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उम्मीदों का चाक : चाइनीज आइटम और महंगी मिट्टी ने तोड़ी कुम्हारों के व्यवसाय की कमर, घर खर्च चलाना भी मुश्किल

मिट्टी के दीपक बनाने वाले कुम्हारों के लिए अब दीपक बनाना और बेचना मुनाफे का सौदा नहीं रहा. पढ़िए पूरी खबर.

मिट्टी के दियों की डिमांड हुई कम
मिट्टी के दियों की डिमांड हुई कम (ETV Bharat GFX)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 16, 2024, 6:32 AM IST

भरतपुर : दीपावली का त्यौहार नजदीक आते ही कुम्हारों का उम्मीदों का चाक घूमना शुरू हो जाता है. नए-नए डिजाइन और आकार की मिट्टी के दीपक बनाना शुरू कर देते हैं ताकि दीपावली पर लोग के घर रोशन हो सकें, लेकिन इन कुम्हारों के जीवन में बीते कई वर्षों से 'रोशनी' का इंतजार है. मार्केट में चाइनीज आइटम की वजह से कुम्हारों का परंपरागत मिट्टी के दीपकों का व्यवसाय मानो चौपट हो गया है. महंगी मिट्टी ने भी परेशानी को और बढ़ा दिया है. हालात ये हैं कि अब यह परंपरागत व्यवसाय अधिकतर बुजुर्ग ही संभाल रहे हैं. नई पीढ़ी के युवा इस मंद पड़े व्यवसाय से विमुख होकर अन्य रोजगारों की ओर मुड़ गए हैं.

कम हुई मिट्टी के दियों की मांग (ETV Bharat Bharatpur)

शहर के कुम्हार राम प्रसाद प्रजापत ने बताया कि वह 50 साल से मिट्टी के दीपक बनाने का काम कर रहे हैं. अब मिट्टी बहुत महंगी हो गई. महंगी मिट्टी की वजह से दीपक बनाने में लागत अधिक आ रही है और प्रॉफिट कम मिल रहा है. दीपावली पर रोशनी व सजावट के लिए चाइनीज लाइटें आने की वजह से मिट्टी के दीपकों की डिमांड भी ना के बराबर रह गई है. इसकी वजह से मिट्टी के दीपकों का व्यवसाय एक तरह से चौपट हो हो गया है.

इसे भी पढ़ें- Diwali 2022: मिट्टी के दीपकों से कुम्हारों का मन 'खट्टा'...बोले नहीं मिलता मेहनताना, पेट पालना बड़ी चुनौती

परंपरागत व्यवसाय छोड़ रहे युवा : राम प्रसाद ने बताया कि अत्यधिक महंगाई और कम मुनाफे की वजह से परिवार का पालन करना मुश्किल हो गया है. अत्यधिक मेहनत और काम के बदले इतने पैसे नहीं मिलते हैं, इसलिए प्रजापत समाज के युवा अपना पुश्तैनी काम करने से परहेज कर रहे हैं. युवा दीपक या मिट्टी के बर्तन बनाने के बजाय या तो मजदूरी करने चले जाते हैं या फिर अन्य व्यवसाय करने लगे हैं.

महंगी होती मिट्टी, कम मुनाफा : राम प्रसाद प्रजापत ने बताया कि जनसंख्या बढ़ने की वजह से शहर के आसपास खेतों में कॉलोनियों बन गईं, इसलिए अब मिट्टी दूरदराज के गांवों से मंगवानी पड़ती है. इसलिए मिट्टी महंगी पड़ रही है. एक ट्रॉली मिट्टी 3 हजार रुपए तक मिल रही है. मिट्टी के सामान को पकाने के लिए इंधन भी महंगा आता है. थोक में मिट्टी के 40 रुपए में 100 दीपक बेचे जा रहे हैं. एक मिट्टी के दीपक से 40 पैसे की आय हो रही है. इसमें भी मुनाफा कम मिल रहा है. इसमें भी ग्राहक मोल-भाव करता है तो और भी कम कीमत में बेचने पड़ते हैं.

