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राजस्थान में फिर गरमाया फोन टैपिंग मामला, पूर्व नेता प्रतिपक्ष ने उच्च स्तरीय जांच के लिए सीएम को लिखा पत्र - Phone tapping case

Rajasthan Phone Tapping Case, वरिष्ठ भाजपा नेता व पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने शुक्रवार को राज्य के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पत्र लिखा. राठौड़ ने पत्र लिखकर 2020 में कांग्रेस सरकार के समय हुए फोन टैपिंग प्रकरण में तत्कालीन उच्च पदस्थ प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की.

Rajasthan Phone Tapping Case
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Apr 26, 2024, 4:40 PM IST

जयपुर. राजस्थान में पूर्ववर्ती गहलोत सरकार के समय हुए फोन टैपिंग का मामला एक बार फिर से गरमा रहा है. दो दिन पहले पूर्व सीएम अशोक गहलोत के ओएसडी रहे लोकेश शर्मा के आरोपों के बाद फोन टैपिंग प्रकरण पर सियासी पारा एकदम से चढ़ गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सहित अन्य भाजपा नेताओं के बयानों के बाद अब पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने इस मामले में दो कदम आगे बढ़कर उच्च स्तरी जांच की मांग उठाई है. राठौड़ ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पत्र लिखकर साल 2020 में कांग्रेस सरकार के समय हुए फोन टैपिंग प्रकरण में तत्कालीन उच्च पदस्थ प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उच्च स्तरीय जांच करवाकर सख्त कार्रवाई किए जाने की मांग की है.

आरोप अत्यंत गंभीर : राजेंद्र राठौड़ ने पत्र में लिखा कि साल 2020 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत के पूर्व ओएसडी लोकेश शर्मा की ओर से दो दिन पहले फोन टैपिंग से जुड़े प्रकरण को लेकर गंभीर आरोप लगाए गए हैं. इससे स्पष्ट तौर पर प्रमाणित हो रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उच्च पदस्थ अधिकारियों के साथ मिलकर संविधान प्रदत्त अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया और कानून और नियमों की धज्जियां उड़ाई. वहीं, सरकारी एजेंसियों पर बेजा दबाव बनाकर अवैधानिक ढंग से जनप्रतिनिधियों के फोन टैप करवाए गए.

इसे भी पढ़ें - गहलोत के OSD के आरोपों पर गरमाई सियासत, बीजेपी ने कहा गहलोत की षड्यंत्रों वाली थी सरकार - BJP Targeted Gehlot

उन्होंने कहा कि पूर्व ओएसडी ने कांग्रेस सरकार में पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट सहित उनके करीब 19 सहयोगी विधायकों के फोन टैप करवाए जाने का प्रमाण देने की बात कही है. ऐसे में ये प्रकरण अत्यंत गंभीर है. राठौड़ ने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि मुख्यमंत्री जैसे जिम्मेदार और संवैधानिक पद पर रहते हुए अशोक गहलोत की ओर से न केवल गैर कानूनी तरीके से फोन टैप करवाए गए, बल्कि पुलिस प्रशासन की पूरी मशीनरी का भी दुरुपयोग किया गया. अवैध फोन टैप के इस षड्यंत्र में उच्च पदस्थ प्रशासनिक अधिकारी व पुलिस अधिकारी शामिल थे, जो आज भी बड़े पदों पर पदस्थापित हैं. ऐसे में इस संबंध में उच्च स्तरीय कमेटी द्वारा निष्पक्ष जांच करवाकर उनके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए.

Rajasthan Phone Tapping Case
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निजता के अधिकारों का खुला हनन : राठौड़ ने कहा कि इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 की धारा 5 (2) व नियमों को देखे तो उसके अनुसार देश की अखंडता, सम्प्रभुता या जन सुरक्षा, गंभीर अपराध कारित किए जाने की संभावनाओं में या पड़ोसी देश के मित्रवत रिश्तों में संभावित रूकावट इत्यादि को देखते हुए केंद्र सरकार या राज्य सरकार लिखित में कारणों का उल्लेख करते हुए प्राधिकृत अधिकारी किसी भी संदेश या टेलीफोन को इंटरसेप्ट करता है. यानी विधिक कानूनी प्रक्रिया अपनाकर और सक्षम स्तर से अनुमति के उपरांत ही टेलीफोन रिकॉर्डिंग की जा सकती है, लेकिन पिछली कांग्रेस सरकार के समय जो फोन टैपिंग की प्रक्रिया अपनाई गई, उसमें कहीं भी यह नहीं लगता कि देश की अखंडता, सम्प्रभुता या जन सुरक्षा का गंभीर अपराध कारित किए जाने की संभावना रही.

