रायपुर : छत्तीसगढ़ में एक बार फिर स्काईवॉक का निर्माण शुरु होने की सुगबुगाहट है.बीजेपी सरकार ने स्काईवॉक का काम दोबारा शुरु करने की बात कही है. हालांकि इसका निर्माण कार्य कब शुरू होगा.इसकी तारीख जारी नहीं की गई है.लेकिन अनुमान है कि जल्द से जल्द बीजेपी सरकार इसे पूरा करने वाली है. आईए जानते हैं कैसी रही अब तक स्काईवॉक की कहानी.
रमन शासन में शुरु हुआ था निर्माण : स्काईवॉक का प्रोजेक्ट पूर्ववर्ती रमन सरकार में तत्कालीन पीडब्ल्यूडी मंत्री राजेश मूणत ने साल 2016-17 में शुरू किया था, लेकिन आज तक यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो सका है.प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का असर स्काईवॉक पर भी पड़ा.कांग्रेस ने पूरे निर्माण कार्य में भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर इसके काम को बंद करवा दिया.इसके बाद ना तो इसका काम दोबारा शुरु हुआ और ना ही तोड़ा गया.तब से लेकर अब तक स्काईवॉक यही पूछ रहा कि मुझ पर कौन करेगा वॉक.
क्यों बना स्काईवॉक : रमन सरकार ने साल 2016-17 में स्काईवॉक के संबंध में सर्वे कराया था. इसके कंसलटेंट एसएन भावे एसोसिएट मुंबई ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि शास्त्री चौक से रोजाना 27 हजार और मेकाहारा चौक से लगभग 14 हजार राहगीर पैदल आना जाना करते हैं. इस आधार पर स्काईवॉक बनाने का निर्णय रमन सरकार ने लिया.उस दौरान पीडब्ल्यूडी मंत्री राजेश मूणत थे.
2017 में बुलाई गई निविदा: स्काईवॉक निर्माण के लिए साल 2017 में निविदा बुलाई गई. निविदा में मेसर्स जीएस एक्सप्रेस लखनऊ को 42.55 करोड़ रुपए निर्माण कार्य के लिए स्वीकृत कराए गए. इस स्काईवॉक का निर्माण कार्य 8 महीने में पूरा किया जाना था. इसकी कुल लंबाई लगभग 1.470 किलोमीटर थी. वहीं इसमें 10 स्थान पर सीढ़ी, 8 जगहों पर एस्केलेटर और 2 जगह पर लिफ्ट लगाना था. कुछ समय बाद इसकी पुनरीक्षित लागत राशि बढ़कर 77 करोड़ रुपए हो गई.
सरकार बदली तो खड़े हुए सवाल : स्काईवॉक को लेकर कांग्रेस लगातार सवाल खड़े करती रही कई बार कांग्रेस ने इस मामले को लेकर बीजेपी को घेरने की कोशिश की है. कांग्रेस का आरोप था कि स्काईवॉक प्रोजेक्ट को जल्दबाजी में पारित किया गया है. यह भी कहा गया था कि 50 करोड़ रुपए से अधिक लागत वाली कोई भी बुनियादी ढांचा परियोजना सार्वजनिक निधि निवेश समिति (पीएफआईसी) की मंजूरी के बाद ही क्रियान्वित की जा सकती है. लेकिन इस परियोजना के लिए नियम का पालन नहीं किया गया. स्काईवॉक निर्माण के लिए मार्च 2017 में मंजूरी दी गई।
कांग्रेस ने टेंडर में गड़बड़ी के लगाए थे आरोप : कांग्रेस की माने तो इस दौरान पीएफआईसी की मंजूरी की आवश्यकता को तत्काल में बीजेपी सरकार में दरकिनार करते हुए परियोजना की लागत 40.08 करोड़ रुपए दिखाई थी. दिसंबर 2017 में इसकी परियोजना लागत बढ़कर 81.69 करोड़ रुपये हो गई थी. इतना ही नहीं संशोधित परियोजना में कुछ ऐसे विवरण भी शामिल किए गए थे जिन्हें मूल रोकी गई परियोजना रिपोर्ट डीपीआर में शामिल किया जाना चाहिए था. यह भी संभावना जताई जा रही है कि परियोजना को पीएफआईसी में लाने से बचने के लिए ऐसा किया गया था. उस दौरान कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि तत्कालीन पीडब्ल्यूडी मंत्री राजेश मूणत ने 23 अप्रैल 2018 को परियोजना में 12 संशोधन प्रस्तावित किया. जिसके परिणाम स्वरुप सिविल कार्य में ही 15.69 करोड़ रुपए की और वृद्धि हो गई थी.
