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पटना हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पर लगाया 10 हजार का जुर्माना, तथ्य छिपाकर दायर की थी PIL - Patna High Court

Patna High Court fined petitioner पटना हाईकोर्ट ने तथ्यों को छिपाकर दायर जनहित याचिका पर सख्त रुख अपनाते हुए याचिकाकर्ता ध्रुव नारायण कर्ण पर 10 हजार रुपए का जुर्माना लगाया. चीफ जस्टिस केवी चन्द्रन की खंडपीठ ने याचिका को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग मानते हुए इसे खारिज कर दिया. खंडपीठ ने समय की बर्बादी और कानूनी प्रक्रिया से खिलवाड़ बताया. पढ़ें, विस्तार से.

पटना हाईकोर्ट.
पटना हाईकोर्ट. (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jul 25, 2024, 5:41 PM IST

पटनाः पटना हाईकोर्ट ने तथ्यों को छिपा कर जनहित याचिका दायर किये जाने पर सख्त रुख अपनाया. चीफ जस्टिस केवी चन्द्रन की खंडपीठ ने ध्रुव नारायण कर्ण द्वारा दर्ज पीआईएल को खारिज करते हुए इसे कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग माना और याचिकाकर्ता पर 10 हजार रुपए का फाइन लगाया. हालांकि, याचिकाकर्ता की तरफ से मुकदमा वापस लेने का अनुरोध भी किया गया था, लेकिन खंडपीठ ने इसे समय की बर्बादी और कानूनी प्रक्रिया से खिलवाड़ बताया.

क्या है मामलाः बिहार के मधुबनी जिले के रहिका अंचल स्थित राम जानकी गंगासागर मंदिर नामक धार्मिक न्यास की जमीन से जुड़ा मामला था. याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका दायर कर गुहार लगायी थी कि इस न्यास के सैकड़ों एकड़ जमीन पर बिहार सरकार ने लैंड सीलिंग कानून के तहत मुकदमा चलाकर अधिग्रहित किया था. उस भूमि को भूमिहीनों के बीच आवंटन करना है, लेकनि न्यास के महंत मुकदमेबाजी की आड़ में अड़ंगा डाल रहे हैं.

याचिकाकर्ता की दलीलः याचिकाकर्ता के वकील उग्रनाथ मल्लिक ने कहा कि बिहार लैंड सीलिंग कानून में अधिग्रहित जमीन से जुड़े मामलों को फिर से खोलने के प्रावधान को बिहार सरकार ने 2016 में ही खत्म कर दिया है. इसके बावजूद महंत और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से अधिग्रहित जमीनों का आवंटन फिर से मुकदमा होने के कारण नहीं हो पा रहा है. इसलिए व्यापक जनहित में न्यास की जमीन पर चल रहे सीलिंग मुकदमे को खत्म करने का अनुरोध किया जाए.

क्या कहा सरकारी वकील नेः राज्य सरकार के अधिवक्ता अरविंद उज्ज्वल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि विवादित जमीन पर सीलिंग कानून के तहत चलने वाले मुकदमे का आदेश पटना हाई कोर्ट ने ही दिया है. 1987 में ही हाई कोर्ट की एकलपीठ ने विवादित जमीन को अधिशेष घोषित किए जाने के सरकारी आदेश को निरस्त करते हुए मामले की पुनः सुनवाई हेतु मधुबनी के समाहर्ता के पास भेजा था. उन्होंने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता कोर्ट को गुमराह कर रहे हैं.

राजनीतिक दल का कार्यकर्ता है: इस मामले में न्यास के महंत की ओर से वरीय अधिवक्ता मृगांक मौली ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता एक राजनैतिक दल का जिलास्तरीय नेता है. वह राजनीतिक उद्देश्य से याचिका दायर करते हैं. उन्होंने जानबूझकर कोर्ट से यह तथ्य छिपाया है कि 2016 में भी वो इसी तरह की एक रिट याचिका लाए थे. जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. इसके बाद याचिकाकर्ता की तरफ से मुकदमा वापस लेने का अनुरोध किया गया तो, खंडपीठ ने हर्जाना लगाया.

इसे भी पढ़ेंः मुजफ्फरपुर डीएम के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में अवमानना की कार्रवाई शुरू, अदालत ने मांगा 4 हफ्ते में स्पष्टीकरण - Patna High Court

पटनाः पटना हाईकोर्ट ने तथ्यों को छिपा कर जनहित याचिका दायर किये जाने पर सख्त रुख अपनाया. चीफ जस्टिस केवी चन्द्रन की खंडपीठ ने ध्रुव नारायण कर्ण द्वारा दर्ज पीआईएल को खारिज करते हुए इसे कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग माना और याचिकाकर्ता पर 10 हजार रुपए का फाइन लगाया. हालांकि, याचिकाकर्ता की तरफ से मुकदमा वापस लेने का अनुरोध भी किया गया था, लेकिन खंडपीठ ने इसे समय की बर्बादी और कानूनी प्रक्रिया से खिलवाड़ बताया.

क्या है मामलाः बिहार के मधुबनी जिले के रहिका अंचल स्थित राम जानकी गंगासागर मंदिर नामक धार्मिक न्यास की जमीन से जुड़ा मामला था. याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका दायर कर गुहार लगायी थी कि इस न्यास के सैकड़ों एकड़ जमीन पर बिहार सरकार ने लैंड सीलिंग कानून के तहत मुकदमा चलाकर अधिग्रहित किया था. उस भूमि को भूमिहीनों के बीच आवंटन करना है, लेकनि न्यास के महंत मुकदमेबाजी की आड़ में अड़ंगा डाल रहे हैं.

याचिकाकर्ता की दलीलः याचिकाकर्ता के वकील उग्रनाथ मल्लिक ने कहा कि बिहार लैंड सीलिंग कानून में अधिग्रहित जमीन से जुड़े मामलों को फिर से खोलने के प्रावधान को बिहार सरकार ने 2016 में ही खत्म कर दिया है. इसके बावजूद महंत और सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से अधिग्रहित जमीनों का आवंटन फिर से मुकदमा होने के कारण नहीं हो पा रहा है. इसलिए व्यापक जनहित में न्यास की जमीन पर चल रहे सीलिंग मुकदमे को खत्म करने का अनुरोध किया जाए.

क्या कहा सरकारी वकील नेः राज्य सरकार के अधिवक्ता अरविंद उज्ज्वल ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि विवादित जमीन पर सीलिंग कानून के तहत चलने वाले मुकदमे का आदेश पटना हाई कोर्ट ने ही दिया है. 1987 में ही हाई कोर्ट की एकलपीठ ने विवादित जमीन को अधिशेष घोषित किए जाने के सरकारी आदेश को निरस्त करते हुए मामले की पुनः सुनवाई हेतु मधुबनी के समाहर्ता के पास भेजा था. उन्होंने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता कोर्ट को गुमराह कर रहे हैं.

राजनीतिक दल का कार्यकर्ता है: इस मामले में न्यास के महंत की ओर से वरीय अधिवक्ता मृगांक मौली ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता एक राजनैतिक दल का जिलास्तरीय नेता है. वह राजनीतिक उद्देश्य से याचिका दायर करते हैं. उन्होंने जानबूझकर कोर्ट से यह तथ्य छिपाया है कि 2016 में भी वो इसी तरह की एक रिट याचिका लाए थे. जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. इसके बाद याचिकाकर्ता की तरफ से मुकदमा वापस लेने का अनुरोध किया गया तो, खंडपीठ ने हर्जाना लगाया.

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