इंदौर: देश में ऑनलाइन दवा बिक्री की अघोषित व्यवस्था के बीच स्विगी इंस्टामार्ट और फार्मईजी जैसी कंपनियां अब दवाइयां भी घर-घर डिलीवर करने की तैयारी में हैं. ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट इसके खिलाफ लामबंद हो गया है. उसने ड्रग कंट्रोलर आफ इंडिया से मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है. उसका कहना है कि बिना मेडिकल प्रिस्क्रिप्शन और डॉक्टरों के परामर्श के ली जाने वाली दवाइयां हर किसी के लिए घातक हो सकती हैं
दरअसल हाल ही में फार्मईजी नामक दवा कॉर्पोरेट की ओर से इस आशय के एक अनुबंध को सार्वजनिक किया गया था. जिसमें घोषणा की गई थी कि जल्द ही स्विगी इन्स्टामार्ट और फार्मईजी मिलकर 10 मिनट में दवाइयां की होम डिलीवरी करेंगे. ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट ने इन कंपनियों के बीच ऑनलाइन दवा बिक्री को लेकर हुई साझेदारी पर आपत्ति जताते हुए इस कथित अल्ट्रा फास्ट डिलीवरी सिस्टम का विरोध किया है.
ऑनलाइन दवा की डिलीवरी भारतीय कानून के निर्धारित मानकों का उल्लंघन
ऑल इंडिया ऑर्गेनाइजेशन ऑफ केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट के महासचिव राजीव सिंहल का कहना है कि मरीज जब खुद ही ऑनलाइन दवा मंगवा कर उसका मनमाना उपयोग करेगा तो न तो वह दवा की निर्धारित मात्रा और उसके साइड इफेक्ट को समझ सकेगा. न ही उपयोग के पहले असली और नकली दवा की पहचान अथवा पड़ताल ही कर पाएगा.
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इसके अलावा दवाइयों के एंटी माइक्रोबियल प्रतिरोध और गुणवत्ता को देख पाना सामान्य मरीज के लिए आसान नहीं होगा. इस स्थिति का खामियाजा मरीज को ही भुगतना होगा. इसके अलावा जाने अनजाने विभिन्न बीमारी के रोगियों को एक्सपायर और नकली दवाई के संभावित उपयोग से स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ की चुनौती भी झेलनी होगी. जो कहीं ना कहीं भारतीय कानून के निर्धारित मानको का उल्लंघन भी है. उन्होंने कहा इस मामले को लेकर हाल ही में ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया को मांग पत्र सौंपा किया गया है, जिसमें इस तरह की अवैध व्यवस्था पर रोक लगाने की मांग की गई है.
दवाओं की बिक्री को लेकर क्या कहता है मौजूदा कानून
देश में दवा निर्माण की एक चरणबद्ध प्रक्रिया है जो दवाई में उपयोग होने वाले प्रत्येक तत्व के परीक्षण के बाद तैयार होती है. इसके अलावा आईपीसी (भारतीय भेषज संहिता) और भारत सरकार द्वारा दवा निर्माण के फॉर्मूले भी तय किए गए हैं, जिनका पालन विभिन्न फार्मा कंपनियों को करना जरूरी है. इसके अलावा औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम 1940 में नकली दवा अथवा मिलावटी दवा जैसी स्थिति में दंड और जुर्माने का प्रावधान किया गया है.
गलत दवा से रोगी की मौत होने पर पर आजीवन कारावास का प्रवधान
जिसमें नकली और गलत दवा से रोगी की मौत या गंभीर शारीरिक क्षति पर आजीवन कारावास तक की सजा है. वहीं बिना लाइसेंस दवा बनाने पर 5 साल की सजा का प्रावधान है. इसके लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन द्वारा दवाइयां के निर्माण, बिक्री, आयात और वितरण से जुड़े मानक भी निर्धारित किए गए हैं. लेकिन ऑनलाइन दवा कंपनियां इस स्थिति की अनदेखी करते हुए अपने स्तर पर न केवल दवाइयां ऑनलाइन डिलीवर कर रही हैं बल्कि देश में दवा निर्माण और वितरण के तमाम कानूनों का सीधा उल्लंघन कर रही हैं. बीते महीने ही ड्रग कंट्रोलर ने 50 ऐसी दवाइयां पर प्रतिबंध लगाया था जो कम गुणवत्ता वाली थीं. इसके अलावा पांच तरह की नकली दावों के मामले में दवा बनाने वाले निर्माता के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के निर्देश भी दिए थे.
ऑनलाइन दवा बिक्री के नियंत्रण के लिए कोई कानून नहीं
दरअसल देश में फिलहाल ऑनलाइन दवा बिक्री के नियंत्रण अथवा निरीक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है. इस मामले को लेकर भारत सरकार कोर्ट में शपथ पत्र भी दे चुकी है. लेकिन बीते 7 साल से ऑनलाइन दवा बिक्री को लेकर मानकों का निर्धारण नहीं हो सका है, जिसका सीधा फायदा इस तरह की दवा कंपनियां उठा रही हैं. ऐसे में मरीज को दवाइयों की खरीद के लिए निर्धारित बिल अथवा इनवॉइस वाउचर देखना जरूरी है. वहीं दवाइयां पर होने वाले क्यू कोड की स्कैनिंग के अलावा स्टॉकिस्ट अथवा दवा भेजने वाली कंपनी की पड़ताल के अलावा कोई विकल्प नहीं है.