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पिता की राजनीतिक विरासत को पूर्वांचल में बिरले ही संभाल पाए, बाहुबल और सियासी दांवपेंच भी नहीं आया काम - Lok Sabha Election 2024

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 11, 2024, 8:18 PM IST

पूर्वांचल में राजनीति का बड़ा दौर बाहुबल और सियासी दांव पेंच के बल पर खूब आगे बढ़ा. लेकिन वर्तमान में बाहुबलियों के उत्तराधिकारी सियासी संघर्ष में जूझ रहे हैं. अधिकतर बाहुबली नेताओं के उत्तराधिकारी विरासत को आगे बढ़ाने में सफल नहीं होते दिख रहे हैं.

पूर्वांचल के बाहुबली नेता.
पूर्वांचल के बाहुबली नेता. (Photo Credit: Social Media)


गोरखपुर: लोकसभा चुनाव को लेकर इस पूर्वांचल में भी समय सियासत गर्म है. कभी पूर्वांचल में बाहुबलियों का राजनीति में बोलबाला था, लेकिन इनके उत्तराधिकारी इनकी विरासत आगे बढ़ाने में कामयाब नहीं होते दिख रहे हैं. हरिशंकर तिवारी, ओम प्रकाश पासवान, रविन्द्र सिंह, रामगीना मिश्रा, मोहन सिंह, अमर मणि त्रिपाठी और जगदंबिका पाल के उत्तराधिकारी राजनीति में ज्यादा सफल नहीं हो पाए. कुछ एक को छोड़ दिया जाए तो बाकी संघर्ष की राजनीति में हैं. कुछ को पिता स्थापित करना चाह रहे हैं तो समीकरण ठीक नहीं बैठ रहा. भले ही अपने समय में पूर्वांचल की माटी से निकले कई दिग्गजों ने प्रदेश और देश की राजनीति में अलग मुकाम और धमक कायम किया हो. कुछ तो ऐसे दिग्गज हैं, जिनका अब कोई नाम लेता भी नहीं है.

ओमप्रकाश पासवान के उत्तराधिकारी हुए सफलः बता दें कि पासवान बिरादरी से आने वाले बांसगांव लोक सभा सीट से भाजपा सांसद कमलेश पासवान लगातार तीन बार से सांसद है. चौथी बार भी मैदान में है. उन्होंने अपने साथ अपने संसदीय क्षेत्र के बांसगांव विधानसभा सीट से छोटे भाई डॉक्टर विमलेश पासवान को बीजेपी के टिकट पर लगातार दो बार विधानसभा का सदस्य निर्वाचित करा चुके हैं. इनकी मां भी बांसगांव सीट से सांसद रही हैं. कमलेश के पिता ओमप्रकाश पासवान की छवि एक बाहुबली नेता की रही. जिनके ऊपर कई अपराधी मुकदमे दर्ज हैं. ओमप्रकाश पासवान कभी गोरखनाथ मंदिर और तत्कालीन सांसद गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ के बेहद करीबी माने जाते थे.

पंडित हरिशंकर के दोनों बेटे सियासी संघर्ष से जूझ रहेः वहीं, दूसरा राजनीतिक मजबूत घराना पंडित हरिशंकर तिवारी का था. जिन्होंने अपने जीते जी दोनों बेटों को राजनीतिक रूप से स्थापित तो किया लेकिन मौजूदा दौर में दोनों सियासी संघर्ष से जूझ रहे हैं. बड़े बेटे भीष्म शंकर उर्फ उर्फ कुशल तिवारी डुमरियागंज से समाजवादी पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी हैं. जबकि छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी के खिलाफ ईडी की बड़ी जांच चल रही है. वह भी विधायक और दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री रह चुके हैं. गोरखपुर लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी से वर्ष 2009 में चुनाव भी लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

6 बार सांसद रहे राम नगीना मिश्र के बेटे नहीं जीत पाए चुनावः 80 के दशक से लेकर मौजूदा समय के कद्दावर नेताओं की बात करें तो कांग्रेस से राजनीति की शुरुआत करने वाले पंडित राम नगीना मिश्र दो बार सलेमपुर संसदीय सीट से सांसद रहे. लेकिन वर्ष 1988 में लोकसभा में राम मंदिर का मुद्दा उठाने के कारण वह भाजपा के करीबी हो गए. इसके बाद पडरौना लोकसभा सीट से लगातार चार बार उन्होंने प्रतिनिधित्व किया. पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी से रिश्ते में समाधि होने के बावजूद राम नगीना मिश्रा अपने बेटे डॉक्टर परशुराम मिश्र को दो बार विधानसभा चुनाव में उतारे लेकिन जनता का समर्थन उन्हें प्राप्त नहीं हुआ.

