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पद्मश्री डॉ. केके मोहम्मद बोले, मुसलमानों को ज्ञानवापी और कृष्ण जन्मभूमि पर दावा छोड़ देना चाहिए - Gyanvapi Krishna Janmabhoomi

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 3 hours ago

डॉ. केके मोहम्मद गोरखपुर में इतिहास अनुसंधान परिषद द्वारा आयोजित एक सेमिनार में भाग लेने के लिए आए हुए थे. इस दौरान उन्होंने ईटीवी भारत से तमाम मुद्दों पर खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि राम मंदिर पर ASI की तरफ से उन्होंने जो काम किया था, वह तत्कालीन DG, ASI प्रोफेसर बीबी लाल के अधीन किया था. राम मंदिर पर दिए बयान के बाद उनके ऊपर खतरे भी बहुत थे. 3 साल वह पुलिस प्रोटेक्शन में रहे.

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पद्मश्री डॉ. केके मोहम्मद. (Photo Credit; ETV Bharat)

गोरखपुर: वर्ष 1990 में आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के अधिकारी रहते अयोध्या के विवादित ढांचे के नीचे मंदिर का अवशेष खुले तौर पर बताने वाले पद्मश्री डॉ केके मोहम्मद ने कहा कि देश के अंदर अयोध्या के राम मंदिर, मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि और काशी की ज्ञानवापी मस्जिद पर पूरी तरह से हिंदुओं का अधिकार है. इसके पुख्ता प्रमाण आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के पास मौजूद हैं. इसलिए मुसलमानों को इस पर से अपना दावा छोड़ देना चाहिए.

साथ ही देश में अमन-चैन कायम रखने के लिए हिंदुओं को भी चाहिए कि इन तीन प्रमुख धर्म स्थलों के अलावा, अन्य मंदिरों को लेकर कोई मांग और विवाद न पैदा करें. इन तीन धर्मस्थलों को किसी अन्य जगह तोड़कर नहीं बसाया जा सकता. जैसे मक्का-मदीना की मस्जिद नहीं बनाई जा सकती. इसलिए विवाद को खत्म करने के लिए दोनों समुदाय को पहला करनी चाहिए.

पद्मश्री डॉ. केके मोहम्मद से संवाददाता की खास बातचीत. (Video Credit; ETV Bharat)

उन्होंने कहा कि अपने पूरे सेवा कॉल में उन्होंने प्रमुख मंदिरों का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया. उसकी रिपोर्ट तैयार की तो इसके अलावा आगरा की मस्जिद हो या फतेहपुर सीकरी, दिल्ली के अंदर मौजूद इस्लामी मॉन्यूमेंट्स, इन सभी का उन्होंने पूरी गहराई के साथ अध्ययन किया है. इसमें पाया कि, मुगल जब भारत में आए तो बहुत सारे मंदिर तोड़े गए. अगर किसी को शक है तो वह कुतुब मीनार के बगल में जाकर इसका आज भी प्रमाण देख सकते हैं.

लेकिन आज के मुसलमान उसके लिए जिम्मेदार नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि जब आज के मुसलमान मुगलकाल की घटनाओं को प्रमाणित और प्रामाणिक करने की कोशिश करते हैं तो यह उन्हें अच्छा नहीं लगता. मैंने पुरातात्विक सर्वेक्षण में मंदिरों पर काम करके यह पाया कि मंदिर हिंदुओं की विरासत है. वह उन्हें मिलनी चाहिए. मै इसकी खोज में सफल रहा और उसका प्रमाण भी दे रहा हूं. इससे मैं मुगलों के द्वारा किए गए बुरे बर्ताव का भी प्रायश्चित कर रहा हूं.

