इंदौर। इंदौर में चुनावी घोषणा पत्र पर चर्चा के दौरान कैबिनेट मंत्री प्रहलाद पटेल ने कहा "चोरी गई मूर्तियों को लेकर केंद्र सरकार ने जो नीति तय की है, उसमें स्पष्ट है कि जो मूर्ति जहां से चोरी होगी, उसे उसी स्थान पर स्थापित किया जाएगा. पटेल ने कहा कि पहले चोरी होने वाली मूर्तियां संग्रहालय अथवा अन्य स्थानों पर रखी जाती थीं. लेकिन अब मोदी सरकार के नेतृत्व में तय किया गया है कि अब जहां से जो मूर्ति चोरी होगी, उसे वहीं स्थापित किया जाएगा." हालांकि उन्होंने स्पष्ट तौर पर धार भोजशाला गौशाला में मां सरस्वती वाग्देवी की मूर्ति की स्थापना करने का दावा नहीं किया, लेकिन माना जा रहा है कि भविष्य में ऐसा हो सकता है.
धार भोजशाला में हाईकोर्ट के निर्देश पर सर्वे
गौरतलब है कि हाल ही में इंदौर हाई कोर्ट के निर्णय के बाद धार भोजशाला में प्राचीन अवशेषों और साक्ष्यों को लेकर आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया द्वारा खुदाई की जा रही है. जिसकी रिपोर्ट हाई कोर्ट और केंद्र को प्रस्तुत की जाएगी. इधर, गौशाला में खुदाई की याचिका लगाने वाले हिंदू पक्ष का कहना है कि सन् 1305 में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर आक्रमण करके मां सरस्वती वाग्देवी की प्रतिमा खंडित कर दी थी. इसके बाद 1902 में मेजर किंनकैड इस मूर्ति को लंदन लेकर चला गया था, जो आज भी लंदन के म्यूजियम में मौजूद है.
देश से एक लाख से ज्यादा मूर्तियां चोरी
बता दें कि हाल ही में दतिया के श्रीराम जानकी मंदिर से भगवान राम, लक्ष्मण और सीता की प्राचीन मूर्ति चोरी हुई थी. इसके अलावा उड़ीसा एवं अन्य स्थानों से भी अति दुर्लभ मूर्तियां चोरी हुईं. बताया जा रहा है कि हर साल मूर्तियों के तस्कर भारत की दुर्लभ मूर्तियों को चुराकर विदेशी संग्रहालयों के प्रतिनिधियों को करोड़ों रुपए में बेचते हैं. इसके अलावा विभिन्न देशों में कई प्राइवेट संग्रहालय भी हैं, जहां समय-समय पर भारतीय प्राचीन मूर्तियां पाई गई हैं. एक अनुमान के मुताबिक कुछ दशकों में ही भारत से 1 लाख से ज्यादा प्राचीन धरोहर चोरी हो चुकी हैं, हालांकि हाल ही में सरकार ने दावा किया था कि बीते 7 सालों में चोरी गई 75% मूर्तियों को वापस लाया गया है. एक आंकड़ा यह भी है कि 1989 तक भारतीय पुरातत्व अवशेषों के अलावा करीब 50 हजार मूर्तियां अभी भी चोरी के रिकॉर्ड में दर्ज हैं, जिन्हें वापस लाने के प्रयास न के बराबर हैं.
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ये है मूर्ति वापस लाने की प्रक्रिया
दरअसल, कुछ निजी संस्थाएं एवं वेबसाइट लगातार इस बात की निगरानी करती हैं कि किस देश में कौन सी मूर्ति नायाब है. इसके अलावा यदि किसी देश की वह मूर्ति होती है तो उसकी जानकारी भी वेबसाइट अथवा सोशल प्लेटफॉर्म पर फोटो समेत दी जाती है. ऐसी स्थिति में संबंधित देश उस मूर्ति पर अपने दावे के समर्थन में प्रमाण और साक्ष्य के साथ FIR की कॉपी संबंधित राष्ट्र के प्रतिनिधि को प्रस्तुत करता है. इस प्रक्रिया में लगने वाला खर्च संबंधित देश को ही उठाना पड़ता है. भारत में इस तरह स्मारकों और पुरातत्व अवशेषों को वापस लाने के लिए 2007 में शुरू किए गए. अभियान के तहत ऐसी तीन लाख 52 हजार प्राचीन धरोहरों को चिह्नित किया गया था, जो तस्करों अथवा मूर्ति चोरों द्वारा चोरी छुपे ऊंचे दामों पर विदेश में बेची गई थीं. माना जा रहा है कि देश में 58 लाख ऐसे पुरातत्व अवशेष अथवा मूर्तियां हैं, जो अभी भी गायब हैं. जिनकी खोजबीन अलग-अलग स्तर पर हो रही है.