ETV Bharat / state

प्रयागराज महाकुंभ, इस प्राचीन वृक्ष के दर्शन बिना अधूरा माना जाएगा स्नान, माता सीता ने दिया था अमरता का वरदान

Akbar Fort Akshayvat : यमुना तट पर अकबर के किले में है 300 साल से अधिक पुराना अक्षयवट, जुड़ी है लोगों की आस्था

author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 2 hours ago

यमुना के तट पर है अक्षयवट.
यमुना के तट पर है अक्षयवट. (Photo Credit; ETV Bharat)

प्रयागराज : संगम नगरी में महाकुंभ की तैयारियां तेजी से चल रहीं हैं. मेले में देश-विदेश से लोग स्नान के लिए पहुंचते हैं. मान्यता है कि यहां यमुना तट पर अकबर किले में प्राचीन अक्षय वट है. यह रामायण कालीन बताया जाता है. बिना इसके दर्शन के संगम में स्नान का फल अधूरा माना जाता है. योगी सरकार इसका युद्धस्तर कायाकल्प करा रही है. अक्षय वट प्राचीन पेड़ है. इससे कई कहानियां जुड़ी है.

योगी सरकार प्रयागराज के तीर्थों का कायाकल्प करने में युद्धस्तर पर जुटी है. श्रद्धालुओं को कुंभनगरी की भव्यता और नव्यता का दिव्य दर्शन करवाने के लिए प्रदेश सरकार ने भारी भरकम बजट का ऐलान किया है. अक्षयवट का बड़ा पौराणिक महत्व है. मान्यता के अनुसार संगम स्नान के पश्चात 300 वर्ष पुराने इस वृक्ष के दर्शन करने के बाद ही स्नान का फल मिलता है. तीर्थराज आने वाले श्रद्धालु एवं साधु संत संगम में स्नान करने के बाद इस अक्षयवट के दर्शन करने जाते हैं.

प्राचीन वृक्ष से जुड़ी हैं कई मान्यताएं. (Video Credit; ETV Bharat)

सरकार की महत्वाकांक्षी अक्षयवट कॉरिडोर सौंदर्यीकरण योजना का जायजा लेने के बाद मुख्यमंत्री ने इसके कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं. मान्यता है कि वन जाते समय भगवान श्रीराम भारद्वाज मुनि के आश्रम में पहुंचे थे. यहां ऋषि ने उन्हें वटवृक्ष का महत्व बताया था. मान्यता के अनुसार माता सीता ने वटवृक्ष को आशीर्वाद दिया था. बड़ा उदासीन बड़ा अखाड़ा के महंत दुर्गा दास ने बताया कि प्रलय के समय जब पृथ्वी डूब गई तो वट की शाखा बच गई. इसे हम अक्षयवट के नाम से जानते हैं.

महाकवि कालिदास के रघुवंश और चीनी यात्री ह्वेनत्सांग के यात्रा वृत्तांत में भी अक्षय वट का जिक्र किया गया है. कहा जाता है कि अक्षयवट के दर्शन मात्र से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. भारत मेें चार प्राचीन वट वृक्ष माने जाते हैं. इनमें अक्षयवट- प्रयागराज, गृद्धवट-सोरों 'शूकरक्षेत्र', सिद्धवट- उज्जैन एवं वंशीवट- वृंदावन शामिल हैं. यमुना तट पर अकबर के किले में अक्षयवट स्थित है. मुगलकाल में इसके दर्शन पर प्रतिबंध था.

ऐसी मान्यता है कि अक्षय वट का अस्तित्व समाप्त करने के लिए मुगल काल में तमाम तरीके अपनाए गए. उसे काटकर दर्जनों बार जलाया गया, लेकिन ऐसा करने वाले असफल रहे. काटने व जलाने के कुछ माह बाद अक्षयवट पुन: अपने स्वरूप में आ जाता था. ब्रिटिश काल और आजाद भारत में भी किला सेना के आधिपत्य में रहने के कारण वृक्ष का दर्शन दुर्लभ था. योगी सरकार ने 2018 में अक्षयवट का दर्शन व पूजन करने के लिए इसे आम लोगों के लिए खोल दिया था.

