सरगुजा: हर साल 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस मनाया जाता है. भारत में पंचायतों की अवधारणा बेहद पुरानी है, लेकिन आजाद भारत में राज्य और केंद्र सरकार की ओर से शुरू हुए नीति निर्धारण और हस्तक्षेप के बाद स्थिति बदल गई. पंचायतों के पास कुछ खास शक्तियां नहीं थी, लेकिन पंचायती राज अधिनियम के लागू होने और इसमें हुए संसोधन के बाद पंचायतों का स्वरूप बढ़ा और ग्राम पंचायत एक स्वतंत्र सरकार के रूप में सामने आई. अपने गांव के लिए नीति निर्धारण सहित प्रस्ताव देकर किसी भी संस्था से वित्तीय सहायता लेकर विकास करने का अधिकार पंचायतों को मिल गया है.
राम राज से चली आ रही ये परम्परा: इस बारे में ईटीवी भारत ने ग्राम पंचायतों में काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता राजेश सिंह सिसोदिया कहते हैं, "ये त्रिस्तरीय व्यवस्था है. ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत और जिला पंचायत. इनका एक ही उद्देश्य होता है, गांव का विकास.
"महात्मा गांधी जी की जो परिकल्पना थी अपना गांव अपना राज, इसको मूर्त रूप राजीव गांधी ने दिया. उनकी सरकार ने संविधान में 73वां संशोधन किया और पंचायती राज अधिनियम देश को दिया. इसकी मूल भावना है विकास के साथ बेहतरी, लोगों की आजादी, पंचायती राज व्यवस्था राम राज के काल से हमारे देश में है.": राजेश सिंह सिसोदिया, सामाजिक कार्यकर्ता
आपस के झगड़े पंचायत में सुलझाए जाते हैं: राजेश सिंह सिसोदिया ने आगे कहा कि, "वर्तमान परिदृश्य में पंचायत का दो काम है. एक तो ये ज्यूडिशियल काम भी करते हैं. आपस के झगड़े पंचायत में बैठ कर सुलझाते हैं. दूसरा काम है योजना और प्रस्ताव बनाना. ब्यूरोक्रेसी आज प्रस्ताव बना रही है. ये लोग वर्षों से बनाते आ रहे हैं. ग्राम पंचायतों से बड़ी एपेक्स बॉडी होती है ग्राम सभा. हर 3 महीने में ग्राम सभा कार्ययोजना बनाती है. उस पर ग्राम पंचायत काम करती है. ग्राम सभा के बिना ग्राम पंचायत सम्पूर्ण संस्था नहीं है. इन प्रस्तावों को जनपद पंचायत, जिला पंचायत से लेकर राज्य और केंद्र सरकार को भेज सकती है. यहां तक कि ग्राम पंचायत अपने प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ को भी भेज सकती है. ये निर्भर करता है कि पंचायत के प्रतिनिधि का बौद्धिक स्तर क्या है? राजस्थान में एक युवती पंचायत में एमबीए करके आई. उसने अपने प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ में भी भेजे. संयुक्त राष्ट्र संघ ने कुछ प्रस्ताव को माना भी."
पंचायती राज को पुनर्जीवित करने की जरूरत: राजेश सिंह सिसोदिया ने बताया कि, "एक स्वतंत्र सरकार का पूरा अधिकार पंचायतों को है. राजनीति से हटके बात करूं तो दिग्विजय सिंह का जब शासन काल था, तो उन्होंने इस व्यवस्था को सींचा था. जिला पंचायत अध्यक्ष को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देना, उपाध्यक्ष को राज्य मंत्री का दर्जा देना, जिला पंचायत सदस्यों को भी ये अहसास दिलाना कि वो छोटे विधायक हैं. ये प्रक्रिया बाद में धीरे-धीरे लुप्त हो रही है. इसको फिर से पुनर्जीवित करने की जरूरत है. या फिर कोई ऐसी सरकार आए कि पंचायती राज को ही इकाई मानकर विकास के स्रोत से इसे सींचे.
"एक तरफ एस्टेब्लिशमेंट होता है मतलब ब्यूरोक्रेसी से है और एक तरफ लोग हैं. दोनों के बीच में द्वंद होना स्वाभाविक है, क्योंकि लोगों की इच्छा असीमित होती है. एस्टेब्लिशमेंट के पास संसाधन सीमित होते हैं और भ्रष्टाचार भी एक बड़ा कारण है. सच तो ये है कि ग्राम पंचायत और ग्राम सभाओं से पूछना चाहिए की उनकी जरूरत क्या है? उनकी जरुरतों के हिसाब से उनको संसाधन दिए जाएं ना कि एयरकंडीशनर कमरों में बैठकर आप गांव के लिए योजना बना रहे हैं.": राजेश सिंह सिसोदिया, सामाजिक कार्यकर्ता
देश के सामने मॉडल बना था मध्यप्रदेश: राजेश सिंह ने आगे बताया कि, "आप ये देखिए कि सामाजिक स्वीकारोक्ति है या नहीं क्योंकि योजना जो नीचे से ऊपर की ओर जाती है. जो महात्मा गांधी का सपना था. दिग्विजय सिंह ने जो काम शुरू किया था. इसी वजह से मध्यप्रदेश देश के सामने एक मॉडल बना था. दिग्विजय सिंह बोला करते थे कि स्थानीय गवर्नेंस के सामने वो भी के आम आदमी हैं. बावजूद इसके कि वो सीएम थे, तो ऐसी भावना जब हमारे उच्च पदों पर बैठे लोगों के अंदर आएगी. उस दिन पंचायती राज का सपना साकार होगा."
दरअसल, पांचायती राज दिवस मनाने का लक्ष्य यह है कि आज के सियासत में भी पंचायती राज को नींव मानकर उस पर अमल करने की शुरुआत हो सके.