रांची: झारखंड बनने के बाद पंचायती राज विभाग ने 2010, 2015 और 2022 में असंवैधानिक तरीके से अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत चुनाव कराया है. इसकी आड़ में गैर कानूनी ढंग से भारत सरकार के वित्त आयोग से मिली निधि का भी इस्तेमाल किया जा रहा है. आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने आरोप लगाया है कि पी-पेसा रुल्स को लेकर झारखंड हाईकोर्ट के आदेश की भी अनदेखी की जा रही है.
मंच की ओर से प्रस्तुत आपत्ति और सुझाव पर विचार करते हुए तीन निवेदन के बाद भी तर्कपूर्ण आदेश उपलब्ध नहीं कराया गया है. साथ ही मीडिया को गलत सूचना देकर अनुसूचित क्षेत्र के निवासियों को दिग्भ्रमित और गुमराह किया जा रहा है. लिहाजा, झारखंड के राज्यपाल और सीएजी से पूरे मामले की जांच कराने का आग्रह किया गया है.
कोर्ट को किया जा रहा है गुमराह
आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के राष्ट्रीय संयोजक विक्टर मालटो ने मीडिया को बताया कि संसदीय अधिनियम पी-पेसा, 1996 के तहत नियमावली बनाने के लिए झारखंड हाईकोर्ट में याचिका संख्या WP(PIL) 1589/2021 दाखिल किया गया है, जिसपर सुनवाई भी चल रही है. इसमें पंचायती राज विभाग, झारखंड द्वारा प्रकाशित प्रारुप नियमावली 2022 की संवैधानिकता को अनुसूचित क्षेत्रों के लिए चुनौती दी गई है.
मंच का कहना है कि पंचायती राज विभाग ने 26 जुलाई 2023 को आपत्ति और सुझाव मांगा था. हाईकोर्ट के आदेशानुसार आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने पंचायती राज विभाग द्वारा तैयार प्रारुप नियमावली को संसदीय अधिनियम की धारा 3, 4, 4(d), 4 (o), 4(m), 5 और अनुच्छेद 243 (ZC) के तहत असंगत है. इसे खारिज करते हुए हाईकोर्ट को अवगत कराया गया है.
संसद ने शिड्यूल एरिया के लिए बनाया था कानून
मंच की दलील है कि संविधान के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों (शिड्यूल एरिया) में अनुसूचित जानजातियों की भाषा, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, आर्थिक विकास की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए संसद ने शिड्यूल एरिया में प्रशासन और नियंत्र के लिए पी-पेसा नाम से विशेष अधिनियम को साल 1996 में ही पारित किया था. जिसपर 24 दिसंबर 1996 राष्ट्रपति की सहमति भी मिल चुकी है.
शिड्यूल एरिया का विकास हो रहा है प्रभावित
मंच के मुताबिक पी-पेसा, 1996 में कुल 23 प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों पर अपवादों और उपांतरणों के तहत विस्तार किया गया है. धारा 4 में स्पष्ट किया गया है कि इन 23 प्रावधानों के विपरित राज्य विधायिका कोई भी कानून नहीं बनाएगी. धार 4 (ओ) और धारा 4 (एम) के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में जिले के स्तर पर स्वशासी जिला परिषद और निचले स्तर पर पारंपरिक आदिवासी ग्राम सभा की स्थापना का आदेश है, जिन्हें कुल 7 शक्तियां प्राप्त हैं. इसके तहत जनजातियों को जल, जंगल, जमीन, जनजातीय उपयोजना और डीएमएफटी निधि का लाभ मिलना है.
गौर करने वाली बात यह है कि संसद ने आजतक अनुच्छेद 243 (ZC)(3) के तहत नगरपालिकाओं के प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तारित नहीं किया है. लिहाजा, झारखंड के कुल 15 अनुसूचित क्षेत्रों में नगर निगम, नगर पंचायत, नगर परिषद, वार्ड जैसे सभी ईकाईयां असंवैधानिक रुप से कार्य कर रही है. इससे सीएनटी एक्ट, एसपीटी एक्ट और विलकिंसन रूल्स का भी उल्लंघन कर आदिवासियों की जमीन छीनी जा रही है. फिर भी महाधिवक्ता चुप हैं.
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