बालेश्वर यादव भी बेटे को राजनीति में नहीं कर पाए स्थापितः इसी प्रकार दो बार विधायक और दो बार पडरौना से सांसद रहने वाले मिनी मुख्यमंत्री के नाम से विख्यात बालेश्वर यादव भी अपने बेटे को राजनीतिक सफलता दिलाने में अब तक असफल हैं. बेटे विजेंद्र पाल यादव को दो बार विधानसभा चुनाव लड़ाया लेकिन सफलता नहीं मिली. बड़े समाजवादी नेता के रूप में देवरिया के बरहज से ताल्लुक रखने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष और महामंत्री रहे समाजवादी मेनिफेस्टो के रचयिता पूर्व सांसद मोहन सिंह देश के सर्वश्रेष्ठ सांसद का गौरव हासिल कर चुके थे. लेकिन उनका भी कोई उत्तराधिकारी उनके निधन के बाद राजनीति में सफल नहीं हो पाया है. उनकी बेटि कनक लता सिंह को मुलायम सिंह ने राज्य सभा एक बार भेजा था, लेकिन फिर वह सफल नहीं हुईं.

अमनमणि त्रिपाठी पर किसी ने नहीं लगाया दांवः बाहुबल और राजनीतिक कौशल का एक अलग स्वरूप पैदा करने वाले पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी जेल की सजा काटने के साथ अपने बेटे अमनमणि त्रिपाठी को राजनीतिक कद दिलाने की भरपूर कोशिश किए. लेकिन तीन बार चुनाव लड़ने में उनका बेटा सिर्फ एक बार चुनाव जीतने में सफल हो पाया. लोकसभा के चुनावी दौर में कई राजनीतिक दलों में ताक- झांक करने के बाद भी किसी भी पार्टी ने अमन मणि पर दांव नहीं लगाया. जिससे इस परिवार का भी राजनीतिक भविष्य संघर्ष में ही नजर आ रहा है. देवरिया और गोरखपुर में राजनीतिक विरासत अगर देखा जाए तो सलेमपुर के मौजूदा सांसद रविंद्र कुशवाहा तीसरी बार चुनावी मैदान में लगातार बने हुए हैं. रविंद्र कुशवाहा के पिता हरि केवल प्रसाद चार बार सांसद रहे हैं.

इन नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगीः जिन राजनीतिक विरासत वाले नेताओं की प्रतिष्ठा इस बार दांव पर लगी है, उनमें कमलेश पासवान, भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी, रविंद्र कुशवाहा, शशांक मणि त्रिपाठी जैसे बड़े नाम शामिल हैं. कांग्रेस के कद्यावर नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे जगदंबिका पाल, मौजूदा समय में भाजपा खेमे में है और चौथी बार सांसद बनने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं. लेकिन वह अपने बेटे को अभी तक राजनीतिक वजूद नहीं दिल पाये हैं.

इसे भी पढ़ें-पूर्वांचल का बाहुबली धनंजय सिंह बरेली जेल में शिफ्ट, रास्ते भर एंबुलेंस के साथ रहे परिवार के लोग और समर्थक


गोरखपुर: लोकसभा चुनाव को लेकर इस पूर्वांचल में भी समय सियासत गर्म है. कभी पूर्वांचल में बाहुबलियों का राजनीति में बोलबाला था, लेकिन इनके उत्तराधिकारी इनकी विरासत आगे बढ़ाने में कामयाब नहीं होते दिख रहे हैं. हरिशंकर तिवारी, ओम प्रकाश पासवान, रविन्द्र सिंह, रामगीना मिश्रा, मोहन सिंह, अमर मणि त्रिपाठी और जगदंबिका पाल के उत्तराधिकारी राजनीति में ज्यादा सफल नहीं हो पाए. कुछ एक को छोड़ दिया जाए तो बाकी संघर्ष की राजनीति में हैं. कुछ को पिता स्थापित करना चाह रहे हैं तो समीकरण ठीक नहीं बैठ रहा. भले ही अपने समय में पूर्वांचल की माटी से निकले कई दिग्गजों ने प्रदेश और देश की राजनीति में अलग मुकाम और धमक कायम किया हो. कुछ तो ऐसे दिग्गज हैं, जिनका अब कोई नाम लेता भी नहीं है.

ओमप्रकाश पासवान के उत्तराधिकारी हुए सफलः बता दें कि पासवान बिरादरी से आने वाले बांसगांव लोक सभा सीट से भाजपा सांसद कमलेश पासवान लगातार तीन बार से सांसद है. चौथी बार भी मैदान में है. उन्होंने अपने साथ अपने संसदीय क्षेत्र के बांसगांव विधानसभा सीट से छोटे भाई डॉक्टर विमलेश पासवान को बीजेपी के टिकट पर लगातार दो बार विधानसभा का सदस्य निर्वाचित करा चुके हैं. इनकी मां भी बांसगांव सीट से सांसद रही हैं. कमलेश के पिता ओमप्रकाश पासवान की छवि एक बाहुबली नेता की रही. जिनके ऊपर कई अपराधी मुकदमे दर्ज हैं. ओमप्रकाश पासवान कभी गोरखनाथ मंदिर और तत्कालीन सांसद गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत अवैद्यनाथ के बेहद करीबी माने जाते थे.

