देहरादून: केदारनाथ उपचुनाव, निकाय चुनाव और 2027 विधानसभा चुनाव का भविष्य तय करेगा. कांग्रेस के लिए ये उपचुनाव जीतना 2027 के लिए संजीवनी होगा, तो बीजेपी के लिए जीत मंगलौर और बदरीनाथ की हार की भरपाई होगी. आइए जानते हैं कैसे केदारनाथ उपचुनाव भी मोदी फैक्टर पर होगा.
केदारनाथ उपचुनाव 2024: उत्तराखंड में 20 नवंबर को होने जा रहे केदारनाथ उपचुनाव को लेकर दोनों ही दल मैदान में अपनी जमीन बनाने लगे हैं. जनता को लुभाने और चुनावी रण में फतह पाने के लिए दोनों ही दल हर संभव प्रयास में लगे हुए हैं. यह चुनाव जहां कांग्रेस के लिए आने वाले निकाय चुनाव और 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव का भविष्य तय करेगा, तो वहीं बीजेपी हरियाणा और लोकसभा चुनाव में हुई जीत के रथ को आगे बढ़ाने और उपचुनाव में मंगलौर और बदरीनाथ में हुई हार का गम दूर करना चाहेगी.
पांच मंत्री बता रहे हैं पीएम की केदारनाथ के प्रति आस्था: चुनाव की तारीख का ऐलान होने से पहले ही भाजपा ने अपने पांच मंत्रियों को केदारनाथ क्षेत्र की जिम्मेदारी सौंपी हुई है. यह मंत्री अलग-अलग गांवों में जाकर बीजेपी के पक्ष में वोट करने की अपील कर रहे हैं. जिन मंत्रियों की ड्यूटी क्षेत्र में लगाई गई है, उनमें सौरभ बहुगुणा और सतपाल महाराज के साथ-साथ रेखा आर्या और सुबोध उनियाल जैसे अनुभवी मंत्री शामिल हैं. वहीं गणेश जोशी को भी चुनाव में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी है है. भाजपा आने वाले दिनों में जनता के बीच जिन कामों को लेकर जाने वाली है, उनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा किए गए केदारनाथ में पुनर्निर्माण के काम तो होंगे ही, बार-बार केदार धाम में आकर पीएम की आस्था को जनता तक पहुंचाएगी.
पीएम मोदी का ये बयान बटोरेगा वोट! मुख्यमंत्री से लेकर संगठन के तमाम बड़े नेता इन उपचुनाव में हर बातचीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केदारनाथ में दिए उस बयान को बता रहे हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केदारनाथ धाम के आगे खड़े होकर यह कहा था कि आने वाला दशक उत्तराखंड का दशक होगा. मतलब साफ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के केदारनाथ धाम में आने की हर उस तारीख, बयान और उनके काम को बीजेपी वोट बैंक में तब्दील करना चाहती है.
मोदी फैक्टर के भरोसे है बीजेपी: बीजेपी के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनवीर चौहान कहते हैं केदारनाथ में होने वाले उपचुनाव में बीजेपी की स्थिति इसलिए मजबूत है, क्योंकि केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र के वोटर यह जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा किया गया इस पूरे क्षेत्र में काम और उनकी इस धाम में आस्था कितनी है. यही नहीं राज्य सरकार के द्वारा इस पूरे क्षेत्र में की गई घोषणाएं और मंदिर तक जाने वाली यात्रा को सुगम बनाने का काम भी बीजेपी की सरकार ने ही किया है. ऐसे में केदारनाथ में होने वाले उपचुनाव पर केवल उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश की निगाहें हैं और बीजेपी को उम्मीद है कि वो इस पर खरा उतरेगी.
सीएम धामी भी रख रहे हैं ध्यान: वैसे केदारनाथ विधानसभा सीट का इतिहास बीजेपी के लिए अब तक बेहतर रहा है. अब तक हुए चुनावों में बीजेपी ने सबसे अधिक बार यहां जीत की बाजी मारी है. हालांकि बीते दिनों उत्तराखंड की दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों को देखते हुए बीजेपी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. इसलिए इस चुनाव में वो कोई कमी नहीं रखना चाहती है. इसका जीता जागता उदाहरण है मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के द्वारा केदारनाथ क्षेत्र में योजनाओं की झड़ी लगाना. पहाड़ में होने वाले चुनाव में भाजपा संगठन ने भी एड़ी-चोटी तक का जोर लगा रखा है. वहीं कांग्रेस की तैयारी भी आसमान पर दिखाई दे रही है. यह बात अलग है कि कांग्रेस में गुटबाजी पार्टी को नुकसान न पहुंचा दे.
