंद अखाड़ा, सभी 13 अखाड़े और उससे संबंधित अलग-अलग अखाड़ों में नागा संन्यासियों की मौजूदगी अलग-अलग रूप में नजर आती है. नागा संन्यासी एक विशाल सेना के रूप में काम करते हैं. माना जाता है कि सभी अखाड़ों को मिलाकर लाखों की संख्या में नागा पूरे भारत में मौजूद हैं, जो महान निर्वाणी से लेकर जूना अखाड़े में तैनात रहते हैं. सबसे ज्यादा संख्या जूना अखाड़े में नागा संन्यासियों की है, जो अपने गुरु के इशारे पर कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं. ज्ञान, भक्ति, वैराग्य के साथ नागा संन्यासी अपना पूरा जीवन अपने गुरु की सेवा और गुरु के आदेश के लिए ही बिता देते हैं. धर्म प्रचार के साथ सनातन धर्म की रक्षा के लिए पूरे समय वह इधर-उधर घूमते ही रहते हैं.

महाकुंभ में भक्तों को आशीर्वाद देते नागा संन्यासी.
महाकुंभ में भक्तों को आशीर्वाद देते नागा संन्यासी. (Photo Credit; ETV Bharat)

12 साल की कठिन तपस्या होती है: नागा संन्यासी और जूना अखाड़े के थानापति के रूप में उत्तर भारत में सनातन की रक्षा के लिए लंबे वक्त से लोग बनकर जीवन व्यतीत करने वाले प्रशांत गिरि महाराज का कहना है कि नागा संन्यासी बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन है. सभी को नागा संन्यास नहीं दिया जाता, सिर्फ उन्हीं को नागा बनाया जाता है, जो बचपन से नागा संन्यासियों की शरण में रहते हैं. नागा संन्यासी भगवान शिव के बालक रूप के रूप में पूजे जाते हैं. ध्यान योग के साथ पूजा पाठ और 12 वर्ष की लंबी तपस्या के बाद नागा को तैयार करने की प्रक्रिया शुरू होती है.

महाकुंभ में भक्तों को आशीर्वाद देते नागा संन्यासी.
महाकुंभ में भक्तों को आशीर्वाद देते नागा संन्यासी. (Photo Credit; ETV Bharat)

नए नागा पाएंगे काशी में दस्तावेज: इस बार के महाकुंभ में लगभग 1200 से ज्यादा नए नागा संन्यासी तैयार हुए हैं. इन नागा संन्यासियों का जीवन अब 12 वर्षों तक कठिन तपस्या से गुजरेगा. इनके ऊपर उनके गुरु और थानापति के साथ सभापति की विशेष निगाह रहेगी. अगर सन्यास परंपरा का जरा सा भी पालन नहीं होता तो इन्हें तत्काल अखाड़े से बाहर कर दिया जाएगा. प्रशांत गिरि का कहना है कि जो नए नागा संन्यासी बने हैं, उनको वाराणसी में मोर मुकुट, आई कार्ड और अखाड़े के कानूनी दस्तावेज जारी किए जाएंगे, जो हमारे संरक्षक और अध्यक्ष के सिग्नेचर के जरिए इन्हें दिए जाएंगे. उनके गुरु निर्धारित होंगे और उन्हें गुरु के आदेश पर यह सन्यास परंपरा और कठिन तप का पालन करेंगे. संन्यास लेते वक्त उनके गले में एक सफेद रंग के धागे में सिंगल रुद्राक्ष भी डाला गया है, वह इन्हें धारण करना होगा हमेशा.

इसलिए रहते हैं समाज से दूर: नागा संन्यासी सिर्फ कुंभ में क्यों दिखाई देते हैं? यह भी महत्वपूर्ण है. इस बारे में नागा संन्यासी अजय गिरि का कहना है कि नागा बनने से पहले अपने परिवार को छोड़कर अपने बाल, अपने कपड़ों और अपनी सारी चीजों का दान संगम तट पर या जहां भी कुंभ लगता है, वहां कर देते हैं. उसके बाद अपना और अपने परिवार के साथ अपनी कई पीढ़ियों का पिंडदान करते हैं. जिसके बाद वह सामाजिक रिश्तों से पूरी तरह से मुक्त हो जाते हैं. उनको सामाजिकता से कोई मतलब नहीं होता, इसलिए वह समाज और लोगों की भीड़ से दूर रहते हैं. मुख्य मकसद यही होता है कुंभ में आने का की 3 साल 6 साल या 12 वर्ष की अवधि में ही वह लोगों के सामने आए और एक निर्धारित वक्त तक लोगों के बीच रहकर अपनी साधना को मजबूत करके वापस अपने-अपने स्थान पर लौट जाए.

कठिन तप की वजह से बन जाते हैं मजबूत: उन्होंने बताया कि हम नंगे बदन रहते हैं, लेकिन हमें ठंड नहीं लगती. हमें गर्मी नहीं लगती, हम पर बारिश का कोई असर नहीं होता, क्योंकि हम प्रकृति को ही अपना वस्त्र मानते हैं. प्रकृति के ही रूप को वस्त्र के रूप में धारण करते हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि हमारा रूटीन अन्य संन्यासियों की तुलना में बिल्कुल अलग होता है. 3 बजे उठना, उसके बाद स्नान और लगभग आधे घंटे तक हमें अपना श्रृंगार करने में समय लगता है. हम अपने पूरे शरीर पर भस्म लगाते हैं. भस्म हमारे शरीर का एक कवच है, जो हमें गर्मी, सर्दी और बारिश के असर से बचाता है. यह भगवान शिव का साक्षात स्वरूप माना जाता है और हम इसे अपने चेहरे से लेकर अपने पूरे शरीर पर लगाते हैं. यह हमारे शरीर का वह रक्षा कवच है, जिसके जरिए हम अपने आप को सुरक्षित रखते हैं. ठंडा स्थान पर रहने के साथ ही गर्मी बर्दाश्त करने की क्षमता हमें इसी भस्म के जरिए मिलती है.