इसे भी पढ़ें - पूर्व सीएम के OSD रहे लोकेश शर्मा ने अशोक गहलोत पर लगाए गंभीर आरोप - Lokesh Sharma On Gehlot

राठौड़ ने कहा कि यह फोन टैपिंग तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अपने धुर विरोधियों की बातचीत को सुनने के लिए ही करवाए थे. टेलीफोन या मैसेज को इंटरसेप्ट किसके आदेश से किस रीति से किया जा सकता है, इसका विस्तृत उल्लेख Indian Telegraph Rule 1951 में भी विस्तृत रूप से है. इसका उल्लंघन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने किया है. संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार व्यक्ति का जीवन, आचरण, निजता की पूर्ण स्वतंत्रता उसका संवैधानिक अधिकार है. आम आदमी की निजता में दखल उसके मौलिक अधिकार में दखल है. राठौड़ ने कहा कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने पीयूसीएल बनाम भारत संघ (1997) में दिए गए निर्णय में एकांतता के अधिकार की विस्तृत विवेचना करते हुए कहा कि एकांतता का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार के समान ही है, जिसमें किसी का फोन टेप करने की अनुज्ञा नहीं की जा सकती हैं. अगर किसी का फोन विधि विरुद्ध टैप किया जाता है तो वो उसकी निजता के मौलिक अधिकार पर अतिक्रमण की श्रेणी में आता है. यानी किसी भी व्यक्ति का विधि विरूद्ध फोन टैप किया जाना उसको संविधान प्रदत्त निजता के अधिकारों का खुला हनन है.

सख्त कार्रवाई की मांग : राठौड़ ने कहा कि विगत कांग्रेस सरकार और उच्च पदों पर पदस्थ पुलिस व प्रशासन के अधिकारियों की ओर से षड्यंत्र पूर्वक इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885, इंडियन टेलीग्राफ रुल्स 1951, संविधान के अनुच्छेद 21 और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णयों की खुलकर धज्जियां उड़ाई. संवैधानिक प्रक्रियाओं व नियमों को ताक पर रखने का काम किया. अब प्रश्न यह है कि किसकी अनुमति और किन अधिकारियों ने अपने आकाओं को खुश करने के लिए जनप्रतिनिधियों के फोन टैप करवाए?

इसे भी पढ़ें - पूर्व सीएम अशोक गहलोत के OSD रहे लोकेश शर्मा के खिलाफ मामला दर्ज

क्या फोन टैपिंग प्रक्रिया में तमाम संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया गया था? इन सबकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए, जिससे दोषियों के खिलाफ समुचित कार्रवाई हो सके. राठौड़ ने कहा कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पूर्व ओएसडी ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर फोन टैपिंग के जो गंभीर आरोप लगाए हैं, उसके लिए उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर इस षड्यंत्र में शामिल आकाओं के साथ तत्कालीन उच्च पदस्थ प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों संलिप्तता अब उजागर हो गई है.

जयपुर. राजस्थान में पूर्ववर्ती गहलोत सरकार के समय हुए फोन टैपिंग का मामला एक बार फिर से गरमा रहा है. दो दिन पहले पूर्व सीएम अशोक गहलोत के ओएसडी रहे लोकेश शर्मा के आरोपों के बाद फोन टैपिंग प्रकरण पर सियासी पारा एकदम से चढ़ गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा सहित अन्य भाजपा नेताओं के बयानों के बाद अब पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने इस मामले में दो कदम आगे बढ़कर उच्च स्तरी जांच की मांग उठाई है. राठौड़ ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को पत्र लिखकर साल 2020 में कांग्रेस सरकार के समय हुए फोन टैपिंग प्रकरण में तत्कालीन उच्च पदस्थ प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उच्च स्तरीय जांच करवाकर सख्त कार्रवाई किए जाने की मांग की है.

आरोप अत्यंत गंभीर : राजेंद्र राठौड़ ने पत्र में लिखा कि साल 2020 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के समय मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत के पूर्व ओएसडी लोकेश शर्मा की ओर से दो दिन पहले फोन टैपिंग से जुड़े प्रकरण को लेकर गंभीर आरोप लगाए गए हैं. इससे स्पष्ट तौर पर प्रमाणित हो रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उच्च पदस्थ अधिकारियों के साथ मिलकर संविधान प्रदत्त अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया और कानून और नियमों की धज्जियां उड़ाई. वहीं, सरकारी एजेंसियों पर बेजा दबाव बनाकर अवैधानिक ढंग से जनप्रतिनिधियों के फोन टैप करवाए गए.

