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कोरबा में धूमधाम से मनाई गई कबीर जयंती, कबीरपंथ में गुरु का स्थान सबसे ऊपर का दिया गया संदेश - kabir jayanti 2024

कबीरपंथी में गुरू का स्थान सबसे ऊपर है. छत्तीसगढ़ की उर्जाधानी में इस परंपरा का निर्वाह करते हुए कबीर जयंती मनाई गई. इसे कबीर का प्रकट उत्सव भी कहा जाता है. Panika community in Kabirpanthi

Kabir Jayanti 2024
कोरबा में कबीर जयंती (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jun 22, 2024, 5:52 PM IST

Updated : Jun 22, 2024, 6:08 PM IST

कोरबा में मनाई गई कबीर जयंती (ETV Bharat)

कोरबा: छत्तीसगढ़ सहित देश भर में संत कबीर की आज जयंती मनाई गई. छत्तीसगढ़ में पनिका समाज को कबीरपंथी कहा जाता है. छत्तीसगढ़ के नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत और उनकी पत्नी सांसद ज्योत्सना महंत भी कबीरपंथी हैं. कबीर पंथ को मानने वाले पूरे छत्तीसगढ़ में बड़ी तादाद में हैं. कोरबा में धूमधाम से संत कबीर का प्रकट उत्सव मनाया गया.

कोरबा में मनाई गई कबीर जयंती: कबीरपंथी मानते हैं कि कबीर इस धरती पर प्रकट हुए थे और एक प्रकाश की तरह इस संसार को रोशन किया. कबीर जयंती का उत्सव कबीरपंथी एक हफ्ते तक मनाते हैं. कोरबा के निहारिका स्थित कबीर आश्रम से लेकर कुदुरमाल और ढोढ़ीपारा तक कबीर जयंती मनाई गई. कबीरपंथ के अनुयायियों ने चौका आरती और सात्विक यज्ञ करके कबीर जयंती मनाई. पूरे दिन भोग भंडारे का दौर जारी रहा.

कबीर पंथ में सबसे ऊपर है गुरु का स्थान: ढोढ़ीपारा में कबीरपंथियों ने कबीर जयंती के मौके पर चौका आरती का आयोजन किया. यहां बड़ी तादाद में अनुयाई पहुंचे थे. कबीरपंथी राजू महंत कहते हैं, "आज का दिन सभी कबीरपंथी भाइयों के लिए बेहद खास होता है. संत कबीर हमारे आराध्य हैं. वह हमारे जगतगुरु हैं. आज भी हम उनके दिखाए हुए मार्ग पर चलते हैं. आज हम विधि विधान से चौका आरती के बाद सात्विक यज्ञ का आयोजन करते हैं. संत कबीर ने हमें निराकार ईश्वर के उपासना का संदेश दिया था. कबीर पंथ में गुरु का स्थान सबसे ऊपर होता है. हम गुरु को ही अपना भगवान मानते हैं. संत कबीर ने भी यही संदेश दिया था कि जगत में राम और कृष्णा से बड़ा कोई नहीं है, लेकिन उन्होंने भी अपने गुरु को नमन किया. इसलिए हम मानते हैं कि गुरु हमारे लिए सबसे ऊपर हैं. कबीर के अनेक दोहे हमें आज भी सांसारिक मोह माया से बाहर निकलने का संदेश देते हैं. मनुष्य इस संसार के मोह माया में फंसा हुआ था और उसे बाहर निकालने के लिए ही संत कबीर एक प्रकाश की तरह इस धरती पर प्रकट हुए थे."

