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पितृ पक्ष 2024; सुबह उठने से लेकर सोने तक इन नियमों का पालन है जरूरी, भ्रांतियों से रहें दूर - pitru paksha 2024

इन दिनों पितृपक्ष चल रहे हैं. 15 दिनों तक पितरों के घर में आगमन से लेकर उनकी विदाई तक यह जानना बेहद जरूरी है कि पितृपक्ष में सुबह सोकर उठने के साथ ही रात को सोने तक किन नियमों का पालन करना चाहिए. आअए जानते हैं.

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पितृ पक्ष में इन बातों का रखें ध्यान (photo credit- Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 20, 2024, 10:45 AM IST

प्रोफेसर विनय कुमार पांडेय ने दी जानकारी (video credit- etv bharat)

वाराणसी: पितृ पक्ष के 15 दिन का पखवाड़ा शुरू हो चुका है. पितरों को खुश करने के लिए तरह-तरह के जतन किए जाते हैं. 15 दिनों तक पितरों के घर में आगमन से लेकर उनकी विदाई तक के लिए लोग हर रोज अनुष्ठान, श्राद्ध और तर्पण करते हैं. लेकिन, यह जानना बेहद जरूरी है कि पितृपक्ष में सुबह सोकर उठने के साथ ही रात को सोने तक किन नियमों का पालन करना चाहिए. इन 15 दिन तक रूटीन कैसी होनी चाहिए. इस पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के पूर्व विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर विजय कुमार पांडेय ने ईटीवी भारत को विस्तार से जानकारी दी.उन्होंने न सिर्फ पितृ पक्ष में की जाने वाली गतिविधियों और कर्म के बारे में बताया, बल्कि इससे जुड़ी उन तमाम भ्रांतियां को भी दूर किया. जिसे लेकर लोगों में भारी कन्फ्यूजन रहता है.

विनय कुमार पांडेय का कहना है कि भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर अश्विनी महीने की अमावस्या तक कुल 16 दिन का पितृपक्ष होता है. उन्होंने बताया कि जब संक्रांति के हिसाब से दोनों का बंटवारा हो रहा है तो निर्धारित दिनों के वितरण के बाद 16 दिन अतिरिक्त बचे थे. उस वक्त देवताओं ने इस 16 दिन को पितृ पक्ष के नाम से रखते हुए इसे पितरों का महायज्ञ बताया था. यह महायज्ञ उन सभी यज्ञों में श्रेष्ठ होता है जो इंसान अपने जीवन में अनुष्ठान के रूप में करता है. यदि पितृपक्ष में 16 दिनों तक अपने पितरों की सेवा कर दी जाए. उन्हें पिंड, जल, तर्पण, तिल, जौं, इत्यादि दिया जाए नियमित रूप से तो इस अनुष्ठान और इस यज्ञ से बड़ा कोई भी पूजा पाठ हो ही नहीं सकता.

सुबह क्या करें : प्रोफेसर विनय कुमार पांडेय का कहना है कि इस 16 दिन के वक्त में सबसे पहले रोज सुबह उठकर अपने नियमित कार्यों से निमित्त होने के बाद यदि कोई कुंड, सरोवर या गंगा नदी है तो वहां पहुंचना चाहिए. यदि वहां नहीं जा पा रहे हैं तो घर में ही एक बिना सिला हुआ वस्त्र पहनकर कंधे पर एक अन्य गमछा में दुपट्टा रखकर पितरों के निमित्त तर्पण करना आवश्यक होता है. यह प्रक्रिया नियमित रूप से की जानी चाहिए. तर्पण करने के लिए जल, काला तिल, जौं और कुशा होनी आवश्यक है. कुशा को अपनी मध्यमा उंगली में एक अंगूठी के समान पहनकर तांबे के पत्र से पितरों को जल अर्पित करने की परंपरा है.

