कुल्लू: हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाके जहां अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए देश दुनिया में विख्यात है. वहीं, यहां की देव संस्कृति भी सबसे अनूठी है. ग्रामीण क्षेत्रों में देवी देवताओं के प्रति इतनी आस्था है कि वो अपनी खुशियों और अन्य समारोह में देवी देवताओं को भी निमंत्रण देते हैं और देवी देवता भी उनके सुख-दुख में हमेशा उनके साथ रहते हैं. देव नियमों का पालन आज भी ग्रामीण इलाकों में लोग करते आ रहे हैं. देवी देवता जहां अपने भक्तों की रक्षा के लिए यहां कई तरह के उत्सव में शामिल होते हैं. वहीं, अपनी प्रजा की भलाई के लिए स्वर्ग में जाकर भी अन्य देवी देवताओं और देवराज इंद्र के साथ मंत्रणा करते हैं.
इसी के चलते जिला कुल्लू के देवी देवता भी पौष संक्रांति के अवसर पर स्वर्ग की ओर रवाना हो गए हैं और यहां पर वो अपनी प्रजा की भलाई के लिए देवराज इंद्र के साथ चर्चा करेंगे, ताकि आगामी वर्ष जनता के लिए खुशहाली भरा हो. कुछ देवी देवता माघ मास की संक्रांति को स्वर्ग की ओर रवाना होंगे. ऐसे में देवी देवता स्वर्ग में मंत्रणा करेंगे. स्वर्ग प्रवास से लौटकर प्राकृतिक आपदा और अन्य घटनाओं से बचाव के बारे में अपने गुर के माध्यम से भी जनता को संदेश देंगे. जिला कुल्लू में करीब 250 से अधिक देवी देवता पौष मास की संक्रांति को स्वर्ग की ओर रवाना हो गए हैं और उनके देवालय को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है. इसके अलावा जो देवता अभी धरती पर विराजमान हैं वो भक्तों के घर जाकर सुख समृद्धि का आशीर्वाद दे रहे हैं और माघ मास की संक्रांति को वो भी स्वर्ग की ओर रवाना हो जाएंगे.
असुरी शक्तियों का हो जाता है बोल-बाला
वहीं, देवी देवताओं के स्वर्ग चले जाने के बाद अब आसुरी शक्तियों का भी बोल बाला बढ़ जाता है. ऐसे में स्वर्ग रवाना होने से पहले देवी देवता अपने श्रद्धालुओं को आशीर्वाद के रूप सरसों-चावल के दाने भी देते हैं, ताकि उनकी प्रजा बुरी शक्तियों से सुरक्षित रहे. इसके अलावा देवताओं के द्वारा दियाली का दिन भी निर्धारित किया जाता है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में लोग मिलकर लकड़ी की बड़ी-बड़ी मशालें जलाते हैं और अश्लील गालियां भी देते हैं. मान्यता के अनुसार अश्लील गालियां देने से बुरी शक्तियां दूर भाग जाती हैं और लोगों का आसुरी शक्तियों से बचाव होता है.
फाल्गुन में होता है फागली का आयोजन
वहीं ,फाल्गुन मास में आसुरी शक्तियों से बचने के लिए जगह-जगह फागली का आयोजन किया जाता है, जिसमें ग्रामीण राक्षसी मुखौटे पहनते हैं और राक्षसों की तरह ही स्वांग रचते हैं, ताकि राक्षस इससे खुश हो सकें और वो इलाके को कोई नुकसान न पहुंचा सकें.
सभी मंदिरों को कर दिया जाता है बंद
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला, रामपुर, किन्नौर, शिमला के ऊपरी इलाकों में पौष मास की संक्रांति के अवसर पर देवी देवता स्वर्ग चले जाते हैं. ऐसे में इन सभी इलाकों में मंदिर पूरी तरह से बंद कर दिए जाते हैं. देवी देवताओं के रथ के ऊपर लाल कपड़ा डाल दिया जाता है और मंदिरों की घंटियों को भी कपड़े से बांध दिया जाता है, ताकि कोई व्यक्ति घंटी ना बजा सके. मान्यता के अनुसार घंटी बजाने से देवी देवताओं के मंत्रणा में बाधा उत्पन्न होती है. ऐसे में जगह-जगह पर सूचना बोर्ड भी लगाए जाते हैं, ताकि श्रद्धालु देवी देवताओं के मंदिरों का रुख न करें और देवी देवताओं की स्वर्ग में चल रही मंत्रणा सही तरीके से पूरी हो सके.
