शिमला: शिक्षा विभाग में फिजिकल एजुकेशन टीचर्स को बैच वाइज भर्ती में न्यूनतम योग्यता में छूट देने का मामला अब हाईकोर्ट की डबल बैंच के समक्ष सुनवाई के लिए लगा है. इस मामले में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने राज्य सरकार को छूट देने को लेकर विचार के लिए कहा है.
एकल पीठ के फैसले पर राज्य सरकार ने डबल बैंच में अपील की है. इस पर हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरलोक सिंह चौहान व न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने छूट देने से जुड़े सभी मामलों की सुनवाई 23 दिसंबर को निर्धारित की है. उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट की एकल पीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिए थे कि वह शारीरिक शिक्षा अध्यापक के पद पर बैच वाइज नियुक्ति के लिए भर्ती और पदोन्नति नियमों (आरएंडपी रूल्स) में छूट पर विचार करें.
एकल पीठ ने इसके लिए राज्य सरकार को चार सप्ताह का समय दिया था. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति संदीप शर्मा की एकल पीठ ने कहा था कि शारीरिक शिक्षा अध्यापकों के इस समय करीब 870 पद खाली चल रहे हैं. ऐसे में याचिकाकर्ताओं के मामलों पर बैच वाइज पीईटी के पदों पर नियुक्ति के लिए आसानी से विचार किया जा सकता है.
उल्लेखनीय है कि पीईटी के लिए 15 फरवरी, 2011 को जारी अधिसूचना के अनुसार न्यूनतम योग्यता में उन उम्मीदवारों को एक बार छूट दी गई थी, जिनके पास नए भर्ती और पदोन्नति नियमों के अनुसार अपेक्षित योग्यता नहीं थी. अदालत ने यह आदेश पीटीई पद के लिए उम्मीदवारों की याचिकाओं के एक समूह पर पारित किया था. आदेश में कहा गया था कि 15 फरवरी 2011 को जारी अधिसूचना के बाद से राज्य के अधिकारियों ने खुद ऐसे उम्मीदवारों को छूट देने का फैसला लिया है, जिन्होंने एक साल का डिप्लोमा किया हुआ था.
पीईटी के पद के खिलाफ नियुक्ति इस शर्त के अधीन है कि उन्हें अपनी शैक्षणिक योग्यता में पांच साल की अवधि में सुधार करना होगा. उनके मामलों पर अन्य पात्र उम्मीदवारों के बीच पीईटी की नियुक्ति के लिए विचार किया जाना चाहिए था, लेकिन सरकार ने उनकी पात्रता को इस आधार पर खारिज कर दिया है कि उनके पास नए आरएंडपी नियम, 2011 के तहत निर्धारित आवश्यक योग्यता नहीं है.
वर्ष 2011 के नियमों के अनुसार शारीरिक शिक्षा अध्यापक के पद के लिए आवश्यक योग्यता 50 प्रतिशत अंकों के साथ दस जमा दो और फिर दो साल का डिप्लोमा के रूप में तय की गई थी. अदालत ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि सभी याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 1996-99 में शारीरिक शिक्षा में एक वर्ष का डिप्लोमा करने के बाद रोजगार कार्यालयों में अपना नाम पंजीकृत कराया.
इसमें राज्य सरकार ने स्वयं योग्यता में छूट देने का एक सचेत निर्णय लिया और इस संबंध में अधिसूचना जारी की, लेकिन अब याचिकाकर्ताओं को अधिसूचना का लाभ ना देना सही नहीं है. यह ना केवल उनके साथ भेदभाव है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत निहित समानता के अधिकार का भी उल्लंघन है. यही नहीं, संविधान के अनुच्छेद-16 के तहत नियुक्ति और पदोन्नति के मामले में यह समानता के सिद्धांत के खिलाफ भी है. राज्य सरकार ने एकल पीठ के इसी फैसले को खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी है, जिस पर सुनवाई 23 दिसंबर को होगी.