इसे भी पढ़े-पितृपक्ष 2024: तृतीया पर ऐसे करें श्राद्ध, मिलेगा सुख-समृद्धि के साथ वंश वृद्धि का आशीर्वाद - Pitra Paksha 2024

15 दिनों तक करे सादा भोजन : कुशा सनातन धर्म में सबसे शुद्ध मानी जाती है. इसलिए इसके धारण करने से जो भी दोष होते हैं, वह दूर हो जाते हैं. इसके बाद नियमित रूप से जो भी व्यक्ति अपने पितरों को जल अर्पित करता है. उसे बहुत ही नियमों का पालन करना होता है. पूरा दिन प्याज लहसुन, मांस मदिरा से दूरी बनाने के साथ ही इन 15 दिनों तक सादा भोजन, बिना तला हुआ या मिर्च मसाले का नहीं करना चाहिए. उन्होंने बताया, कि तर्पण करते वक्त अपना यज्ञोपवीत असभ्य करना चाहिए. मतलब जिस तरह आप जनेऊ धारण करते हैं उसे उल्टा जनेऊ होता है.

इन बातों का रखें ध्यान: पंडित विनय कुमार पांडेय का कहना है, कि सुबह स्नान आदि करने के बाद पूरा दिन पितरों के निमित्त ध्यान करना चाहिए. शाम होते-होते तक पितरों को प्रसन्न करने के लिए 15 दिनों तक एक दीपक दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके जलाना चाहिए. अंतिम दिन यानी पितृपक्ष के समापन वाले दिन चौमुखा दीपक अपने घर के द्वार पर जलते हुए पितरों को हाथ जोड़कर यह कहते हुए विदा करना चाहिए, कि आपकी हमने सेवा की है. यदि हमसे कोई भूल हुई हो तो हमें क्षमा करें और अपने लोक को वापस जाएं. हमें आशीर्वाद दें. हमारे घर में सुख संपन्निता और वंश वृद्धि होती रहे. इसी के साथ पितरों की विदाई करें.


पंडित विनय कुमार पांडेय का कहना है कि पितृपक्ष को लेकर नियम कानून बहुत होते हैं, लेकिन इसे लेकर भ्रंतिया भी बहुत है. सबसे बड़ी भ्रांति तो यह है कि गया में यदि श्राद्ध कर लिया तो इसे अंतिम श्राद्घ माना जाता है. बहुत से लोग अपनी परंपरा और अपने क्षेत्र में फैली भ्रांतियों के जरिए श्राद्ध कर्म करना ही बंद कर देते हैं. लेकिन, गया में श्राद्ध करने के बाद भी तर्पण और श्राद्ध करना अनिवार्य होता है.

उन्होंने बताया कि निर्णय सिंधु यह बात स्पष्ट करता है कि यदि गया में श्राद्ध किया गया है तो इसका मतलब यह नहीं की वार्षिक श्राद्ध या महालय यानी पितृ पक्ष का श्राद्ध नहीं किया जाएगा. यह 16 दिन पितरों के नाम ही होता है. गया में श्राद्ध करने के बाद भी 16 दिनों तक पितरों को जल, तिल अर्पित करने के साथ ही उनकी तिथि पर ब्राह्मण भोजन और पिंडदान करना अनिवार्य होता है. ऐसा करने से पितृ खुश होकर भूखे प्यासे नहीं लौटते, यदि पीतर भूखे प्यासे जाएंगे और श्राद्ध कर्म नहीं किया जाएगा तो यह खून का सेवन करते हैं. घर के व्यक्तियों को परेशान करेंगे और वंश वृद्धि के साथ ही सुख संपन्नता की भी हानि होगी.

16 दिन क्यों है शुभ : प्रोफेसर विनय पांडेय के मुताबिक एक भ्रांति और है कि यदि किसी के घर में विवाह, मुंडन, यज्ञोपवीत या गृह प्रवेश इत्यादि हुआ है तो वह 16 दिनों तक श्राद्ध कर्मों तर्पण नहीं करेगा, क्योंकि कोई शुभ काम हुआ है. उनका कहना है यह बिल्कुल गलत बात है. लोग इस 15 दिन के वक्त को अशुभ मानते हैं, जबकि अशुभ नहीं शुभ है. पितरों का आगमन घर में होना हमेशा से शुभ माना जाता है. शादी विवाह या कोई भी नए काम की शुरुआत के पहले नान्दी मुख श्राद्ध करके पितरों का आवाहन किया जाता है. इसलिए यह 16 दिन का समय अति शुभ माना गया है और इस शुभ समय में कोई भी काम किया जा सकता है. उनका कहना है कि लोग शादी विवाह या अन्य होने की वजह से श्राद्ध कर्म व तर्पण नहीं करते जो गलत है. यह होना चाहिए और अनिवार्य है, इतना ही नहीं यदि कोई बालक इस दौरान होता है तो उसकी छठी, अन्नप्राशन या अन्य जो भी संस्कार है वह पूरे होने चाहिए क्योंकि यह वक्त शुभ वक्त है.