कांग्रेस का पलटवार: बीजेपी के द्वारा किए जा रहे विकास के दावों पर कांग्रेस पार्टी कहती है कि अगर केदारनाथ और उसके आसपास के इलाकों में अगर बीजेपी ने विकास किया होता तो पांच-पांच मंत्री चुनावी मैदान में न उतारने पड़ते. प्रदेश महामंत्री राजेंद्र शाह बीजेपी के बयान और उनके द्वारा जनता में परोसे गए काम को लेकर कहते हैं कि अगर बीजेपी ने 2017 के बाद 2024 तक केदारनाथ में काम किया है, तो यह अच्छी बात है. लेकिन हकीकत यही है कि बीजेपी इन चुनावों में बेहद घबराई हुई है. जनता को बताने के लिए कोई काम नहीं है और केदारनाथ की जनता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या उनके भाषण या फिर झूठ के किसी भी वादे पर भरोसा नहीं करेगी. क्योंकि बीते दिनों जब केदारनाथ में आपदा आई, तो तीन दिन तक स्थानीय लोगों और यात्रियों की सुध किसी ने नहीं ली. इतना ही नहीं केदारनाथ में जिन लोगों की मृत्यु हुई, उनके शव भी कई लोगों के परिजनों को आज तक नहीं मिल पाए हैं.
विपक्ष के पास मुद्दे: इन चुनावों में कांग्रेस जिन मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रही है, उनमें प्रमुख मुद्दा आपदा के दौरान सरकार के द्वारा क्या कुछ नहीं किया गया है, उसको बताएगी. वहीं केदारनाथ धाम के दिल्ली में एक और मंदिर बनाए जाने और उस पर सरकार के बैक फुट पर आने की चर्चा भी वह जनता के बीच करेगी. महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और मंदिर से जुड़े तमाम मामलों को लेकर कांग्रेस अपनी रणनीति बना रही है.
दोनों दलों में से इनको मिल सकता है टिकट: चुनावी तैयारी के बीच दोनों ही दलों ने अपने पैनल के नाम दिल्ली भेज दिए हैं. दोनों ही पार्टियों यह चाहती हैं कि जिताऊ नेता को ही उम्मीदवार बनाया जाए. कांग्रेस ने चार पर्यवेक्षकों की नियुक्ति केदारनाथ उपचुनाव में की है, जिसमें गणेश गोदियाल को वरिष्ठ पर्यवेक्षक के तौर पर जगह दी गई है. बदरीनाथ के विधायक लखपत सिंह बुटोला को भी पर्यवेक्षकों में शामिल किया गया है. भुवन कापड़ी और विधायक वीरेंद्र जाती को भी पर्यवेक्षक बनाया गया है.
कांग्रेस की हिट लिस्ट! कांग्रेस की तरफ से जिन प्रबल नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं, उनमें पूर्व विधायक मनोज रावत का नाम तो है ही साथ ही साथ कांग्रेस के जिला अध्यक्ष कुंवर सिंह सजवाण और पूर्व कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत शामिल हैं. हरक सिंह रावत इन सभी नाम में सबसे बड़ा नाम है, लेकिन पार्टी उनके नाम पर मोहर लगाएगी या नहीं यह चंद दिनों में तय होगा.
क्या बीजेपी खेलेगी इमोशनल कार्ड? कांग्रेस की तरह ही भाजपा ने भी छह नेताओं के नाम पैनल में भेजे हैं. इनमें पूर्व विधायक आशा नौटियाल, चंडी प्रसाद भट्ट, कुलदीप आजाद, कुलदीप रावत और अजय कोठियाल के नाम शामिल हैं. लेकिन भावनात्मक नाम की अगर बात की जाए तो पूर्व विधायक स्वर्गीय शैला रानी रावत की बेटी ऐश्वर्या रावत को भी बीजेपी इस चुनावी मैदान में उतर सकती है.
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