देहरादूनः उत्तराखंड में नगर निकाय चुनाव की सरगर्मियां सातवें आसमान पर है. चुनावी जंग जीतने के लिए उम्मीदवार चुनावी मैदान में न सिर्फ मतदाताओं को अपने पक्ष में करने में जुटा हुआ है. बल्कि कुछ ने तो अपनी पार्टी के विरोध में ही आवाज बुलंद कर रखी है. बढ़ते विरोध के इस डैमेज को कंट्रोल करने के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने डैमेज कंट्रोल करने के फार्मूले पर कार्य शुरू कर दिया है. ताकी पार्टी के विरुद्ध नामांकन दाखिल करने वाले उम्मीदवारों को मनाकर, नाम वापस करवाकर नाराजगी को दूर किया जा सके.
देवभूमि उत्तराखंड में भले ही कड़ाके की ठंड का प्रकोप बढ़ रहा हो. बावजूद इसके नगर निकाय के चुनावी महासंग्राम की सियासी सरगर्मियां चरम पर है. दरअसल, उत्तराखंड में निकाय चुनाव का शंखनाद हो चुका है और चुनावी जंग जीतने की कवायद तेज हो गई है. नाराज चल रहे नेताओं के मान मनोव्वल को लेकर भी राजनीतिक दलों की ओर से संपर्क साधा जा रहा है. क्योंकि, नगर निकाय चुनाव में नामांकन पत्र वापसी की अंतिम तिथि दो जनवरी रखी गई है.
पार्टी से नाराज निर्दलीय उम्मीदवारों ने बढ़ाई टेंशन: यही वजह है कि, 30 दिसंबर 2024 नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि के बाद से ही राजनीतिक पार्टियां, पार्टी के निर्णय के विरुद्ध नामांकन दाखिल करने वाले नेताओं का चयन करने में जुट गई थी. साथ ही राजनीतिक पार्टियां उन नेताओं को मनाने की कोशिश कर रही है, जो चुनाव में खासा नुकसान पहुंचा सकते हैं. लिहाजा, नगर निकायों के चुनाव में नाम वापसी से पहले ही सियासी घमासान इतना बढ़ गया है कि पार्टी के सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ने का सपना टूटते ही पक्ष-विपक्ष के कई कार्यकर्ताओं ने विरोध के स्वर मुखर कर दिए हैं. साथ ही निर्दलीय चुनाव लड़ने तक का मन बना लिया है.
सत्ताधारी पार्टी के लिए आसान, विपक्ष के लिए मुश्किल: बहरहाल, पार्टी में पनपने वाले इस विरोध को सियासी पंडित तो अपने ही नजरिये से देख रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषक की माने तो सत्ताधारी पार्टी के नाराज कार्यकर्ताओं को काफी हद तक मना लिया जाता है. लेकिन विपक्ष के नेतृत्व के लिए यह एक बड़ी चुनौती है. राजनीतिक विश्लेषक जय सिंह रावत ने पार्टी के प्रति समर्पण भाव से कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं की मनोदशा की वास्तविकता को बयां करते हुए डैमेज कंट्रोल के मामले पर कहा, कई चुनाव में विरोधियों के पक्ष में भी चुनावी नतीजे सामने आ जाते हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि सत्याधारी पार्टी नाराज पार्टी कार्यकर्ताओं को सरकार और संगठन में अहम पद देने के आधार पर मनाने में सफल हो जाती है, जबकि विपक्षी पार्टी के पास यह विकल्प उपलब्ध नहीं है.
भाजपा चुनावी मैदान में देगी चुनौती: वहीं, बीजेपी के वरिष्ठ नेता और विधायक विनोद चमोली ने विरोधियों से बातचीत करने का हवाला देते हुए पार्टी के कार्यकर्ताओं के विरोध के मामले पर कहा कि कुछ लोगों को मना लिया गया है. कुछ लोगों को मनाए जाने के प्रयास कर रहे हैं और जो लोग नहीं मानेंगे उनके साथ पार्टी की रीति-नीति के तहत ही चुनावी मैदान में मजबूती के साथ दमदार तरीके से चुनाव लड़ा जाएगा.
कांग्रेस ने शुरू किया डैमेज कंट्रोल करना: वहीं, मुख्य विपक्षी पार्टी के विरोधियों के डैमेज को कंट्रोल करना एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है. जो अलग-अलग पदों के प्रत्याशी पार्टी के विरोध में निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर चुके हैं, ऐसे विरोधियों का डैमेज कंट्रोल करना अब पार्टी के लिए एक बड़ा चैलेंज हो गया है. कांग्रेस पार्टी की प्रदेश प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने इस बात को स्वीकार किया है कि पार्टी के सिंबल पर जिन लोगों का टिकट नहीं मिल पाया है, ऐसे पार्टी कार्यकर्ता दुखी होंगे. ऐसे कार्यकर्ताओं का मनोबल भी टूटा होगा. उन्होंने इसको एक नेचुरल प्रक्रिया करार देते हुए कहा कि जिन लोगों का टिकट नहीं हो पाया है, ऐसे पार्टी कार्यकर्ताओं से समन्वय स्थापित किया जाएगा. उनका मान-मनोव्वल किया जाएगा और उनको मनाने के हर संभव प्रयास किए जाएंगे.
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