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बचपन में खोई आंख, पैरालंपिक तक पहुंचने जमींदारों के खेतों में किया काम, अब बनाएंगे महल

सीहोर के कपिल परमार ने पैरालंपिक में देश को पहला मेडल दिलाया. बचपन में आंखें खो चुके कपिल ने लाइफ में बहुत संघर्ष किया है.

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 3 hours ago

KAPIL PARMAR STRUGGLE STORY
पैरालंपिक विनर कपिल परमार (ETV Bharat)

भोपाल: देश को जूडो में पहला पैरालंपिक दिलाने वाले कपिल परमार मध्यप्रदेश के सीहोर के रहने वाले हैं. पेरिस पैरालंपिक जीतने के बाद बर्धाइयोंं का तांता लगा है, मदद और पुरस्कार देने वालों की भीड़ है. लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए कपिल को काफी बलिदान देना पड़ा है. कपिल की आंख बचपन में चली गई थी. उनके पास अच्छे अस्पताल में इलाज कराने के लिए पैसे नहीं थे. यहां तक कि उन्हें हेल्दी डाइट लेने और प्रैक्टिस में जाने के लिए भी खुद ही मजदूरी कर पैसे जुटाने होते थे. इसके लिए उन्हें गांव के ही जमीनदारों के खेतों में काम करना पड़ता था.

पिता टैक्सी ड्रायवर और मां खेतों में करती हैं काम
कपिल परमार ने बताया कि, ''वो तीन भाई और एक बहन हैं. उनके पिता टैक्सी ड्रायवर और मां गांव के ही जमींदारों के खेतों में काम करती थी. ऐसे में घर खर्च भी चलाना बहुत मुश्किल था. हम चार भाई बहनों की पढ़ाई लिखाई भी गांव के ही स्कूल में हुई.'' कपिल ने बताया कि, ''जब वो कक्षा आठवीं में थे, तब से उनकी आंखों की रोशनी जाना शुरु हो गई थी. उन्हें केवल 80 प्रतिशत दिखाई देता था. जिसके बाद कपिल ने स्कूल जाना भी बंद कर दिया. हालांकि इस दौरान घर पर पढ़ाई जारी रखी. उस समय उनके पास इलाज के लिए भी पैसे नहीं थे. सीमित कमाई में परिवार का खर्च चलाना भी बड़ा कठिन होता था.''

Struggle Story Kapil Parmar
पीएम मोदी के साथ कपिल परमार (ETV Bharat)

8 से 10 घंटे खेतों में काम करने के बाद करते थे प्रैक्टिस
कपिल परमार ने बताया कि, ''अपने जीवन में काफी बलिदान दिया. अपनी डाइट और जूडो की प्रैक्टिस के लिए भी उनको खुद ही पैसे का इंतजाम करना होता था. ऐसे में कपिल अपनी मां के साथ गांव के जमींदारों के खेत में काम करते थे. यहां से जो भी पैसा मिलता था, उसे वो अपने खेल में लगाते थे. कपिल ने बताया कि पैरालंपिक तक पहुंचने में उनको कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. करीब 8 से 10 घंटे तक वो दूसरों के खेतों में काम करते थे, इसके बाद घर पर ही जूडो की प्रैक्टिस करते थे.'' बता दें कि कपिल का सबसे छोटा भाई भी जूडो खिलाड़ी है. वहीं कपिल को जूडो की प्रैक्टिस कराता है.

Struggle Story Kapil Parmar
कपिल परमार ने पैरालंपिक में देश को दिलाया मेडल (ETV Bharat)

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सरकार से मिले एक करोड़ रुपये इस तरह खर्च करेंगे कपिल
कपिल ने बताया कि, ''पहले उनका घर कच्चा था. खेती के लिए थोड़ी जमीन है. इसलिए सरकार से मिले पुरस्कार के एक करोड़ रुपये वह इन्हीं चीजों में लगाएंगे. उन्होंने बताया कि इस राशि से वो सबसे पहले अच्छा घर बनाएंगे. इसके बाद बची हुई राशि से गांव में जमीन खरीदेंगे. जिससे उनके जानवरों के लिए भी व्यवस्था हो सके. वर्तमान में कपिल परमार बीपीएड की पढ़ाई कर रहे हैं. अभी उनका लक्ष्य अगले पैरालंपिक की तैयारी करना और विश्व स्तर पर रैकिंग में सुधार करना है. इसके साथ ही वो भविष्य में खिलाड़ियों को फिजिकल ट्रेनिंग देना चाहते हैं. जिससे देश में अधिक से अधिक लोग आंलपिक और पैरालंपिक में पदक जीत सके.