डॉ. मोहम्मद गोरखपुर में इतिहास अनुसंधान परिषद द्वारा आयोजित एक सेमिनार में भाग लेने के लिए आए हुए थे. इस दौरान उन्होंने ईटीवी भारत से तमाम मुद्दों पर खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि राम मंदिर पर ASI की तरफ से उन्होंने जो काम किया था, वह तत्कालीन DG, ASI प्रोफेसर बीबी लाल के अधीन किया था. राम मंदिर पर दिए बयान के बाद उनके ऊपर खतरे भी बहुत थे. 3 साल वह पुलिस प्रोटेक्शन में रहे.

फिर भी वह आगे की मिली हुई जिम्मेदारियां से डरे नहीं. वह जीवन में जो सबसे बड़ा अभियान मंदिरों कि भविष्य को तलाशने और संवारने का कर रहे हैं, वह मध्य प्रदेश का मुरैना जिला है, जहां पर बटेश्वर में भूकंप की वजह से, जमींदोज हुए करीब 200 मंदिरों में उन्होंने 80 मंदिर का जीर्णोद्धार करा दिया है. इस काम में उन्होंने वहां के विख्यात डकैत निर्भय सिंह गुर्जर के साथ मिलकर काम किया था.

वह डकैत भी मंदिरों के पुनर्धार से बेहद प्रसन्न और मदद करता था. रिटायर होने के बाद भी वह इस कार्य में लगे हैं, जिसमें फंड की कमी को इंफोसिस के अध्यक्ष की पत्नी सुधा मूर्ति पूरा कर रहीं है. उन्होंने 4 करोड़ रुपए इसके लिए दिए हैं.

डॉ. मोहम्मद ने बताया कि पद्मश्री अवार्ड जब उन्हें वर्ष 2019 में मिला तो इस पर भी सवाल हुआ कि इन्होंने राम मंदिर पर अपनी प्रक्रिया दी थी, सरकार ने उसी का इन्हें तोहफा दिया है. लेकिन, मैं मानता हूं कि वह मुरैना में जो 80 मंदिरों का उद्धार कर पाएं हैं, शायद पद्मश्री अवार्ड का वह सबसे बड़ा माध्यम है.

डॉ. मोहम्मद वर्तमान और भूतकाल की राजनीति और सरकारों पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते, लेकिन फिर भी उन्होंने कहा कि मौजूदा भाजपा की सरकार जो गौरवशाली इतिहास को प्रदर्शित करने, दर्शाने की बात करती है, उसके 10 साल के कार्यकाल में आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की स्थिति बहुत खराब है.

वजह चाहे जो भी हो चाहे इसके लिए किसी शक्तिशाली और समझदार मंत्री का अभाव हो या जो कुछ भी लेकिन, ASI अपने कार्यों को बहुत ढंग से आगे नहीं बढ़ा पा रहा है. उन्होंने कहा कि इसका जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक जो वर्ष 2022 में उन्होंने लिखी,"एन इंडियन आयाम" में खुलकर उल्लेख किया है. यह कई भाषा में प्रकाशित भी हुई है.

उन्होंने कहा कि पटना रीजन में नौकरी के दौरान वह गोरखपुर, कुशीनगर क्षेत्र में आते थे तो, उनकी इच्छा गीता प्रेस भ्रमण की होती थी लेकिन वह कर नहीं पाए थे. लेकिन एक बार फिर जब वह आज गोरखपुर पहुंचे हैं तो गीता प्रेस का भ्रमण कर वह अपने आप को धन्य महसूस किए हैं. उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा प्रेस और संस्थान है जिसने हिंदू पुनर्धार में अहम योगदान दिया है.

एक ऐसी संस्था जो बिना किसी डोनेशन के चलती हो और एक राष्ट्रव्यापी अभियान को निरंतर 100 वर्षों से आगे बढ़ा रही है, उसका कोई जवाब ही नहीं. उन्होंने कहा कि राम मंदिर के निर्माण के बाद उनका पहली बार अयोध्या जाना भी 26 सितंबर को होगा. लेकिन, इसके पहले उन्होंने कुशीनगर का निरीक्षण किया है और यह पाया है कि कुशीनगर के अस्तित्व को बचाने और भविष्य को संवारने की बहुत जरूरत है.