पंडित हरिशंकर के दोनों बेटे सियासी संघर्ष से जूझ रहेः वहीं, दूसरा राजनीतिक मजबूत घराना पंडित हरिशंकर तिवारी का था. जिन्होंने अपने जीते जी दोनों बेटों को राजनीतिक रूप से स्थापित तो किया लेकिन मौजूदा दौर में दोनों सियासी संघर्ष से जूझ रहे हैं. बड़े बेटे भीष्म शंकर उर्फ उर्फ कुशल तिवारी डुमरियागंज से समाजवादी पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी हैं. जबकि छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी के खिलाफ ईडी की बड़ी जांच चल रही है. वह भी विधायक और दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री रह चुके हैं. गोरखपुर लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी से वर्ष 2009 में चुनाव भी लड़ चुके हैं, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

6 बार सांसद रहे राम नगीना मिश्र के बेटे नहीं जीत पाए चुनावः 80 के दशक से लेकर मौजूदा समय के कद्दावर नेताओं की बात करें तो कांग्रेस से राजनीति की शुरुआत करने वाले पंडित राम नगीना मिश्र दो बार सलेमपुर संसदीय सीट से सांसद रहे. लेकिन वर्ष 1988 में लोकसभा में राम मंदिर का मुद्दा उठाने के कारण वह भाजपा के करीबी हो गए. इसके बाद पडरौना लोकसभा सीट से लगातार चार बार उन्होंने प्रतिनिधित्व किया. पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी से रिश्ते में समाधि होने के बावजूद राम नगीना मिश्रा अपने बेटे डॉक्टर परशुराम मिश्र को दो बार विधानसभा चुनाव में उतारे लेकिन जनता का समर्थन उन्हें प्राप्त नहीं हुआ.

बालेश्वर यादव भी बेटे को राजनीति में नहीं कर पाए स्थापितः इसी प्रकार दो बार विधायक और दो बार पडरौना से सांसद रहने वाले मिनी मुख्यमंत्री के नाम से विख्यात बालेश्वर यादव भी अपने बेटे को राजनीतिक सफलता दिलाने में अब तक असफल हैं. बेटे विजेंद्र पाल यादव को दो बार विधानसभा चुनाव लड़ाया लेकिन सफलता नहीं मिली. बड़े समाजवादी नेता के रूप में देवरिया के बरहज से ताल्लुक रखने वाले इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष और महामंत्री रहे समाजवादी मेनिफेस्टो के रचयिता पूर्व सांसद मोहन सिंह देश के सर्वश्रेष्ठ सांसद का गौरव हासिल कर चुके थे. लेकिन उनका भी कोई उत्तराधिकारी उनके निधन के बाद राजनीति में सफल नहीं हो पाया है. उनकी बेटि कनक लता सिंह को मुलायम सिंह ने राज्य सभा एक बार भेजा था, लेकिन फिर वह सफल नहीं हुईं.

अमनमणि त्रिपाठी पर किसी ने नहीं लगाया दांवः बाहुबल और राजनीतिक कौशल का एक अलग स्वरूप पैदा करने वाले पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी जेल की सजा काटने के साथ अपने बेटे अमनमणि त्रिपाठी को राजनीतिक कद दिलाने की भरपूर कोशिश किए. लेकिन तीन बार चुनाव लड़ने में उनका बेटा सिर्फ एक बार चुनाव जीतने में सफल हो पाया. लोकसभा के चुनावी दौर में कई राजनीतिक दलों में ताक- झांक करने के बाद भी किसी भी पार्टी ने अमन मणि पर दांव नहीं लगाया. जिससे इस परिवार का भी राजनीतिक भविष्य संघर्ष में ही नजर आ रहा है. देवरिया और गोरखपुर में राजनीतिक विरासत अगर देखा जाए तो सलेमपुर के मौजूदा सांसद रविंद्र कुशवाहा तीसरी बार चुनावी मैदान में लगातार बने हुए हैं. रविंद्र कुशवाहा के पिता हरि केवल प्रसाद चार बार सांसद रहे हैं.

इन नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगीः जिन राजनीतिक विरासत वाले नेताओं की प्रतिष्ठा इस बार दांव पर लगी है, उनमें कमलेश पासवान, भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी, रविंद्र कुशवाहा, शशांक मणि त्रिपाठी जैसे बड़े नाम शामिल हैं. कांग्रेस के कद्यावर नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे जगदंबिका पाल, मौजूदा समय में भाजपा खेमे में है और चौथी बार सांसद बनने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं. लेकिन वह अपने बेटे को अभी तक राजनीतिक वजूद नहीं दिल पाये हैं.

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