यह भी पढ़े-जीवन में कामनाओं को पूरा करने के लिए किए जाते हैं विभिन्न प्रकार के श्राद्ध, जानिए कैसे - Pitra Paksha 2024

प्रोफेसर विनय कुमार पांडेय ने दी जानकारी (video credit- etv bharat)

वाराणसी: पितृ पक्ष के 15 दिन का पखवाड़ा शुरू हो चुका है. पितरों को खुश करने के लिए तरह-तरह के जतन किए जाते हैं. 15 दिनों तक पितरों के घर में आगमन से लेकर उनकी विदाई तक के लिए लोग हर रोज अनुष्ठान, श्राद्ध और तर्पण करते हैं. लेकिन, यह जानना बेहद जरूरी है कि पितृपक्ष में सुबह सोकर उठने के साथ ही रात को सोने तक किन नियमों का पालन करना चाहिए. इन 15 दिन तक रूटीन कैसी होनी चाहिए. इस पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय ज्योतिष विभाग के पूर्व विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर विजय कुमार पांडेय ने ईटीवी भारत को विस्तार से जानकारी दी.उन्होंने न सिर्फ पितृ पक्ष में की जाने वाली गतिविधियों और कर्म के बारे में बताया, बल्कि इससे जुड़ी उन तमाम भ्रांतियां को भी दूर किया. जिसे लेकर लोगों में भारी कन्फ्यूजन रहता है.

विनय कुमार पांडेय का कहना है कि भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर अश्विनी महीने की अमावस्या तक कुल 16 दिन का पितृपक्ष होता है. उन्होंने बताया कि जब संक्रांति के हिसाब से दोनों का बंटवारा हो रहा है तो निर्धारित दिनों के वितरण के बाद 16 दिन अतिरिक्त बचे थे. उस वक्त देवताओं ने इस 16 दिन को पितृ पक्ष के नाम से रखते हुए इसे पितरों का महायज्ञ बताया था. यह महायज्ञ उन सभी यज्ञों में श्रेष्ठ होता है जो इंसान अपने जीवन में अनुष्ठान के रूप में करता है. यदि पितृपक्ष में 16 दिनों तक अपने पितरों की सेवा कर दी जाए. उन्हें पिंड, जल, तर्पण, तिल, जौं, इत्यादि दिया जाए नियमित रूप से तो इस अनुष्ठान और इस यज्ञ से बड़ा कोई भी पूजा पाठ हो ही नहीं सकता.

सुबह क्या करें : प्रोफेसर विनय कुमार पांडेय का कहना है कि इस 16 दिन के वक्त में सबसे पहले रोज सुबह उठकर अपने नियमित कार्यों से निमित्त होने के बाद यदि कोई कुंड, सरोवर या गंगा नदी है तो वहां पहुंचना चाहिए. यदि वहां नहीं जा पा रहे हैं तो घर में ही एक बिना सिला हुआ वस्त्र पहनकर कंधे पर एक अन्य गमछा में दुपट्टा रखकर पितरों के निमित्त तर्पण करना आवश्यक होता है. यह प्रक्रिया नियमित रूप से की जानी चाहिए. तर्पण करने के लिए जल, काला तिल, जौं और कुशा होनी आवश्यक है. कुशा को अपनी मध्यमा उंगली में एक अंगूठी के समान पहनकर तांबे के पत्र से पितरों को जल अर्पित करने की परंपरा है.

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15 दिनों तक करे सादा भोजन : कुशा सनातन धर्म में सबसे शुद्ध मानी जाती है. इसलिए इसके धारण करने से जो भी दोष होते हैं, वह दूर हो जाते हैं. इसके बाद नियमित रूप से जो भी व्यक्ति अपने पितरों को जल अर्पित करता है. उसे बहुत ही नियमों का पालन करना होता है. पूरा दिन प्याज लहसुन, मांस मदिरा से दूरी बनाने के साथ ही इन 15 दिनों तक सादा भोजन, बिना तला हुआ या मिर्च मसाले का नहीं करना चाहिए. उन्होंने बताया, कि तर्पण करते वक्त अपना यज्ञोपवीत असभ्य करना चाहिए. मतलब जिस तरह आप जनेऊ धारण करते हैं उसे उल्टा जनेऊ होता है.