जल भराव वाला क्षेत्र होने की वजह से उसका अस्तित्व खतरे में है. अगर उसे आगे सैकड़ों वर्षों तक इसी रूप में रहने देना है तो प्रदेश और केंद्र की सरकार को मिलकर उसे जल भराव के संकट से मुक्त करने के उपाय पर काम करना होगा.

ये भी पढ़ेंः सीएम योगी का ऐलान, यूपी की नई खेल राजधानी बनेगा बाराबंकी, इंडस्ट्रियल कॉरीडोर होगा डेवलप

गोरखपुर: वर्ष 1990 में आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के अधिकारी रहते अयोध्या के विवादित ढांचे के नीचे मंदिर का अवशेष खुले तौर पर बताने वाले पद्मश्री डॉ केके मोहम्मद ने कहा कि देश के अंदर अयोध्या के राम मंदिर, मथुरा में श्री कृष्ण जन्मभूमि और काशी की ज्ञानवापी मस्जिद पर पूरी तरह से हिंदुओं का अधिकार है. इसके पुख्ता प्रमाण आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के पास मौजूद हैं. इसलिए मुसलमानों को इस पर से अपना दावा छोड़ देना चाहिए.

साथ ही देश में अमन-चैन कायम रखने के लिए हिंदुओं को भी चाहिए कि इन तीन प्रमुख धर्म स्थलों के अलावा, अन्य मंदिरों को लेकर कोई मांग और विवाद न पैदा करें. इन तीन धर्मस्थलों को किसी अन्य जगह तोड़कर नहीं बसाया जा सकता. जैसे मक्का-मदीना की मस्जिद नहीं बनाई जा सकती. इसलिए विवाद को खत्म करने के लिए दोनों समुदाय को पहला करनी चाहिए.

पद्मश्री डॉ. केके मोहम्मद से संवाददाता की खास बातचीत. (Video Credit; ETV Bharat)

उन्होंने कहा कि अपने पूरे सेवा कॉल में उन्होंने प्रमुख मंदिरों का पुरातात्विक सर्वेक्षण किया. उसकी रिपोर्ट तैयार की तो इसके अलावा आगरा की मस्जिद हो या फतेहपुर सीकरी, दिल्ली के अंदर मौजूद इस्लामी मॉन्यूमेंट्स, इन सभी का उन्होंने पूरी गहराई के साथ अध्ययन किया है. इसमें पाया कि, मुगल जब भारत में आए तो बहुत सारे मंदिर तोड़े गए. अगर किसी को शक है तो वह कुतुब मीनार के बगल में जाकर इसका आज भी प्रमाण देख सकते हैं.

लेकिन आज के मुसलमान उसके लिए जिम्मेदार नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि जब आज के मुसलमान मुगलकाल की घटनाओं को प्रमाणित और प्रामाणिक करने की कोशिश करते हैं तो यह उन्हें अच्छा नहीं लगता. मैंने पुरातात्विक सर्वेक्षण में मंदिरों पर काम करके यह पाया कि मंदिर हिंदुओं की विरासत है. वह उन्हें मिलनी चाहिए. मै इसकी खोज में सफल रहा और उसका प्रमाण भी दे रहा हूं. इससे मैं मुगलों के द्वारा किए गए बुरे बर्ताव का भी प्रायश्चित कर रहा हूं.

डॉ. मोहम्मद गोरखपुर में इतिहास अनुसंधान परिषद द्वारा आयोजित एक सेमिनार में भाग लेने के लिए आए हुए थे. इस दौरान उन्होंने ईटीवी भारत से तमाम मुद्दों पर खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि राम मंदिर पर ASI की तरफ से उन्होंने जो काम किया था, वह तत्कालीन DG, ASI प्रोफेसर बीबी लाल के अधीन किया था. राम मंदिर पर दिए बयान के बाद उनके ऊपर खतरे भी बहुत थे. 3 साल वह पुलिस प्रोटेक्शन में रहे.