कौन थे संत कबीर: जगतगुरु स्वामी रामानंदाचार्य के 12 शिष्यों में से संत कबीर एक थे. कबीर इन सभी में से अलग थे, जिन्होंने गुरु से दीक्षा ली और अपना अलग रास्ता तैयार किया. इसके बाद वह सभी संतो के शिरोमणि के रूप में प्रख्यात हुए. कबीर ने धार्मिक आडंबर पर सीधा प्रहार किया. धर्म की आड़ में होने वाले पाखंड को उजागर किया और लोगों में जागरूकता फैलाई. तब के हिंदू राजा और मुस्लिम धर्मगुरुओं की संत कबीर ने तीखी आलोचना की. कबीर को तब वह पसंद नहीं करते थे. वह जगतगुरु रामानंद के शिष्य थे, इसलिए लोग उनपर सीधा हमला करने से डरते भी थे.

निराकार ईश्वर की उपासना का दिया संदेश :संत कबीर ने निराकार ईश्वर की उपासना का संदेश दिया. वह इस बात के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाते थे कि संत जो कहते हैं, अनुयाई उसे ठीक तरह से समझ नहीं पाते. उसे दूसरे अर्थों में ले लेते हैं. उन्होंने निर्गुण और निराकार ईश्वर के उपासना की बात कही. अपना एक मार्ग बनाया, लेकिन बाद में उनके अनुयायियों ने इसका पंथ बना दिया और अब कबीर को मानने वाले उनकी आराधना करने वाले को कबीरपंथी कहा जाता है. छत्तीसगढ़ में बड़ी तादाद में कबीरपंथी निवास करते हैं. नेता प्रतिपक्ष चरण दास महंत और उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत भी कबीरपंथी हैं. पनिका समाज को कबीरपंथी कहा जाता है.

कुदुरमाल में कबीरपंथ के सदगुरु की मजार: कोरबा का गांव कुदुरमाल जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर है. इसके संबंध में ऐसा माना जाता है कि यह कबीर पंथ के सदगुरु की समाधि स्थल(मजार) है. इसका निर्माण 16वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य हुआ था. छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से इसे राज्य संरक्षित स्मारक का दर्जा भी दिया गया है. कुदुरमाल में छत्तीसगढ़ शाखा के धर्मदास साहेब और वंशगद्दी के नाम से कबीर पंथ की एक महत्वपूर्ण शाखा है. ऐसी मान्यता है कि इस शाखा के संस्थापक मुक्तामणि नाम साहेब थे, जो संत कबीर के शिष्य थे. यहां कबीर आश्रम भी बनाया गया है.

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कोरबा: छत्तीसगढ़ सहित देश भर में संत कबीर की आज जयंती मनाई गई. छत्तीसगढ़ में पनिका समाज को कबीरपंथी कहा जाता है. छत्तीसगढ़ के नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत और उनकी पत्नी सांसद ज्योत्सना महंत भी कबीरपंथी हैं. कबीर पंथ को मानने वाले पूरे छत्तीसगढ़ में बड़ी तादाद में हैं. कोरबा में धूमधाम से संत कबीर का प्रकट उत्सव मनाया गया.

कोरबा में मनाई गई कबीर जयंती: कबीरपंथी मानते हैं कि कबीर इस धरती पर प्रकट हुए थे और एक प्रकाश की तरह इस संसार को रोशन किया. कबीर जयंती का उत्सव कबीरपंथी एक हफ्ते तक मनाते हैं. कोरबा के निहारिका स्थित कबीर आश्रम से लेकर कुदुरमाल और ढोढ़ीपारा तक कबीर जयंती मनाई गई. कबीरपंथ के अनुयायियों ने चौका आरती और सात्विक यज्ञ करके कबीर जयंती मनाई. पूरे दिन भोग भंडारे का दौर जारी रहा.

