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लखनऊ में बेगम अख्तर ने शारदा सिन्हा की आवाज की तारीफ की थी, पहला गीत रिकार्ड हुआ

शारदा सिन्हा की लखनऊ से कुछ यादें जुड़ी हुई है. यहां उन्होंने अपना पहला गीत रिकॉर्ड किया था.

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पद्मश्री शारदा सिन्हा (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : 2 hours ago

लखनऊ: मैथिली और भोजपुरी गीत के साथ छठ पूजा के गीत से हर दिल में अपनी जगह बनाने वाली पद्मश्री शारदा सिन्हा की मधुर आवाज बीते मंगलवार को छठ पूजा पहले दिन हमेशा के लिए मौन हो गई. शारदा सिन्हा का लखनऊ से खास रिश्ता था. वर्ष 2022 में उनको लखनऊ में देशज कार्यक्रम में लोकनिर्मला सम्मान से सम्मानित किय गया था. उन्होंने इस दौरान न सिर्फ कई गीत सुनाए थे, बल्कि लखनऊ से अपने जुड़ाव के बारें में भी कई किस्से बताए थे. उन्होंने बताया था कि लखनऊ ने उनको सबसे बड़ा तोहफा 1971 में तब दिया था, जब वो लखनऊ में ऑडिशन के लिए आई थीं.

उन्होंने स्वयं बताया था, कि उनकी मुलाकात उस समय बेगम अख्तर से हुई थी. बेगम ने उनसे कहा था कि तुम्हारी आवाज बहुत अच्छी है, अगर रियाज करोगी तो बहुत आगे जाओगी. शारदा ने तब कहा था कि उस मुलाकात ने प्रेरणा दी थी. उसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. साथ ही बताया था कि बलिंग्टन होटल के 11 नंबर कमरे में स्थित स्टूडियो में उनकी पहली रिकॉर्डिंग हुई थी. गीत के बोल 'द्वार के छेकाई नेग...' थे.

इसे भी पढ़े-शारदा सिन्हा के निधन पर सीएम योगी ने जताया दुःख, बोले- संगीत जगत के लिए अपूरणीय क्षति

मालिनी अवस्थी ने कहा, 'एक सदी का हुआ अंत' : मालिनी अवस्थी ने कहा कि ऐसा लगता है, कि छठ हमेशा के लिए सूना हो गया. उनके स्वास्थ्य के बारे में जब से सुना था बेचैनी थी. हम लोगों के लिए वह साक्षात सरस्वती थीं. जैसा कंठ था वैसा मिजाज भी. मेरा सौभाग्य रहा, कि मुझे बहुत मानती थीं. ऐसे कलाकार सदी में एक बार होते हैं. बिहार में ऐसे समय में संगीत की परम्परा को पकड़ा जब स्त्रियों के लिए बाहर आना, गीत गाना कठिन था. गरिमा, मर्यादा, मातृत्व संस्कृति...सब कुछ मिला दें तो शारदा दीदी हैं. मालिनी अवस्थी ने कहा कि कितनी यादें हैं जो उनसे जुड़ी हुई हैं. वह एक बड़ी कलाकार थीं लेकिन जरा सा भी अहंकार नहीं था. छोटे कलाकारों को सदैव प्रोत्साहित करती थीं. मुझे ऐसा लगता है कि ईश्वर ने उनको जल्दी बुला लिया. लेकिन, जो हरि इच्छा उसके आगे किसी की नहीं चलती.

लखनऊ महोत्सव में दी थी प्रस्तुति: युगांतर सिंदूर गजल गायक उस्ताद युगांतर सिंदूर ने बताया कि उस दौर में शारदा सिन्हा कि लखनऊ महोत्सव व जिन दिनों लक्ष्मण मेला सिन्हा की प्रस्तुति हुई थी, तब उनसे मुलाकात हुई थी. मुझे आज भी याद है कि उनकी बोली में इतनी मिठास थी कि मैं उनका मुरीद हो गया था. उनकी गायकी लाजवाब थी.

उनके जाने से महापर्व अधूरा: हारमोनियम वादक पं. धर्मनाथ मिश्र ने शोक व्यक्त करते गायिका थीं. उससे कहीं ज्यादा सहज हुए कहा, कि शारदा सिन्हा जितनी बेहतरीन और सरल व्यक्तित्व की धनी थीं. छठ पर्व के दौरान उनका जाना इस महापर्व को अधूरा कर गया है.