सनातन की रक्षा पहला कर्तव्य: प्रशांत गिरि बताते हैं कि यह सवाल हर किसी के मन में आता है कि आखिर हम सिर्फ महाकुंभ में ही क्यों दिखाई देते हैं और उसके बाद हम चले कहां जाते हैं. उनका कहना है कि अगर हम आपके और अन्य लोगों के बीच में हमेशा रहेंगे तो फिर हमारी बकत क्या होगी, जो आप महाकुंभ में देख कर करते हैं. उनका कहना है कि नागा संन्यासी आम जीवन से बिल्कुल दूर रहते हैं. हमें हमारे गुरु कठिन तपस्या के बाद नागा इसीलिए ही बनाते हैं कि हम सनातन की रक्षा और सनातन के लिए हमेशा तत्पर रहें. पूरे भारतवर्ष में घूमते हुए कठिन तपस्या के जरिए अपने आप को इतना मजबूत बनाएं कि जब भी जरूरत पड़े हम मैदान में उतर सकें.

महाकुंभ के बाद जाएंगे इन जगहों पर: वहीं, नागा संन्यासी महंत वशिष्ठ गिरी रुद्राक्ष वाले बाबा बताते हैं कि हम कभी भी शहरों में नहीं रहते. हम हमेशा शहरों से बाहर जंगलों में गुफाओं में पहाड़ों में और ऐसी-ऐसी जगह पर रहते हैं, जहां लोगों का बिल्कुल आना-जाना नहीं होता है. हमारी साधना अनवरत चलती रहती है. हमारे गुरु का आदेश यदि हो गया कि आपको इस दिशा की तरफ जाना है तो हम बिना कुछ पूछे उस दिशा की तरफ निकल जाते हैं और कुंभ के शुरू होने के पहले तक हम इस दिशा के अलग-अलग इलाकों में भ्रमण करके साधना में लीन रहते हैं. हम कभी भी, किसी के सामने नहीं आते.

पहाड़, गुफाएं और जंगल हैं पसंद: जब उनसे पूछा गया कि आखिर आप लोग जाते कहां हैं, तो उनका कहना था सभी का अपना अलग-अलग रास्ता है. कोई हिमालय की तरफ निकलेगा तो कोई उत्तराखंड, हरिद्वार, नैनीताल और हिमाचल के पहाड़ों की तरफ चला जाएगा. हमें ठंड या गर्मी का कोई असर नहीं होता. हमें सुकून और शांति चाहिए. हम कुंभ में सिर्फ इसलिए आते हैं, क्योंकि हमारे अखाड़े की पेशवाई और अखाड़ों का शक्ति प्रदर्शन होता है. हमारे अखाड़े और हमारे गुरु की आज्ञा ही हमारे लिए सर्वोपरि है. हम हर कुंभ में पहुंचते हैं और अब हम 2027 में नासिक में होने वाले कुंभ में आएंगे. इसके बाद उज्जैन में होने वाले 2028 के सिंहस्थ कुंभ में भी हम दर्शन देंगे. महाकुंभ के बाद हम अब तपस्या और साधना में लीन होने के लिए अपने-अपने मठ या अपने गुरु के आदेश पर जिस भी दिशा में कहा जाएगा वहां निकल जाएंगे.

ये है भोजन का महत्वपूर्ण हिस्सा: नागा संन्यासी का कहना है कि हम सात्विक भोजन करते हैं. हमें मांस इत्यादि से परहेज है. पसंद में आलू, शकरकंद मुख्य है. इसके अलावा मटर, दूध, दही इत्यादि बेहद पसंद है. हम इन्हीं चीजों का सेवन करते हैं. इसके अलावा चावल और रोटी खाते हैं. हम एक वक्त अनाज का और बाकी वक्त फल और फलहार का सेवन करते हैं. हमारे लिए दत्तात्रेय और भगवान शिव सर्वोपरि ईश्वर हैं. हम सभी की पूजा करते हैं लेकिन भगवान दत्तात्रेय और भगवान शिव हमारे आराध्य हैं.

भस्म के अलावा और भी है नागा के श्रृंगार: नागा संन्यासी प्रशांत गिरि का कहना है कि नागा साधुओं का श्रृंगार मुख्य रूप से 17 तरह का होता है. इसमें लंगोट, भभूत, चंदन' अंगूठी, कड़ा, पंचकेश, कमर में माला, माथे पर रोली, कुंडल, चिमटा, डमरू, कमंडल, जटा, तिलक, काजल और बाहों में रुद्राक्ष की माला के साथ गले में रुद्राक्ष और हाथों में कड़ा महत्वपूर्ण माना जाता है. यह श्रृंगार हमारे लिए सर्वोपरि होता है.

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Last Updated : Feb 7, 2025, 5:58 PM IST
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