यह भी पढ़ें : महाकुंभ 2025; कम पैसे में श्रद्धालुओं को होटल जैसी मिलेगी सुविधा, 2 हजार घरों को पेइंग गेस्ट बनाने की कवायद

प्रयागराज : संगम नगरी में महाकुंभ की तैयारियां तेजी से चल रहीं हैं. मेले में देश-विदेश से लोग स्नान के लिए पहुंचते हैं. मान्यता है कि यहां यमुना तट पर अकबर किले में प्राचीन अक्षय वट है. यह रामायण कालीन बताया जाता है. बिना इसके दर्शन के संगम में स्नान का फल अधूरा माना जाता है. योगी सरकार इसका युद्धस्तर कायाकल्प करा रही है. अक्षय वट प्राचीन पेड़ है. इससे कई कहानियां जुड़ी है.

योगी सरकार प्रयागराज के तीर्थों का कायाकल्प करने में युद्धस्तर पर जुटी है. श्रद्धालुओं को कुंभनगरी की भव्यता और नव्यता का दिव्य दर्शन करवाने के लिए प्रदेश सरकार ने भारी भरकम बजट का ऐलान किया है. अक्षयवट का बड़ा पौराणिक महत्व है. मान्यता के अनुसार संगम स्नान के पश्चात 300 वर्ष पुराने इस वृक्ष के दर्शन करने के बाद ही स्नान का फल मिलता है. तीर्थराज आने वाले श्रद्धालु एवं साधु संत संगम में स्नान करने के बाद इस अक्षयवट के दर्शन करने जाते हैं.

प्राचीन वृक्ष से जुड़ी हैं कई मान्यताएं. (Video Credit; ETV Bharat)

सरकार की महत्वाकांक्षी अक्षयवट कॉरिडोर सौंदर्यीकरण योजना का जायजा लेने के बाद मुख्यमंत्री ने इसके कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं. मान्यता है कि वन जाते समय भगवान श्रीराम भारद्वाज मुनि के आश्रम में पहुंचे थे. यहां ऋषि ने उन्हें वटवृक्ष का महत्व बताया था. मान्यता के अनुसार माता सीता ने वटवृक्ष को आशीर्वाद दिया था. बड़ा उदासीन बड़ा अखाड़ा के महंत दुर्गा दास ने बताया कि प्रलय के समय जब पृथ्वी डूब गई तो वट की शाखा बच गई. इसे हम अक्षयवट के नाम से जानते हैं.

महाकवि कालिदास के रघुवंश और चीनी यात्री ह्वेनत्सांग के यात्रा वृत्तांत में भी अक्षय वट का जिक्र किया गया है. कहा जाता है कि अक्षयवट के दर्शन मात्र से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. भारत मेें चार प्राचीन वट वृक्ष माने जाते हैं. इनमें अक्षयवट- प्रयागराज, गृद्धवट-सोरों 'शूकरक्षेत्र', सिद्धवट- उज्जैन एवं वंशीवट- वृंदावन शामिल हैं. यमुना तट पर अकबर के किले में अक्षयवट स्थित है. मुगलकाल में इसके दर्शन पर प्रतिबंध था.

ऐसी मान्यता है कि अक्षय वट का अस्तित्व समाप्त करने के लिए मुगल काल में तमाम तरीके अपनाए गए. उसे काटकर दर्जनों बार जलाया गया, लेकिन ऐसा करने वाले असफल रहे. काटने व जलाने के कुछ माह बाद अक्षयवट पुन: अपने स्वरूप में आ जाता था. ब्रिटिश काल और आजाद भारत में भी किला सेना के आधिपत्य में रहने के कारण वृक्ष का दर्शन दुर्लभ था. योगी सरकार ने 2018 में अक्षयवट का दर्शन व पूजन करने के लिए इसे आम लोगों के लिए खोल दिया था.

यह भी पढ़ें : महाकुंभ 2025; कम पैसे में श्रद्धालुओं को होटल जैसी मिलेगी सुविधा, 2 हजार घरों को पेइंग गेस्ट बनाने की कवायद

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.