नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस समारोह के समापन के बाद आसमान में रंग बिरंगी पतंगों की छटा बिखर जाती है. दरअसल पतंगबाजी दिल्ली के लोगों का शौक है और यह विशेष कर 15 अगस्त के मौके पर ही की जाती है. 15 अगस्त पर पतंगबाजी के लिए 15 से 20 दिन पहले से बाजार सज जाते हैं. तरह-तरह की पतंग बाजार में आ जाती हैं और पुरानी दिल्ली का लाल कुआं बाजार और दिल्ली के अन्य छोटे-बड़े बाजारों में जगह-जगह पतंग की दुकानें भी सज जाती हैं.
लोग जमकर पतंगों की खरीदारी करते हैं. फिर 15 अगस्त के दिन दोपहर से ही पतंगबाजी का दौर शुरू हो जाता है. पहले लोग पार्क में जाकर के पतंग उड़ाया करते थे. लेकिन, अब यह ट्रेंड बदलकर घर की छतों पर पतंग उड़ाने के रूप में बदल गया है. अब अधिकतर लोग अपने घर की सबसे ऊंची छत पर जाकर के पतंग उड़ाते हैं. इसके साथ ही अब लोग अपनी छत पर ही गाने बजाते हुए पतंगबाजी करते हैं.
दुनिया में पतंगबाजी का इतिहास 2000 साल पुराना, चीन में हुई थी शुरुआत
जानकारों की मानें तो दुनिया में पतंगबाजी का इतिहास 2000 साल पुराना है. पतंगबाजी की शुरुआत सबसे पहले चीन में हुई. चीन में पतंग को संदेश भाग के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. पूर्वी दिल्ली के पांडव नगर में अपनी छत पर परिवार और बच्चों को बड़े उत्साह के साथ पतंग उड़वा रहे 70 वर्षीय बुजुर्ग विनयपाल सिंह तंवर ने बताया कि उनकी पैदाइश ही दिल्ली की है. जबसे उन्होंने होश संभाला तबसे दिल्ली में 15 अगस्त के दिन पतंगबाजी होते देखी. जब जवान थे तो खुद भी पतंगबाजी करते थे. अब बच्चों से पतंगबाजी कराते हैं ताकि वर्षों पुरानी चली आ रही परंपरा खत्म न हो.
दिल्ली में आजादी के जश्न से है पतंगबाजी का संबंध
विनय पाल सिंह तंवर ने बताया कि उनके पिताजी सेना में थे. उनका जन्म लालकिले पास ही चांदनी चौक में हुआ. यहां के लोग पतंगबाजी करके आजादी का जश्न मनाते हैं. जिस तरह पतंग खुली हवा में दूर तक उड़ती है. उसी तरह देश आजाद होने के बाद लोगों ने खुली हवा में सांस लेना शुरू किया और आजादी का जश्न पतंगबाजी से मनाना शुरू किया. इसलिए आज भी देश की आजादी का दिन है बच्चों के साथ मना रहे हैं. अच्छा लग रहा है. सुमित सिंह ने बताया कि हर साल 15 अगस्त पर बच्चों के साथ पतंगबाजी करते हैं. इसलिए बच्चों में भी आज के दिन को लेकर बच्चों में भी क्रेज रहता है. इसलिए अभी हल्की बारिश में भी बच्चे छत पर पतंग लेकर आ गए.
भारत में कैसे आई पतंग
प्राप्त जानकारी के मुताबिक भारत में पतंग चीनी यात्री फाह्यान और विभिन्न ह्वेनसांग लेकर आए. इसके बाद मुगल काल में बादशाह शाहजहां ने खुले मैदान में पतंगबाजी की प्रतियोगिता कराई जिसमें सबसे ऊंची पतंग उड़ाने वाले को विजेता माना जाता था. इसमें हजारों की संख्या में लोगों ने हिस्सा लिया. तब से हर साल पतंगबाजी एक उत्सव का हिस्सा बन गई.
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