लोगों को रहता है देवताओं की वापसी का इंतजार
देवी देवताओं के स्वर्ग रवाना होने के बाद ही इन सभी इलाकों में धार्मिक कार्यक्रमों पर रोक लग जाती है और लोग भी अपने घरों में शादी समारोह, मुंडन संस्कार सहित अन्य धार्मिक कार्यों का आयोजन नहीं करते हैं. कुल्लू घाटी के लक्ष्मण कुमार, रोशन ठाकुर, रमेश ठाकुर का कहना है कि, 'देवी देवताओं के स्वर्ग चले जाने के बाद यहां के देवालय खाली पड़ जाते हैं और लोगों के मन में भी एक निराशा भर जाती है. लोग देवी देवताओं के स्वर्ग वापसी का इंतजार करते हैं. ताकि वो अपने बच्चों के मुंडन संस्कार या फिर शादी ब्याह जैसे कार्यक्रमों को पूरा कर सकें.'
चैत्र मास तक लौट आते हैं सभी देवता
जिला कुल्लू में बिजली महादेव, मंगलेश्वर महादेव, जुआनी महादेव सहित अन्य कई ऐसे देवता हैं जो तीन माह तक स्वर्ग में रहते हैं. इसके अलावा बंजार घाटी के अधिकतर देवी देवता माघ मास की संक्रांति को वापस लौट आते हैं और कुछ देवता फाल्गुन मास की संक्रांति पर वापस आते हैं. ऐसे में फाल्गुन मास में फागली का आयोजन भी किया जाता है और देवी देवता श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हैं. चैत्र मास की संक्रांति पर सभी देवी देवता धरती पर लौट आते हैं और उसके बाद आसुरी शक्तियों से अपने-अपने भक्तों की रक्षा करते हैं. इसके अलावा चैत्र मास की संक्रांति पर जहां नव संवत की भी शुरुआत होती है. तो वहीं, साल भर के धार्मिक मेलों का आयोजन भी इसे शुरू हो जाता है.
देवताओं से स्वर्ग में होता है मंथन
जिला कुल्लू देवी देवता कारदार संघ के महासचिव टीसी महंत ने बताया कि, 'बंजार घाटी के अधिकतर देवालय इस दौरान बंद हो चुके हैं और कुछ देवी देवता पौष मास कि सक्रांति को स्वर्ग की ओर रवाना हो गए हैं, जहां पर वो आपस में मंथन करेंगे, ताकि धरती पर खुशहाली बनी रहे. ऐसे में माघ संक्रांति के दिन देवताओं के मंदिर खुल जाएंगे और फाल्गुन मास की संक्रांति पर देवी देवताओं के वापस आने की खुशी में ग्रामीण इलाकों में त्यौहार भी मनाया जाएगा.'
देवताओं के लौटने पर खुलते हैं मंदिर के कपाट
जब देवी देवता धरती पर वापस लौट आते हैं तो उसी दिन मंदिर के पुजारी मंदिर के कपाट खोलते हैं और देवी देवताओं की विधि पूर्वक पूजा अर्चना की जाती है. उसके बाद देवता अपने गुर के माध्यम से देव वाणी करते हैं और स्वर्ग में हुई मंत्रणा का पूरा हाल जनता को सुनाया जाता है. इसके अलावा पूरा साल कैसा रहेगा उसके बारे में भी लोगों को जानकारी दी जाती है और किस तरह से प्राकृतिक आपदा के बारे में बचाव करना है. उसके उपाय भी देवता के द्वारा दिए जाते हैं, ताकि उनके अपने इलाके में खुशहाली बनी रह सके.
हिमाचल प्रदेश के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ सूरत ठाकुर का कहना है कि, 'पौष मास को पहाड़ी इलाकों में काला महीना के नाम से जाना जाता है और इस महीने आसुरी शक्तियां भी काफी शक्तिशाली रहती हैं. इन शक्तियों से बचने के लिए इलाके के लोग दियाली उत्सव मनाते हैं, जिसमें लकड़ी की बड़ी-बड़ी मशालें जलाकर पूरे गांव की परिक्रमा की जाती है औक अश्लील गालियां भी दी जाती हैं. कहा जाता है कि बुरी शक्तियां अश्लील गालियां नहीं सुन सकती हैं, जिसके चलते वो उस इलाके को छोड़कर भाग जाती हैं. इसके अलावा बंजार इलाके में फागली उत्सव मनाया जाता है. जहां पर लोग राक्षसी मुखौटे पहनकर स्वांग करते हैं, ताकि वहां से बुरी शक्तिया दूर भाग सकें.'