फिर भी वह आगे की मिली हुई जिम्मेदारियां से डरे नहीं. वह जीवन में जो सबसे बड़ा अभियान मंदिरों कि भविष्य को तलाशने और संवारने का कर रहे हैं, वह मध्य प्रदेश का मुरैना जिला है, जहां पर बटेश्वर में भूकंप की वजह से, जमींदोज हुए करीब 200 मंदिरों में उन्होंने 80 मंदिर का जीर्णोद्धार करा दिया है. इस काम में उन्होंने वहां के विख्यात डकैत निर्भय सिंह गुर्जर के साथ मिलकर काम किया था.

वह डकैत भी मंदिरों के पुनर्धार से बेहद प्रसन्न और मदद करता था. रिटायर होने के बाद भी वह इस कार्य में लगे हैं, जिसमें फंड की कमी को इंफोसिस के अध्यक्ष की पत्नी सुधा मूर्ति पूरा कर रहीं है. उन्होंने 4 करोड़ रुपए इसके लिए दिए हैं.

डॉ. मोहम्मद ने बताया कि पद्मश्री अवार्ड जब उन्हें वर्ष 2019 में मिला तो इस पर भी सवाल हुआ कि इन्होंने राम मंदिर पर अपनी प्रक्रिया दी थी, सरकार ने उसी का इन्हें तोहफा दिया है. लेकिन, मैं मानता हूं कि वह मुरैना में जो 80 मंदिरों का उद्धार कर पाएं हैं, शायद पद्मश्री अवार्ड का वह सबसे बड़ा माध्यम है.

डॉ. मोहम्मद वर्तमान और भूतकाल की राजनीति और सरकारों पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते, लेकिन फिर भी उन्होंने कहा कि मौजूदा भाजपा की सरकार जो गौरवशाली इतिहास को प्रदर्शित करने, दर्शाने की बात करती है, उसके 10 साल के कार्यकाल में आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया की स्थिति बहुत खराब है.

वजह चाहे जो भी हो चाहे इसके लिए किसी शक्तिशाली और समझदार मंत्री का अभाव हो या जो कुछ भी लेकिन, ASI अपने कार्यों को बहुत ढंग से आगे नहीं बढ़ा पा रहा है. उन्होंने कहा कि इसका जिक्र उन्होंने अपनी पुस्तक जो वर्ष 2022 में उन्होंने लिखी,"एन इंडियन आयाम" में खुलकर उल्लेख किया है. यह कई भाषा में प्रकाशित भी हुई है.

उन्होंने कहा कि पटना रीजन में नौकरी के दौरान वह गोरखपुर, कुशीनगर क्षेत्र में आते थे तो, उनकी इच्छा गीता प्रेस भ्रमण की होती थी लेकिन वह कर नहीं पाए थे. लेकिन एक बार फिर जब वह आज गोरखपुर पहुंचे हैं तो गीता प्रेस का भ्रमण कर वह अपने आप को धन्य महसूस किए हैं. उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा प्रेस और संस्थान है जिसने हिंदू पुनर्धार में अहम योगदान दिया है.

एक ऐसी संस्था जो बिना किसी डोनेशन के चलती हो और एक राष्ट्रव्यापी अभियान को निरंतर 100 वर्षों से आगे बढ़ा रही है, उसका कोई जवाब ही नहीं. उन्होंने कहा कि राम मंदिर के निर्माण के बाद उनका पहली बार अयोध्या जाना भी 26 सितंबर को होगा. लेकिन, इसके पहले उन्होंने कुशीनगर का निरीक्षण किया है और यह पाया है कि कुशीनगर के अस्तित्व को बचाने और भविष्य को संवारने की बहुत जरूरत है.

जल भराव वाला क्षेत्र होने की वजह से उसका अस्तित्व खतरे में है. अगर उसे आगे सैकड़ों वर्षों तक इसी रूप में रहने देना है तो प्रदेश और केंद्र की सरकार को मिलकर उसे जल भराव के संकट से मुक्त करने के उपाय पर काम करना होगा.

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