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परेतिन दाई मंदिर, जहां डायन भरती है सूनी गोद - Navratri 2024 - NAVRATRI 2024

बालोद के झींका गांव में लोग डायन को माता मानकर पूजा करते हैं. मान्यता है कि यहां परेतिन दाई संतान की मनोकामना पूरी करती हैं.

Balod PARETIN DAI mandir JHIKA
बालोद की परेतिन दाई का मंदिर (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Oct 4, 2024, 11:58 AM IST

Updated : Oct 4, 2024, 2:23 PM IST

बालोद : ऐसे तो लोग प्रेत या फिर डायन नाम से ही डर जाते हैं, क्योंकि इसको बुरी शक्ति माना जाता है. लेकिन बालोद में झिंका गांव के लोगों की आस्था ऐसी है कि ये डायन (परेतिन दाई) को माता मानते हैं और इसकी पूजा करते हैं. यहां एक छोटा सा मंदिर भी है, जिसे परेतिन दाई मंदिर के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि यहां स्थित परेतिन दाई सूनी गोद भर देती है.

बालोद का परेतिन दाई मंदिर : परेतिन दाई मंदिर बालोद जिले के सिकोसा से अर्जुन्दा जाने वाले रास्ते पर झिंका गांव में स्थित है. इस मंदिर में नवरात्र को दौरान विशेष अनुष्ठान की शुरुआत हो गई है. इस मंदिर में ज्योत भी जलाए गए हैं. माना जाता है कि इस मंदिर की डायन माता अच्छों को अच्छा करती है, लेकिन कोई माता का तिरस्कार कर उस राह से गुजर जाए तो उसके साथ अनहोनी भी होती है.

परेतिन दाई का मंदिर की मान्यता (ETV Bharat)

"सूने गोद को भरती है परेतिन दाई" : झींका गांव की सरहद में बना परेतिन दाई मंदिर अपनी मान्यता के चलते आस्था का केंद्र है. मान्यता है कि विशेष रूप से परेतिन दाई सूने गोद को भरती है. ग्रामीण गैंदलाल मिरी ने बताया, बालोद जिले का यह मंदिर पहले एक पेड़ से जुड़ा हुआ था. माता का प्रमाण आज भी उस पेड़ पर है और उसके सामने शीश झुकाकर कोई आगे नहीं बढ़ता है. आज भी हम गुजरते हैं तो शीश नवाकर गुजरते हैं. झींका गांव में बहुत से ठेठवार (यादव) हैं, जो रोज दूध बेचने आसपास इलाकों में जाते हैं. यहां दूध चढ़ाना ही पड़ता है. जान बूझकर दूध नहीं चढ़ाया तो दूध फट जाता है. ऐसा कई बार हो चुका है.

परेतिन दाई की महिमा अथाह है, जिसका बखान नहीं कर सकते. श्रद्धालुओं का मनोकामना पूरा हो रहा है तो परेतिन दाई की महिमा बढ़ती जा रही है. जिस व्यक्ति के बच्चे नहीं, उन्होंने बच्चे की कामना की, फिर उन्हें बाल बच्चा मिल गया. किसी ने धंधा या नौकरी की मांग की तो वह पूरी हुई. इसलिए आज वो लोग श्रद्धापूर्वक यहां ज्योति जलाते हैं. : गैंदलाल मिरी, मंदिर सेवक

मंदिर के पास से गुजरने पर करना होता है दान : ग्रामीण ने बताया कि यह मंदिर काफी पुराना है और इसकी एक बड़ी मान्यता है. इसके रास्ते से कोई भी वाहन या लोग गुजरती है और किसी तरह का समान लेकर जा रहे होते हैं तो उसका कुछ हिस्सा मन्दिर के पास छोड़ना पड़ता है. चाहे खाने-पीने के लिए बेचने वाले समान या फिर घर बनाने के लिए उपयोग में लाने वाले समान.

यदि कोई व्यक्ति ऐसा नहीं करता तो उसके साथ कुछ न कुछ अनहोनी होती है. इस रास्ते से गुजरने वाले बाइक कार चालक अगर परेतिन माता को प्रणाम नहीं करते तो उसकी गाड़ी बंद हो जाती है. फिर वापस आकर परेतिन माता के पास नारियल चढ़ाने पर ही गाड़ी चालू होती है. : देवकी यादव, ग्रामीण

नवरात्र में नव दिन होती विशेष पूजा : चैत्र और क्वांर नवरात्रि में परेतिन दाई के दरबार में विशेष आयोजन किए जाते हैं. यहां पर ज्योति कलश की स्थापना की जाती है. नवरात्र के 9 दिन बड़ी संख्या में भक्तों का तांता यहां लगा रहता है. इसी तरह सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपरा और मान्यता आज भी इस गांव में कायम है. वर्तमान में 100 ज्योति कलश यहां पर प्रज्वलित किए गए हैं.

