देहरादून: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने फायर सीजन में प्रदेश के जंगलों में लगने वाली आग का स्वतः संज्ञान लिए जाने वाली जनहित याचिका सहित कई अन्य याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई की. मामले की सुनवाई पर पूर्व के आदेश पर आज बुधवार 19 फरवरी को पीसीसीएफ धनंजय मोहन कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश हुए.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उनसे आग पर काबू पाने के लिए एक पूरा प्लान कोर्ट में प्रस्तुत करने को कहा है. साथ में कोर्ट ने पीसीसीएफ व याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ताओं से भी इस समस्या का समाधान करने के लिए अपने अपने सुझाव प्रस्तुत करने को कहा है.
सुनवाई पर कोर्ट ने कहा कि फायर सीजन प्रारम्भ होने से पहले ही फायर लाइन बनाई जाए. साथ ही जंगलों में लगने वाली आग की छोटी-छोटी घटनाओं की समस्या को ड्रोन के माध्यम से निपटाया जाए. इसके अलावा जिस इलाके में आग लग रही है कि उसकी जानकारी सैटेलाइट से लेकर सम्बंधित क्षेत्र को भेजा जाय. साथ ही पर्यावरण को बचाने के लिए स्थानीय लोगों की मदद भी ली जाय. क्योंकि स्थानीय लोग को ही अपने क्षेत्र की भगौलिक जानकारी अधिक होती है.
कोर्ट ने जंगलों में लगने वाली आग पर काबू पाने के लिए जो पीसीसीएफ ने कदम उठाए है. उनकी भी सराहना की. पीसीसीएफ ने कोर्ट को अवगत कराया कि कोर्ट के दिशा-निर्देश पर वन विभाग ने अभी कई सौ किलोमीटर तक की फायर लाइन बना दी है. फायर लाइन बनाने के लिए 14 हजार 800 रेक्स फायर कर्मचारियों को दे दिये हैं. आग लगने की जानकारी प्राप्त करने के लिए विभाग ने फारेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया से सैटेलाइट की मदद मांगी है, जिससे उन्हें आग लगने की जानकारी शीघ्र मिल सके. वहीं आग बुझाने के लिए विभाग ने लगभग 10 हजार श्रमिक दैनिक मजदूरी पर तैनात किए है.
आज मामले की सुनवाई मुख्य न्यायधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ती आशीष नैथानी की खण्डपीठ में हुई. अब मामले की अगली सुनवाई 3 मार्च को होगी. बता दें कि कोर्ट ने साल 2021 में मुख्य समाचार पत्रों में प्रकाशित आग की खबरों पर स्वतः संज्ञान लिया था. यही नहीं राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ने भी इसपर काबू पाने के लिए मुख्य न्यायधीश को पत्र भेजा था, जिसमें कहा था कि वन, वन्यजीव व पर्यावरण को बचाने के लिए उच्च न्यायलय राज्य को दिशा निर्देश जारी करें.
कोर्ट ने इनका संज्ञान लेकर कई दिशा निर्देश राज्य सरकार को जारी किए थे, लेकिन अभी तक उन आदेशों का सही तरह से अनुपालन नहीं होने पर कोर्ट ने इस मामले को पुनः सुनवाई के लिए आज सूचिबद्ध किया था, जबकि हाइकोर्ट ने साल 2016 में भी जंगलो को आग से बचाने के लिए गाइड लाइन जारी की थी.
कोर्ट अपने दिशा निर्देशों में कहा था कि गांव स्तर से ही आग बुझाने के लिए कमेटियां गठित किए जाए. नागरिकों में जागरूकता अपनाई जाने के साथ-साथ अन्य कई निर्देश दिए थे. जिस पर आज तक अमल नहीं किया गया. न्यायमित्र मैनाली ने कहा कि सरकार जहां आग बुझाने के लिए हेलीकाप्टर का उपयोग कर रही है, उसका खर्चा बहुत अधिक है और पूरी तरह से आग भी नहीं बुझती है. इसके बजाय गांव स्तर पर कमेटियां गठित की जाय. उन्हें इसके दुष्परिणाम के बारे बताया जाएं. अभीतक उस आदेश का अनुपालन तक नहीं हुआ, वर्तमान में राज्य सरकार आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का सहारा ले रही है, जो काफी मंहगा है.
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