कबीर पंथ में सबसे ऊपर है गुरु का स्थान: ढोढ़ीपारा में कबीरपंथियों ने कबीर जयंती के मौके पर चौका आरती का आयोजन किया. यहां बड़ी तादाद में अनुयाई पहुंचे थे. कबीरपंथी राजू महंत कहते हैं, "आज का दिन सभी कबीरपंथी भाइयों के लिए बेहद खास होता है. संत कबीर हमारे आराध्य हैं. वह हमारे जगतगुरु हैं. आज भी हम उनके दिखाए हुए मार्ग पर चलते हैं. आज हम विधि विधान से चौका आरती के बाद सात्विक यज्ञ का आयोजन करते हैं. संत कबीर ने हमें निराकार ईश्वर के उपासना का संदेश दिया था. कबीर पंथ में गुरु का स्थान सबसे ऊपर होता है. हम गुरु को ही अपना भगवान मानते हैं. संत कबीर ने भी यही संदेश दिया था कि जगत में राम और कृष्णा से बड़ा कोई नहीं है, लेकिन उन्होंने भी अपने गुरु को नमन किया. इसलिए हम मानते हैं कि गुरु हमारे लिए सबसे ऊपर हैं. कबीर के अनेक दोहे हमें आज भी सांसारिक मोह माया से बाहर निकलने का संदेश देते हैं. मनुष्य इस संसार के मोह माया में फंसा हुआ था और उसे बाहर निकालने के लिए ही संत कबीर एक प्रकाश की तरह इस धरती पर प्रकट हुए थे."

कौन थे संत कबीर: जगतगुरु स्वामी रामानंदाचार्य के 12 शिष्यों में से संत कबीर एक थे. कबीर इन सभी में से अलग थे, जिन्होंने गुरु से दीक्षा ली और अपना अलग रास्ता तैयार किया. इसके बाद वह सभी संतो के शिरोमणि के रूप में प्रख्यात हुए. कबीर ने धार्मिक आडंबर पर सीधा प्रहार किया. धर्म की आड़ में होने वाले पाखंड को उजागर किया और लोगों में जागरूकता फैलाई. तब के हिंदू राजा और मुस्लिम धर्मगुरुओं की संत कबीर ने तीखी आलोचना की. कबीर को तब वह पसंद नहीं करते थे. वह जगतगुरु रामानंद के शिष्य थे, इसलिए लोग उनपर सीधा हमला करने से डरते भी थे.

निराकार ईश्वर की उपासना का दिया संदेश :संत कबीर ने निराकार ईश्वर की उपासना का संदेश दिया. वह इस बात के प्रति लोगों में जागरूकता फैलाते थे कि संत जो कहते हैं, अनुयाई उसे ठीक तरह से समझ नहीं पाते. उसे दूसरे अर्थों में ले लेते हैं. उन्होंने निर्गुण और निराकार ईश्वर के उपासना की बात कही. अपना एक मार्ग बनाया, लेकिन बाद में उनके अनुयायियों ने इसका पंथ बना दिया और अब कबीर को मानने वाले उनकी आराधना करने वाले को कबीरपंथी कहा जाता है. छत्तीसगढ़ में बड़ी तादाद में कबीरपंथी निवास करते हैं. नेता प्रतिपक्ष चरण दास महंत और उनकी पत्नी ज्योत्सना महंत भी कबीरपंथी हैं. पनिका समाज को कबीरपंथी कहा जाता है.

कुदुरमाल में कबीरपंथ के सदगुरु की मजार: कोरबा का गांव कुदुरमाल जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर है. इसके संबंध में ऐसा माना जाता है कि यह कबीर पंथ के सदगुरु की समाधि स्थल(मजार) है. इसका निर्माण 16वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य हुआ था. छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से इसे राज्य संरक्षित स्मारक का दर्जा भी दिया गया है. कुदुरमाल में छत्तीसगढ़ शाखा के धर्मदास साहेब और वंशगद्दी के नाम से कबीर पंथ की एक महत्वपूर्ण शाखा है. ऐसी मान्यता है कि इस शाखा के संस्थापक मुक्तामणि नाम साहेब थे, जो संत कबीर के शिष्य थे. यहां कबीर आश्रम भी बनाया गया है.

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Last Updated : Jun 22, 2024, 6:08 PM IST
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