सीतापुर : पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने का समय आ गया है. सनातनी परंपरा के अनुसार अपने पितरों का श्राद्ध कर्म करके उनके मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने का मान्यता है. साथ ही पितरों का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने परिवार में सुख शांति और समृद्धि भी प्राप्त करने का विधान बताया गया है.
महामृत्युंजय सिद्ध पीठ के आचार्य रमेश चंद्र शास्त्री से बताया कि 17 सितंबर (मंगलवार) को अनंत चतुर्दशी व विश्वकर्मा जयंती मनाई जाएगी. इसके बाद 18 सितंबर बुधवार को महालय श्राद्ध पित्रपक्ष आरंभ होगा. 18 सितंबर को ही पूर्णिमा व प्रतिपदा की श्राद्ध तिथि की जाएगी. सनातन परंपरा के अनुसार जो सदस्य गया आदि श्राद्ध कर आए हों, उन्हें भी श्राद्ध पक्ष में पितरों के तर्पण व दान की क्रिया अवश्य करनी चाहिए.
हिंदू शास्त्रों के मुताबिक सुबह और संध्याकाल में सिर्फ देवी-देवताओं की पूजा करने का विधान है. दोपहर का समय पितरों के लिए निश्चित किया गया है. दोपहर में 12 बजे से 1 बजे के करीब श्राद्ध करें और पिंडदान करें. जब श्राद्ध संपन्न हो जाए तो सबसे पहले कौवे, कुत्ते, गाय, चींटी, देवता के लिए भोग निकालना चाहिए.
पितृ पक्ष 2024 श्राद्ध की 15 तिथियां
-18 सितंबर उदय व्यापिनी पूर्णिमा श्राद्ध व प्रतिपदा श्राद्ध.
-19 सितंबर द्वितीया श्राद्ध
-20 सितंबर तृतीया श्राद्ध
-21 सितंबर चतुर्थी श्राद्ध
-22 सितंबर पंचमी श्राद्ध
-23 सितंबर षष्ठी श्राद्ध
-24 सितंबर सप्तमी श्राद्ध
-25 सितंबर अष्टमी श्राद्ध
(जिउतिया, जीवत्पुत्रिका व्रत)
-26 सितंबर नवमी श्राद्ध
( मातृ नवमी )
(जीवत्पुत्रिका व्रत पारण प्रातः)
-27 सितंबर दशमी श्राद्ध
-28 सितंबर एकादशी श्राद्ध
-29 सितंबर द्वादशी श्राद्ध
-30 सितंबर त्रयोदशी श्राद्ध
-1 अक्टूबर चतुर्दशी श्राद्ध (अकाल मृत्यु श्राद्ध )
-2 अक्टूबर सर्व पित्री अमावस्या श्राद्ध ( पितृ विसर्जन)
आचार्य रमेश चंद्र शास्त्री ने उपरोक्त तिथियों पर ही पितरों की शांति हेतु पिंडदान, श्राद्ध व तर्पण की क्रिया का विधान बताया है.
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