कानपुर: यूपी के कानपुर शहर के कारोबारी चमड़े के जो उत्पाद तैयार करते हैं उनकी विदेश में जबरदस्त मांग है. हालांकि, चमड़े के उत्पादों को लेकर नए-नए प्रयोग भी किए जा सकें इस मकसद के साथ ही जब कुछ दिन पहले कानपुर के चमड़ा कारोबारियों ने चेन्नई के कारोबारियों से बात की तो सामने आया कि वे प्रयोग के तौर पर आंवले की पत्तियों और आम की गुठलियों से बने चमड़े का उपयोग कर रहे हैं.
स्पेन से जहां उन्हें आंवले की पत्तियों वाला चमड़ा आयात के तौर पर मिला है, वहीं हॉलैंड ने उन्हें आम की गुठलियों से तैयार चमड़ा आयात के रूप में मुहैया कराया है. चेन्नई के कारोबारियों ने इस तरीके के नए चमड़े से उत्पादों को जहां बनाना शुरू कर दिया है, वहीं अब कानपुर के कई चमड़ा कारोबारियों ने भी तय किया कि अपने उत्पादों में एक सस्टेनेबिलिटी लाने के लिए वह भी नया प्रयोग करने को तैयार हैं.
मशरूम से भी तैयार हो रहा चमड़ा: इस पूरे मामले पर काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट (CLE) के अध्यक्ष आर जालान ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि हॉलैंड और स्पेन से जो नए तरीके का चमड़ा मिला है, निश्चित तौर पर आने वाले समय में जब उनसे उत्पाद बनेंगे तो यह लोगों के लिए काफी फायदेमंद साबित होंगे. बहुत से लोग चमड़े के उत्पादों को तो पसंद करते हैं मगर सीधे तौर पर चमड़े को अपने साथ नहीं रखना चाहते हैं.
इसलिए समय-समय पर इंडस्ट्रीज अपने स्तर से नए प्रयोग करती हैं और उन नए प्रयोग में हमने अब यह जाना है कि आंवले की पत्तियों व आम की गुठलियों से भी चमड़ा बन रहा है. जिनके उत्पाद आने वाले समय में लोगों तक पहुंच सकेंगे. उन्होंने बताया कि कुछ समय पहले ही सेंट्रल लेदर रिसर्च इंस्टीट्यूट (CLRI) के वैज्ञानिकों ने भी मशरूम से चमड़ा तैयार करने में सफलता हासिल की और अब इस तरीके के चमड़े के उत्पादन भी जल्द बाजार में सभी के सामने आएंगे. ऐसे चमड़े को वीगन चमड़ा माना जाता है. एक प्रकार से इसे 'वेज चमड़ा' भी कहा जा सकता है.
अमेरिका में लोगों को भाए खादी के जूते: CLE के चेयरमैन आरके जालान ने बताया कि कुछ समय पहले ही कानपुर के चमड़ा कारोबारियों ने जब खादी से चमड़े के उत्पाद तैयार किए थे तो उन उत्पादों का बोलबाला अमेरिका में खूब बोला. लोगों को वहां खादी से बने जूते व बैग भी बहुत पसंद आ रहे हैं. इसी तरीके से लगातार हर साल 5% डिमांड भी बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि जिस तरीके से दुनिया में सस्टेनेबिलिटी का जोर है, उसी तरीके से हमें भी अपने उत्पादों को बेहतर करना होगा जिससे हमारे उत्पाद भी सस्टेनेबल हो सकें.
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