स्काईवॉक में जमकर हुई राजनीति,नहीं हुआ काम : वहीं सत्ता परिवर्तन के बाद स्काईवॉक का अस्तित्व बनाए रखना है या फिर उसे गिराना है इसके लिए भी एक कमेटी बनीं थी. तत्कालीन वरिष्ठ विधायक सत्यनारायण शर्मा की अध्यक्षता में एक सुझाव समिति बनाई गई. इसमें बीजेपी विधायक को भी शामिल करने का प्रस्ताव तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने रखा था. लेकिन बीजेपी ने अपने विधायकों का नाम देने से इनकार कर दिया. बाद में बिना बीजेपी विधायक के इस समिति ने स्काईवॉक ना तोड़े जाने का सुझाव तत्कालीन कांग्रेस सरकार को दिया. इसकी वजह यह थी कि स्काईवॉक के निर्माण में लगभग 45 करोड़ रुपए खर्च हो चुके थे. 31 करोड़ रुपए और खर्च करके इस स्काईवॉक का निर्माण कार्य पूरा किया जा सकता था. उसके बाद से लगातार स्काईवॉक को लेकर सिर्फ राजनीति होती रही उसका हल नहीं निकल सका.
स्काईवॉक पर जमकर हुआ भ्रष्टाचार : वहीं स्काईवॉक के निर्माण दोबारा शुरु करने को लेकर कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर का कहना है कि स्काईवॉक भाजपा सरकार की भ्रष्टाचार का स्मारक है. आम जनता के विरोध के बावजूद अपनी जिद्द को पूरा करने के लिए स्काईवॉक को बनाया जा रहा था. इससे सरकार के खजाने को नुकसान पहुंचा हुआ है. यह निर्माणधीन स्काईवॉक का ढांचा बीजेपी को चिढ़ा रही है, क्योंकि इसमें खूब भ्रष्टाचार किया गया था.
''एक बार और भ्रष्टाचार करने के लिए जनता के विरोध और जनता की इच्छा के विपरीत जाकर सरकार इसके निर्माण का काम करेगी. तो एक बार फिर भ्रष्टाचार करने के लिए यह काम किया जा रहा है. इससे सरकार के खजाने को चूना लगेगा, जनता को इसका कोई लाभ नहीं मिलेगा. सरकार को चाहिए कि एक बार फिर इसे लेकर सर्वे कराए और जनता की मांग के अनुरूप काम हो.'' धनंजय सिंह ठाकुर, प्रदेश प्रवक्ता, कांग्रेस
कांग्रेस ने क्यों नहीं गिराया : अमित साहू ने कहा कि यदि कांग्रेस इसे भ्रष्टाचार का स्मारक कहती है तो क्यों उन्होंने अपने 5 साल के कार्यकाल में इसे नहीं गिराया. क्यों उनकी हिम्मत नहीं हुई इसे गिराने की.
''ये लोग विकास विरोधी हैं, इसलिए कांग्रेसी आरोप लगा रहे हैं. आज रायपुर राजधानीवासी इसका स्वागत कर रहे हैं. सभी इसके बनने का इंतजार कर रहे हैं और जितना जल्दी बनेगा उतनी जल्दी राजधानीवासियों को इसका लाभ मिलेगा.'' अमित साहू, प्रदेश प्रवक्ता, भाजपा
स्काईवॉक का समाधान निकालना जरुरी : वहीं इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार अनिरुद्ध दुबे का कहना है कि क्या आज शासन इस स्काईवॉक पर करोड़ों खर्च करने की स्थिति में है, भले उस समय महज 25 से 30% काम ही बचा रहा हो, और अभी भी इसकी जरूरत बहुत ज्यादा है. मेरा सुझाव है कि इसका कोई ठोस समाधान नहीं निकल सकता, तो इसका इस्तेमाल अलग-अलग जगह पर फुट ओवरब्रिज के रूप में भी किया जा सकता है. जिससे लोगों को आवागमन में आसानी होगी. लेकिन कुल मिलाकर वर्तमान स्थिति को देखते हुए स्काईवॉक का काम पूरा होना दूर की कौड़ी लाने जैसी चीज है.
''जनता की ओर से स्काईवॉक निर्माण को लेकर कोई मांग सामने नहीं आ रही है. ना ही जनता इसे चाह रही है. लेकिन जो भी निर्णय सरकार लेना चाहती है उसे ले और इसे तुरंत बनाएं और यदि तोड़ना है तो उसे तोड़ दे, लेकिन कुछ भी हो फैसला जल्द ले.'' - अनिरुद्ध दुबे, वरिष्ठ पत्रकार
आपको बता दें कि एक अनुमान के मुताबिक लगभग 60 से 70 फीसदी स्काईवॉक का काम पूरा हो चुका है. करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं. यही वजह थी कि पूर्ववर्ती भूपेश सरकार ने ना तो इस स्काईवॉक के निर्माण कार्य को पूरा किया. ना ही इसे तोड़ने की कोशिश की. क्योंकि इसको तोड़ने पर भी करोड़ों रुपए खर्च का अनुमान था. यही वजह रही यह निर्माणधीन स्काईवॉक पूर्ववर्ती रमन सरकार, फिर भूपेश सरकार और अब साय सरकार के दौरान अधूरा है.