यह भी पढ़े-VIDEO : बनारस के घाटों पर गूंज रहे छठ के लोकगीत, कांच ही बांस के बहंगिया...देखें वीडियो

लखनऊ: मैथिली और भोजपुरी गीत के साथ छठ पूजा के गीत से हर दिल में अपनी जगह बनाने वाली पद्मश्री शारदा सिन्हा की मधुर आवाज बीते मंगलवार को छठ पूजा पहले दिन हमेशा के लिए मौन हो गई. शारदा सिन्हा का लखनऊ से खास रिश्ता था. वर्ष 2022 में उनको लखनऊ में देशज कार्यक्रम में लोकनिर्मला सम्मान से सम्मानित किय गया था. उन्होंने इस दौरान न सिर्फ कई गीत सुनाए थे, बल्कि लखनऊ से अपने जुड़ाव के बारें में भी कई किस्से बताए थे. उन्होंने बताया था कि लखनऊ ने उनको सबसे बड़ा तोहफा 1971 में तब दिया था, जब वो लखनऊ में ऑडिशन के लिए आई थीं.

उन्होंने स्वयं बताया था, कि उनकी मुलाकात उस समय बेगम अख्तर से हुई थी. बेगम ने उनसे कहा था कि तुम्हारी आवाज बहुत अच्छी है, अगर रियाज करोगी तो बहुत आगे जाओगी. शारदा ने तब कहा था कि उस मुलाकात ने प्रेरणा दी थी. उसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. साथ ही बताया था कि बलिंग्टन होटल के 11 नंबर कमरे में स्थित स्टूडियो में उनकी पहली रिकॉर्डिंग हुई थी. गीत के बोल 'द्वार के छेकाई नेग...' थे.

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मालिनी अवस्थी ने कहा, 'एक सदी का हुआ अंत' : मालिनी अवस्थी ने कहा कि ऐसा लगता है, कि छठ हमेशा के लिए सूना हो गया. उनके स्वास्थ्य के बारे में जब से सुना था बेचैनी थी. हम लोगों के लिए वह साक्षात सरस्वती थीं. जैसा कंठ था वैसा मिजाज भी. मेरा सौभाग्य रहा, कि मुझे बहुत मानती थीं. ऐसे कलाकार सदी में एक बार होते हैं. बिहार में ऐसे समय में संगीत की परम्परा को पकड़ा जब स्त्रियों के लिए बाहर आना, गीत गाना कठिन था. गरिमा, मर्यादा, मातृत्व संस्कृति...सब कुछ मिला दें तो शारदा दीदी हैं. मालिनी अवस्थी ने कहा कि कितनी यादें हैं जो उनसे जुड़ी हुई हैं. वह एक बड़ी कलाकार थीं लेकिन जरा सा भी अहंकार नहीं था. छोटे कलाकारों को सदैव प्रोत्साहित करती थीं. मुझे ऐसा लगता है कि ईश्वर ने उनको जल्दी बुला लिया. लेकिन, जो हरि इच्छा उसके आगे किसी की नहीं चलती.

लखनऊ महोत्सव में दी थी प्रस्तुति: युगांतर सिंदूर गजल गायक उस्ताद युगांतर सिंदूर ने बताया कि उस दौर में शारदा सिन्हा कि लखनऊ महोत्सव व जिन दिनों लक्ष्मण मेला सिन्हा की प्रस्तुति हुई थी, तब उनसे मुलाकात हुई थी. मुझे आज भी याद है कि उनकी बोली में इतनी मिठास थी कि मैं उनका मुरीद हो गया था. उनकी गायकी लाजवाब थी.

उनके जाने से महापर्व अधूरा: हारमोनियम वादक पं. धर्मनाथ मिश्र ने शोक व्यक्त करते गायिका थीं. उससे कहीं ज्यादा सहज हुए कहा, कि शारदा सिन्हा जितनी बेहतरीन और सरल व्यक्तित्व की धनी थीं. छठ पर्व के दौरान उनका जाना इस महापर्व को अधूरा कर गया है.

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