निवाड़ी: रामराजा की प्रसिद्ध नगरी ओरक्षा को बुंदेलखंड की अयोध्या भी कहा जाता है. यहां एक लक्ष्मी मंदिर स्थित है जिसमें पिछले 41 सालों से कोई मूर्ति नहीं है. इसके बावजूद दीपावली पर यहां दिया जलाने के लिए भक्तों की भीड़ लगती है. 17वीं सदी में बना यह मंदिर अपनी अद्भुत कलाकृति की वजह से श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है.
भगवान राम की राजा की तरह की जाती है पूजा
कभी बुंदेलखंड राज्य की राजधानी रही ओरछा रियासत आज मध्य प्रदेश के सबसे छोटे जिले निवाड़ी की तहसील है. यहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है. जामुनी और बेतवा नदी के किनारे बसा यह ऐतिहासिक नगर अपने अंदर कई सांस्कृतिक धरोहरों को संजोए हुए है, जिसे देखने के लिए देश के ही नहीं बल्कि विदेशों से भी सैलानी आते हैं. ओरछा में स्थित रामराजा मंदिर, जहांगीर महल, राजा महल, राय परवीन महल, चतुर्भुज मंदिर, लक्ष्मी मंदिर खास हैं.
लक्ष्मी मंदिर में 41 साल से नहीं है मूर्ति
इसमें 17वीं सदी की शुरुआत में बना लक्ष्मी मंदिर अपने आप में खास है. इसको 1622 ईस्वी में वीर सिंह देव ने बनवाया था. यह ओरछा के पश्चिम में एक पहाड़ी पर स्थित है. लेकिन यह पिछले 41 सालों से मूर्ति विहीन है. दरअसल, 1983 में मंदिर की मूर्तियां चोरी हो गई थीं, तभी से इस मंदिर का गर्भगृह का सिंहासन सूना पड़ा है. इस मंदिर की सबसे खास बात इसमें बनी कलाकृतियां हैं. यहां 17वीं और 19वीं शताब्दी के चित्र बने हुए हैं. चित्रों के चटकीले रंग इतने जीवंत लगते हैं, जैसे वह हाल ही में बने हों. इसके अलावा रामायण, महाभारत और भगवान कृष्ण की आकृतियां बनी हैं.
उल्लू की चोंच की आकार का है मंदिर
बुंदेलखंड सहित पूरे देश में यह इकलौता मंदिर है जिसका निर्माण तत्कालीन विद्वानों द्वारा श्रीयंत्र के आकार में उल्लू की चोंच को दर्शाते हुए किया गया है. मान्यता है कि, दीपावली के दिन इस सिद्ध मंदिर में दीपक जलाकर मां लक्ष्मी की पूजा करने से वह प्रसन्न होती हैं. कहा जाता है कि, 1622 में राजा वीर सिंह देव ने ओरछा में कई ऐतिहासिक इमारतों के साथ इस मंदिर का निर्माण तत्कालीन विद्वानों के द्वारा श्री यंत्र के आकार में उल्लू की चोंच को दर्शाते हुए तांत्रिक विधि से कराया था.
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देश विदेश से पहुंचते हैं श्रद्धालु
धन की देवी माता लक्ष्मी को समर्पित इस मंदिर में प्रतिमा न होने के बावजूद भी यहां पूजा की जाती है. हर साल श्रद्धालु मंदिर की चौखट पर माथा टेककर बिना मां लक्ष्मी के दर्शन किए वापस लौट जाते हैं. धनतेरस से दीपावली तक हजारों की संख्या में देश-विदेश से लोग यहां पहुंचते हैं. ऐसी मान्यता है की दीपावली की रात मंदिर व परिसर में दीपक जलाने करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती है.