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बालोद : ऐसे तो लोग प्रेत या फिर डायन नाम से ही डर जाते हैं, क्योंकि इसको बुरी शक्ति माना जाता है. लेकिन बालोद में झिंका गांव के लोगों की आस्था ऐसी है कि ये डायन (परेतिन दाई) को माता मानते हैं और इसकी पूजा करते हैं. यहां एक छोटा सा मंदिर भी है, जिसे परेतिन दाई मंदिर के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि यहां स्थित परेतिन दाई सूनी गोद भर देती है.

बालोद का परेतिन दाई मंदिर : परेतिन दाई मंदिर बालोद जिले के सिकोसा से अर्जुन्दा जाने वाले रास्ते पर झिंका गांव में स्थित है. इस मंदिर में नवरात्र को दौरान विशेष अनुष्ठान की शुरुआत हो गई है. इस मंदिर में ज्योत भी जलाए गए हैं. माना जाता है कि इस मंदिर की डायन माता अच्छों को अच्छा करती है, लेकिन कोई माता का तिरस्कार कर उस राह से गुजर जाए तो उसके साथ अनहोनी भी होती है.

परेतिन दाई का मंदिर की मान्यता (ETV Bharat)

"सूने गोद को भरती है परेतिन दाई" : झींका गांव की सरहद में बना परेतिन दाई मंदिर अपनी मान्यता के चलते आस्था का केंद्र है. मान्यता है कि विशेष रूप से परेतिन दाई सूने गोद को भरती है. ग्रामीण गैंदलाल मिरी ने बताया, बालोद जिले का यह मंदिर पहले एक पेड़ से जुड़ा हुआ था. माता का प्रमाण आज भी उस पेड़ पर है और उसके सामने शीश झुकाकर कोई आगे नहीं बढ़ता है. आज भी हम गुजरते हैं तो शीश नवाकर गुजरते हैं. झींका गांव में बहुत से ठेठवार (यादव) हैं, जो रोज दूध बेचने आसपास इलाकों में जाते हैं. यहां दूध चढ़ाना ही पड़ता है. जान बूझकर दूध नहीं चढ़ाया तो दूध फट जाता है. ऐसा कई बार हो चुका है.

परेतिन दाई की महिमा अथाह है, जिसका बखान नहीं कर सकते. श्रद्धालुओं का मनोकामना पूरा हो रहा है तो परेतिन दाई की महिमा बढ़ती जा रही है. जिस व्यक्ति के बच्चे नहीं, उन्होंने बच्चे की कामना की, फिर उन्हें बाल बच्चा मिल गया. किसी ने धंधा या नौकरी की मांग की तो वह पूरी हुई. इसलिए आज वो लोग श्रद्धापूर्वक यहां ज्योति जलाते हैं. : गैंदलाल मिरी, मंदिर सेवक

मंदिर के पास से गुजरने पर करना होता है दान : ग्रामीण ने बताया कि यह मंदिर काफी पुराना है और इसकी एक बड़ी मान्यता है. इसके रास्ते से कोई भी वाहन या लोग गुजरती है और किसी तरह का समान लेकर जा रहे होते हैं तो उसका कुछ हिस्सा मन्दिर के पास छोड़ना पड़ता है. चाहे खाने-पीने के लिए बेचने वाले समान या फिर घर बनाने के लिए उपयोग में लाने वाले समान.

यदि कोई व्यक्ति ऐसा नहीं करता तो उसके साथ कुछ न कुछ अनहोनी होती है. इस रास्ते से गुजरने वाले बाइक कार चालक अगर परेतिन माता को प्रणाम नहीं करते तो उसकी गाड़ी बंद हो जाती है. फिर वापस आकर परेतिन माता के पास नारियल चढ़ाने पर ही गाड़ी चालू होती है. : देवकी यादव, ग्रामीण

नवरात्र में नव दिन होती विशेष पूजा : चैत्र और क्वांर नवरात्रि में परेतिन दाई के दरबार में विशेष आयोजन किए जाते हैं. यहां पर ज्योति कलश की स्थापना की जाती है. नवरात्र के 9 दिन बड़ी संख्या में भक्तों का तांता यहां लगा रहता है. इसी तरह सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपरा और मान्यता आज भी इस गांव में कायम है. वर्तमान में 100 ज्योति कलश यहां पर प्रज्वलित किए गए हैं.

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Last Updated : Oct 4, 2024, 2:23 PM IST
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