भोपाल: देश को जूडो में पहला पैरालंपिक दिलाने वाले कपिल परमार मध्यप्रदेश के सीहोर के रहने वाले हैं. पेरिस पैरालंपिक जीतने के बाद बर्धाइयोंं का तांता लगा है, मदद और पुरस्कार देने वालों की भीड़ है. लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए कपिल को काफी बलिदान देना पड़ा है. कपिल की आंख बचपन में चली गई थी. उनके पास अच्छे अस्पताल में इलाज कराने के लिए पैसे नहीं थे. यहां तक कि उन्हें हेल्दी डाइट लेने और प्रैक्टिस में जाने के लिए भी खुद ही मजदूरी कर पैसे जुटाने होते थे. इसके लिए उन्हें गांव के ही जमीनदारों के खेतों में काम करना पड़ता था.

पिता टैक्सी ड्रायवर और मां खेतों में करती हैं काम
कपिल परमार ने बताया कि, ''वो तीन भाई और एक बहन हैं. उनके पिता टैक्सी ड्रायवर और मां गांव के ही जमींदारों के खेतों में काम करती थी. ऐसे में घर खर्च भी चलाना बहुत मुश्किल था. हम चार भाई बहनों की पढ़ाई लिखाई भी गांव के ही स्कूल में हुई.'' कपिल ने बताया कि, ''जब वो कक्षा आठवीं में थे, तब से उनकी आंखों की रोशनी जाना शुरु हो गई थी. उन्हें केवल 80 प्रतिशत दिखाई देता था. जिसके बाद कपिल ने स्कूल जाना भी बंद कर दिया. हालांकि इस दौरान घर पर पढ़ाई जारी रखी. उस समय उनके पास इलाज के लिए भी पैसे नहीं थे. सीमित कमाई में परिवार का खर्च चलाना भी बड़ा कठिन होता था.''

Struggle Story Kapil Parmar
पीएम मोदी के साथ कपिल परमार (ETV Bharat)

8 से 10 घंटे खेतों में काम करने के बाद करते थे प्रैक्टिस
कपिल परमार ने बताया कि, ''अपने जीवन में काफी बलिदान दिया. अपनी डाइट और जूडो की प्रैक्टिस के लिए भी उनको खुद ही पैसे का इंतजाम करना होता था. ऐसे में कपिल अपनी मां के साथ गांव के जमींदारों के खेत में काम करते थे. यहां से जो भी पैसा मिलता था, उसे वो अपने खेल में लगाते थे. कपिल ने बताया कि पैरालंपिक तक पहुंचने में उनको कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. करीब 8 से 10 घंटे तक वो दूसरों के खेतों में काम करते थे, इसके बाद घर पर ही जूडो की प्रैक्टिस करते थे.'' बता दें कि कपिल का सबसे छोटा भाई भी जूडो खिलाड़ी है. वहीं कपिल को जूडो की प्रैक्टिस कराता है.

Struggle Story Kapil Parmar
कपिल परमार ने पैरालंपिक में देश को दिलाया मेडल (ETV Bharat)

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सरकार से मिले एक करोड़ रुपये इस तरह खर्च करेंगे कपिल
कपिल ने बताया कि, ''पहले उनका घर कच्चा था. खेती के लिए थोड़ी जमीन है. इसलिए सरकार से मिले पुरस्कार के एक करोड़ रुपये वह इन्हीं चीजों में लगाएंगे. उन्होंने बताया कि इस राशि से वो सबसे पहले अच्छा घर बनाएंगे. इसके बाद बची हुई राशि से गांव में जमीन खरीदेंगे. जिससे उनके जानवरों के लिए भी व्यवस्था हो सके. वर्तमान में कपिल परमार बीपीएड की पढ़ाई कर रहे हैं. अभी उनका लक्ष्य अगले पैरालंपिक की तैयारी करना और विश्व स्तर पर रैकिंग में सुधार करना है. इसके साथ ही वो भविष्य में खिलाड़ियों को फिजिकल ट्रेनिंग देना चाहते हैं. जिससे देश में अधिक से अधिक लोग आंलपिक और पैरालंपिक में पदक जीत सके.

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