बीकानेर. गुप्त नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा होती है. मान्यता है कि पूजा के सफल होने पर साधक को संयम और इंद्रियों पर विजय प्राप्त होती है. मां ब्रह्मचारिणी की पूजा उपासना के लिए साधक को कठोर तपस्या करनी पड़ती है. इस कठोर तपस्या से माता को प्रसन्न करते हुए साधक एक तपस्वी बन जाता है और तपस्वी में होने वाले सभी गुण के अनुरूप बल, सदाचार, संयम, संकल्प, त्याग और धैर्य की वृद्धि होती है. पूजा आराधना से मंत्र सिद्धि करते हुए साधक खुद पर विजय पाने में सफल होता है और लोभ, क्रोध, वासना, अहंकार पर नियंत्रण करने में सक्षम हो जाता है.
'स्वाधिष्ठान 'चक्र : मां दुर्गा के स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्र के दूसरे दिन की जाती है.इस दिन साधक का मन 'स्वाधिष्ठान 'चक्र में शिथिल होता है. इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है. नवरात्रि में 'या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम' मंत्र का जाप करना चाहिए.
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मालपुआ और पायस का भोग : वैसे तो 9 दिन की पूजा आराधना पूरे विधि विधान से की जाती है. इस दौरान साधक माता की आराधना करते हुए जाप करता है. पूजा आराधना में लगने वाले भोग में गुप्त नवरात्र के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को सभी प्रकार के नैवेद्य अर्पित किए जाते हैं, लेकिन कहा गया है कि माता ब्रह्मचारिणी को पायस यानी खीर और मालपुआ का भोग लगाने से माता ब्रह्मचारिणी जल्दी प्रसन्न होती है.पुष्प में कनेरी के पुष्प अर्पित करना चाहिए.