इसे भी पढ़ें- मिट्टी के दीपक खुशियां लाएंगे अपार: बढ़ी चाकों की रफ्तार, मिट्टी के दीए बनाने में जुटे कलाकार

गाय के गोबर से निर्मित हो रहे दीपक : वहीं, मिट्टी की कम उपलब्धता के चलते अब कुछ लोग मिट्टी के बजाय गाय के गोबर से भी दीपक बनाने लगे हैं. शहर के कच्चे कुंडा की रहने वाली महिला कृपा ने बताया कि वो गाय के गोबर में मुल्तानी मिट्टी और तुलसी के बीज मिलकर दीपक बना रही है. गाय के गोबर को पवित्र माना जाता है, इसलिए इनके दाम भी सही मिल जाते हैं. गाय के गोबर के 100 दीपक 200 रुपए में बिक जाते हैं. डिजाइनर दीपकों के और भी अच्छे दाम मिल जाते हैं.

भरतपुर : दीपावली का त्यौहार नजदीक आते ही कुम्हारों का उम्मीदों का चाक घूमना शुरू हो जाता है. नए-नए डिजाइन और आकार की मिट्टी के दीपक बनाना शुरू कर देते हैं ताकि दीपावली पर लोग के घर रोशन हो सकें, लेकिन इन कुम्हारों के जीवन में बीते कई वर्षों से 'रोशनी' का इंतजार है. मार्केट में चाइनीज आइटम की वजह से कुम्हारों का परंपरागत मिट्टी के दीपकों का व्यवसाय मानो चौपट हो गया है. महंगी मिट्टी ने भी परेशानी को और बढ़ा दिया है. हालात ये हैं कि अब यह परंपरागत व्यवसाय अधिकतर बुजुर्ग ही संभाल रहे हैं. नई पीढ़ी के युवा इस मंद पड़े व्यवसाय से विमुख होकर अन्य रोजगारों की ओर मुड़ गए हैं.

कम हुई मिट्टी के दियों की मांग (ETV Bharat Bharatpur)

शहर के कुम्हार राम प्रसाद प्रजापत ने बताया कि वह 50 साल से मिट्टी के दीपक बनाने का काम कर रहे हैं. अब मिट्टी बहुत महंगी हो गई. महंगी मिट्टी की वजह से दीपक बनाने में लागत अधिक आ रही है और प्रॉफिट कम मिल रहा है. दीपावली पर रोशनी व सजावट के लिए चाइनीज लाइटें आने की वजह से मिट्टी के दीपकों की डिमांड भी ना के बराबर रह गई है. इसकी वजह से मिट्टी के दीपकों का व्यवसाय एक तरह से चौपट हो हो गया है.

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परंपरागत व्यवसाय छोड़ रहे युवा : राम प्रसाद ने बताया कि अत्यधिक महंगाई और कम मुनाफे की वजह से परिवार का पालन करना मुश्किल हो गया है. अत्यधिक मेहनत और काम के बदले इतने पैसे नहीं मिलते हैं, इसलिए प्रजापत समाज के युवा अपना पुश्तैनी काम करने से परहेज कर रहे हैं. युवा दीपक या मिट्टी के बर्तन बनाने के बजाय या तो मजदूरी करने चले जाते हैं या फिर अन्य व्यवसाय करने लगे हैं.

महंगी होती मिट्टी, कम मुनाफा : राम प्रसाद प्रजापत ने बताया कि जनसंख्या बढ़ने की वजह से शहर के आसपास खेतों में कॉलोनियों बन गईं, इसलिए अब मिट्टी दूरदराज के गांवों से मंगवानी पड़ती है. इसलिए मिट्टी महंगी पड़ रही है. एक ट्रॉली मिट्टी 3 हजार रुपए तक मिल रही है. मिट्टी के सामान को पकाने के लिए इंधन भी महंगा आता है. थोक में मिट्टी के 40 रुपए में 100 दीपक बेचे जा रहे हैं. एक मिट्टी के दीपक से 40 पैसे की आय हो रही है. इसमें भी मुनाफा कम मिल रहा है. इसमें भी ग्राहक मोल-भाव करता है तो और भी कम कीमत में बेचने पड़ते हैं.

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गाय के गोबर से निर्मित हो रहे दीपक : वहीं, मिट्टी की कम उपलब्धता के चलते अब कुछ लोग मिट्टी के बजाय गाय के गोबर से भी दीपक बनाने लगे हैं. शहर के कच्चे कुंडा की रहने वाली महिला कृपा ने बताया कि वो गाय के गोबर में मुल्तानी मिट्टी और तुलसी के बीज मिलकर दीपक बना रही है. गाय के गोबर को पवित्र माना जाता है, इसलिए इनके दाम भी सही मिल जाते हैं. गाय के गोबर के 100 दीपक 200 रुपए में बिक जाते हैं. डिजाइनर दीपकों के और भी अच्छे दाम मिल जाते हैं.

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