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प्रयागराज महाकुंभ: ये हैं अलख दरबारी संत, कमर में बांधते हैं घंटी, भूखे रहकर भी करते हैं साधना - ALAKH DARBARI SAINTS

महाकुंभ मेला क्षेत्र में पहुंचा श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े से संबद्ध अलख दरबारी के संतों का जत्था. पढ़िए इनकी मान्यताएं और परंपराएं...

महाकुंभ मेले में पहुंचे अलख दरबारी संत.
महाकुंभ मेले में पहुंचे अलख दरबारी संत. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 5 hours ago

Updated : 5 hours ago

प्रयागराज : महाकुंभ में अखाड़ों के प्रवेश के बाद अब इनके सहगामी उप अखाड़ों की भी एंट्री शुरू हो गई है. इसी कड़ी में श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े से संबद्ध अलख दरबारी के संतों का जत्था भी कुंभ क्षेत्र में पहुंच चुका है. भगवान शिव को अपना इष्ट मानने वाले अलख दरबारी के संत अपनी कमर में एक घंटी बांधे रहते हैं. इसकी आवाज से लोग समझ जाते हैं कि अलखिये आ गए. इन्हें शिव का गण माना जाता है. इनकी कमर में भगवान शिव के वाहन नंदी की घंटी बंधी रहती है. घंटी की गूंज से लोग इनके लिए रास्ता छोड़ देते हैं. ये किसी से भिक्षा नहीं मांगते. अगर कोई बिना मांगे इनके कमंडल में डाल दे तो उसे स्वीकार कर लेते हैं.

अलख दरबारी संतों की अलग पहचान होती है. (Video Credit; ETV Bharat)

महाकुंभ में नॉन स्टॉप रहते हैं अलख दरबारी संत : यह साधुओं का एक जत्था है जो कुंभ में एक जगह अपने ठिकाने पर नहीं मिलता. हमेशा कुंभ क्षेत्र में भागता नजर आएगा. यहां तक कि भिक्षा लेते समय भी यह कभी नहीं रुकते. इसीलिए इनको कुंभ का नॉन स्टॉप संत भी कहा जाता है.

पहले भरते हैं दूसरों का पेट : अलख दरबार के संत सिर्फ भिक्षा पर अपना जीवन यापन करते हैं. ये संत भिक्षा में अन्न खुद कभी सीधे ग्रहण नहीं करते. पहले दूसरों का पेट भरते हैं और यदि कुछ बच जाए तो उससे खुद प्रसाद पाते हैं. इनकी दिनचर्या यह है कि ये भिक्षा में मिलने वाले अन्न को पकाकर पहले भगवान शिव को भोग लगाते हैं, फिर गरीबों को भोजन कराते हैं. इसके बाद फिर बचा हुआ प्रसाद भगवान का आशीर्वाद समझकर ग्रहण करते हैं. इस प्रक्रिया में कई बार ऐसा होता है कि कई दिनों तक इन साधुओं को भिक्षा ही नहीं मिलती. इस स्थिति में कभी कभी ये पानी पीकर अपनी साधना में जुटे रहते हैं.

किसी संत के ब्रह्मलीन होने पर बांटते हैं धूल रोट : सबसे बड़ी बात यह है कि इस अखाड़े में संतों शास्त्र औ शस्त्र विद्या से शिक्षित किया जाता है. अलख दरबार का सबसे बड़ा जो महत्व है वह यह है कि जब पूरे देश में कहीं भी कोई साध-संत शरीर छोड़ देता है या ब्रह्मलीन हो जाता है तो कुंभ में आकर उसकी लिखा पढ़ी होती है. धूल रोट बांटा जाता है, जिससे यह प्रचार हो सके कि कौन साधु था, वह कहां का था. इसके बाद एक टीम तैयार की जाती है जिनको शिव का रूप दिया जाता है, उनकी एक अलग पहचान होती है. उनको एक नारा दिया जाता है 'लगे लठ फटे खोपड़ी चटाचट माल निकालो खटाखट'.

यह भी पढ़ें : प्रयागराज महाकुंभ 2025, स्थापना से पहले अखाड़ों की धर्म ध्वजा की कैसे होती है सजावट?, पढ़िए डिटेल

प्रयागराज : महाकुंभ में अखाड़ों के प्रवेश के बाद अब इनके सहगामी उप अखाड़ों की भी एंट्री शुरू हो गई है. इसी कड़ी में श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े से संबद्ध अलख दरबारी के संतों का जत्था भी कुंभ क्षेत्र में पहुंच चुका है. भगवान शिव को अपना इष्ट मानने वाले अलख दरबारी के संत अपनी कमर में एक घंटी बांधे रहते हैं. इसकी आवाज से लोग समझ जाते हैं कि अलखिये आ गए. इन्हें शिव का गण माना जाता है. इनकी कमर में भगवान शिव के वाहन नंदी की घंटी बंधी रहती है. घंटी की गूंज से लोग इनके लिए रास्ता छोड़ देते हैं. ये किसी से भिक्षा नहीं मांगते. अगर कोई बिना मांगे इनके कमंडल में डाल दे तो उसे स्वीकार कर लेते हैं.

अलख दरबारी संतों की अलग पहचान होती है. (Video Credit; ETV Bharat)

महाकुंभ में नॉन स्टॉप रहते हैं अलख दरबारी संत : यह साधुओं का एक जत्था है जो कुंभ में एक जगह अपने ठिकाने पर नहीं मिलता. हमेशा कुंभ क्षेत्र में भागता नजर आएगा. यहां तक कि भिक्षा लेते समय भी यह कभी नहीं रुकते. इसीलिए इनको कुंभ का नॉन स्टॉप संत भी कहा जाता है.

पहले भरते हैं दूसरों का पेट : अलख दरबार के संत सिर्फ भिक्षा पर अपना जीवन यापन करते हैं. ये संत भिक्षा में अन्न खुद कभी सीधे ग्रहण नहीं करते. पहले दूसरों का पेट भरते हैं और यदि कुछ बच जाए तो उससे खुद प्रसाद पाते हैं. इनकी दिनचर्या यह है कि ये भिक्षा में मिलने वाले अन्न को पकाकर पहले भगवान शिव को भोग लगाते हैं, फिर गरीबों को भोजन कराते हैं. इसके बाद फिर बचा हुआ प्रसाद भगवान का आशीर्वाद समझकर ग्रहण करते हैं. इस प्रक्रिया में कई बार ऐसा होता है कि कई दिनों तक इन साधुओं को भिक्षा ही नहीं मिलती. इस स्थिति में कभी कभी ये पानी पीकर अपनी साधना में जुटे रहते हैं.

किसी संत के ब्रह्मलीन होने पर बांटते हैं धूल रोट : सबसे बड़ी बात यह है कि इस अखाड़े में संतों शास्त्र औ शस्त्र विद्या से शिक्षित किया जाता है. अलख दरबार का सबसे बड़ा जो महत्व है वह यह है कि जब पूरे देश में कहीं भी कोई साध-संत शरीर छोड़ देता है या ब्रह्मलीन हो जाता है तो कुंभ में आकर उसकी लिखा पढ़ी होती है. धूल रोट बांटा जाता है, जिससे यह प्रचार हो सके कि कौन साधु था, वह कहां का था. इसके बाद एक टीम तैयार की जाती है जिनको शिव का रूप दिया जाता है, उनकी एक अलग पहचान होती है. उनको एक नारा दिया जाता है 'लगे लठ फटे खोपड़ी चटाचट माल निकालो खटाखट'.

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