इन बातों का रखें ध्यान: पंडित विनय कुमार पांडेय का कहना है, कि सुबह स्नान आदि करने के बाद पूरा दिन पितरों के निमित्त ध्यान करना चाहिए. शाम होते-होते तक पितरों को प्रसन्न करने के लिए 15 दिनों तक एक दीपक दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके जलाना चाहिए. अंतिम दिन यानी पितृपक्ष के समापन वाले दिन चौमुखा दीपक अपने घर के द्वार पर जलते हुए पितरों को हाथ जोड़कर यह कहते हुए विदा करना चाहिए, कि आपकी हमने सेवा की है. यदि हमसे कोई भूल हुई हो तो हमें क्षमा करें और अपने लोक को वापस जाएं. हमें आशीर्वाद दें. हमारे घर में सुख संपन्निता और वंश वृद्धि होती रहे. इसी के साथ पितरों की विदाई करें.


पंडित विनय कुमार पांडेय का कहना है कि पितृपक्ष को लेकर नियम कानून बहुत होते हैं, लेकिन इसे लेकर भ्रंतिया भी बहुत है. सबसे बड़ी भ्रांति तो यह है कि गया में यदि श्राद्ध कर लिया तो इसे अंतिम श्राद्घ माना जाता है. बहुत से लोग अपनी परंपरा और अपने क्षेत्र में फैली भ्रांतियों के जरिए श्राद्ध कर्म करना ही बंद कर देते हैं. लेकिन, गया में श्राद्ध करने के बाद भी तर्पण और श्राद्ध करना अनिवार्य होता है.

उन्होंने बताया कि निर्णय सिंधु यह बात स्पष्ट करता है कि यदि गया में श्राद्ध किया गया है तो इसका मतलब यह नहीं की वार्षिक श्राद्ध या महालय यानी पितृ पक्ष का श्राद्ध नहीं किया जाएगा. यह 16 दिन पितरों के नाम ही होता है. गया में श्राद्ध करने के बाद भी 16 दिनों तक पितरों को जल, तिल अर्पित करने के साथ ही उनकी तिथि पर ब्राह्मण भोजन और पिंडदान करना अनिवार्य होता है. ऐसा करने से पितृ खुश होकर भूखे प्यासे नहीं लौटते, यदि पीतर भूखे प्यासे जाएंगे और श्राद्ध कर्म नहीं किया जाएगा तो यह खून का सेवन करते हैं. घर के व्यक्तियों को परेशान करेंगे और वंश वृद्धि के साथ ही सुख संपन्नता की भी हानि होगी.

16 दिन क्यों है शुभ : प्रोफेसर विनय पांडेय के मुताबिक एक भ्रांति और है कि यदि किसी के घर में विवाह, मुंडन, यज्ञोपवीत या गृह प्रवेश इत्यादि हुआ है तो वह 16 दिनों तक श्राद्ध कर्मों तर्पण नहीं करेगा, क्योंकि कोई शुभ काम हुआ है. उनका कहना है यह बिल्कुल गलत बात है. लोग इस 15 दिन के वक्त को अशुभ मानते हैं, जबकि अशुभ नहीं शुभ है. पितरों का आगमन घर में होना हमेशा से शुभ माना जाता है. शादी विवाह या कोई भी नए काम की शुरुआत के पहले नान्दी मुख श्राद्ध करके पितरों का आवाहन किया जाता है. इसलिए यह 16 दिन का समय अति शुभ माना गया है और इस शुभ समय में कोई भी काम किया जा सकता है. उनका कहना है कि लोग शादी विवाह या अन्य होने की वजह से श्राद्ध कर्म व तर्पण नहीं करते जो गलत है. यह होना चाहिए और अनिवार्य है, इतना ही नहीं यदि कोई बालक इस दौरान होता है तो उसकी छठी, अन्नप्राशन या अन्य जो भी संस्कार है वह पूरे होने चाहिए क्योंकि यह वक्त शुभ वक्त है.

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