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उन्होंने कहा कि पूर्व ओएसडी ने कांग्रेस सरकार में पूर्व उपमुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट सहित उनके करीब 19 सहयोगी विधायकों के फोन टैप करवाए जाने का प्रमाण देने की बात कही है. ऐसे में ये प्रकरण अत्यंत गंभीर है. राठौड़ ने कहा कि यह दुर्भाग्य की बात है कि मुख्यमंत्री जैसे जिम्मेदार और संवैधानिक पद पर रहते हुए अशोक गहलोत की ओर से न केवल गैर कानूनी तरीके से फोन टैप करवाए गए, बल्कि पुलिस प्रशासन की पूरी मशीनरी का भी दुरुपयोग किया गया. अवैध फोन टैप के इस षड्यंत्र में उच्च पदस्थ प्रशासनिक अधिकारी व पुलिस अधिकारी शामिल थे, जो आज भी बड़े पदों पर पदस्थापित हैं. ऐसे में इस संबंध में उच्च स्तरीय कमेटी द्वारा निष्पक्ष जांच करवाकर उनके खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होनी चाहिए.

Rajasthan Phone Tapping Case
Rajasthan Phone Tapping Case

निजता के अधिकारों का खुला हनन : राठौड़ ने कहा कि इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 की धारा 5 (2) व नियमों को देखे तो उसके अनुसार देश की अखंडता, सम्प्रभुता या जन सुरक्षा, गंभीर अपराध कारित किए जाने की संभावनाओं में या पड़ोसी देश के मित्रवत रिश्तों में संभावित रूकावट इत्यादि को देखते हुए केंद्र सरकार या राज्य सरकार लिखित में कारणों का उल्लेख करते हुए प्राधिकृत अधिकारी किसी भी संदेश या टेलीफोन को इंटरसेप्ट करता है. यानी विधिक कानूनी प्रक्रिया अपनाकर और सक्षम स्तर से अनुमति के उपरांत ही टेलीफोन रिकॉर्डिंग की जा सकती है, लेकिन पिछली कांग्रेस सरकार के समय जो फोन टैपिंग की प्रक्रिया अपनाई गई, उसमें कहीं भी यह नहीं लगता कि देश की अखंडता, सम्प्रभुता या जन सुरक्षा का गंभीर अपराध कारित किए जाने की संभावना रही.

इसे भी पढ़ें - पूर्व सीएम के OSD रहे लोकेश शर्मा ने अशोक गहलोत पर लगाए गंभीर आरोप - Lokesh Sharma On Gehlot

राठौड़ ने कहा कि यह फोन टैपिंग तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अपने धुर विरोधियों की बातचीत को सुनने के लिए ही करवाए थे. टेलीफोन या मैसेज को इंटरसेप्ट किसके आदेश से किस रीति से किया जा सकता है, इसका विस्तृत उल्लेख Indian Telegraph Rule 1951 में भी विस्तृत रूप से है. इसका उल्लंघन तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने किया है. संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार व्यक्ति का जीवन, आचरण, निजता की पूर्ण स्वतंत्रता उसका संवैधानिक अधिकार है. आम आदमी की निजता में दखल उसके मौलिक अधिकार में दखल है. राठौड़ ने कहा कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने पीयूसीएल बनाम भारत संघ (1997) में दिए गए निर्णय में एकांतता के अधिकार की विस्तृत विवेचना करते हुए कहा कि एकांतता का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार के समान ही है, जिसमें किसी का फोन टेप करने की अनुज्ञा नहीं की जा सकती हैं. अगर किसी का फोन विधि विरुद्ध टैप किया जाता है तो वो उसकी निजता के मौलिक अधिकार पर अतिक्रमण की श्रेणी में आता है. यानी किसी भी व्यक्ति का विधि विरूद्ध फोन टैप किया जाना उसको संविधान प्रदत्त निजता के अधिकारों का खुला हनन है.

सख्त कार्रवाई की मांग : राठौड़ ने कहा कि विगत कांग्रेस सरकार और उच्च पदों पर पदस्थ पुलिस व प्रशासन के अधिकारियों की ओर से षड्यंत्र पूर्वक इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885, इंडियन टेलीग्राफ रुल्स 1951, संविधान के अनुच्छेद 21 और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णयों की खुलकर धज्जियां उड़ाई. संवैधानिक प्रक्रियाओं व नियमों को ताक पर रखने का काम किया. अब प्रश्न यह है कि किसकी अनुमति और किन अधिकारियों ने अपने आकाओं को खुश करने के लिए जनप्रतिनिधियों के फोन टैप करवाए?

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क्या फोन टैपिंग प्रक्रिया में तमाम संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन किया गया था? इन सबकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए, जिससे दोषियों के खिलाफ समुचित कार्रवाई हो सके. राठौड़ ने कहा कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पूर्व ओएसडी ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार पर फोन टैपिंग के जो गंभीर आरोप लगाए हैं, उसके लिए उच्च स्तरीय कमेटी का गठन कर इस षड्यंत्र में शामिल आकाओं के साथ तत्कालीन उच्च पदस्थ प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों संलिप्तता अब उजागर हो गई है.

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