वाराणसी: भारतीय सब्जी अनुसंधान केंद्र में तीन दिवसीय किसान मेले का आयोजन किया गया है, जिससे कि बेहतर काम करने वाले किसानों को सम्मानित किया जा सके. इसके साथ ही उन्हें खेती के अलग-अलग गुण सिखाए जा सकें. किसान मेले में सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र बना है. आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय का स्टॉल. यहां पर आपको अलग-अलग वैराइटी की सब्जियां देखने को मिल जाएंगी. साथ ही मिलेट्स भी (मोटे अनाज) देखने को मिल जाएंगे. इसके साथ ही लोगों को यह बताया जा रहा है, कि किस तरह से सब्जियों और मिलेट्स का अलग-अलग प्रारूप में प्रयोग कर सकते हैं. स्टॉल पर लौकी, मिलेट्स की मिठाइयां और हलवे देखने को मिल रहे हैं.
भारतीय सब्जी अनुसंधान केंद्र में लगे तीन दिवसीय मेले में किसानों को सबसे महत्वपूर्ण गुण सिखाया जा रहा है, जिसके जरिए सब्जियों का प्रयोग बेहतर तरीके से किया जा सके. कई बार किसान सब्जियों को बेकार समझकर फेंक देते हैं या फिर औने-पौने दाम में उन्हें बेचकर चले जाते हैं. ऐसे में किसानों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जा सके. इसको लेकर किसानों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. वाराणसी में लगे इस मेले में पहुंचे आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय के डायरेक्टर ने ईटीवी भारत से बातचीत में जानकारी दी है. उन्होंने कहा कि, हमारे विश्वविद्यालय का जो क्षेत्र है यहा पूरा 26 जनपदों में 25 कृषि विज्ञान केंद्र इसके अंतर्गत आता है.
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धान-गेहूं की हर परिस्थिति के हिसाब की फसल: इस बारे में निदेशक आर आर सिंह ने बताया कि, हमारा धान और गेहूं का सबसे बड़ा क्षेत्र है तो हमने सभी परिस्थितियों के लिए सभी तरह की धान की प्रजातियां विकसित की हैं. इसी तरीके से दलहन है, तिलहन है, गेहूं है. इन सब की प्रजातियां हम विकसित करते हैं. इसके बाद हम फल की तरफ आते हैं तो उसमें भी हमारा आंवला और बेल पूरे भारत में प्रसिद्ध है. इसका हमारे यहां से ही तमाम प्रजातियां राजस्थान व अन्य राज्यों में जहां जैसी परिस्थिति होती है, जाती हैं. खास तौर पर जो हमारा प्रोडक्ट है वह उत्पादन अच्छा देता है, क्वालिटी अच्छी है. वहीं जब हमारा किसान अधिक उत्पादन कर लेता है तो उसका उत्पाद खराब भी होने लगता है.
किसानों को उत्पादों का दिलाते हैं उचित मूल्य: उन्होंने बताया, कि किसानों का उत्पाद खराब न हो उसके लिए हमने कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से प्रोसेसिंग की यूनिट शुरू करके किसानों को प्रशिक्षित करते हैं. इसके साथ ही जो अधिक उत्पादन हुआ है, उसमें वैल्यू एडिशन करके मार्केट में देते हैं, जिससे हमारा जो सामान खराब होने की परिस्थिति में है. उसमें वैल्यू एड करके अच्छे दाम में बेच सकें. इससे किसानों की आमदनी बढ़ाने की कोशिश की जाती है. इसी के साख ही साथ आर्गेनिक कार्बन भी हमारी मृदा में धीरे-धीरे घट रहा है. उसको देखते हुए सरकार का और हमारा ध्यान नेचुरल फार्मिंग की तरफ है. हमारा इस पर शोध कार्य चल रहा है. इसके लिए इंटरनेशनल मिलेट्स इस बार मनाया जा रहा है. इसे हमारे देश ने दो साल पहले ही शुरू कर दिया है.
युवाओं को मिलेट्स के लिए कर रहे प्रेरित: उन्होने ने बताया, 'हमने शोध में यह पाया है कि कम से कम लागत, कम से कम रसायन और कम से कम पानी में हमारा मिलेट्स उत्पादन हो जाता है. मिलेट्स की वजह से जो हमारे शरीर में तमाम तरह के रोग होते हैं, वे हमारे मिलेट्स से कम होता है. धीरे-धीरे मिलेट्स को बढ़ावा देने के लिए काम किया जा रहा है. हमारी जो नई पीढ़ी है, वह पुराने तरीके की फार्मिंग में नहीं एक्सेप्ट करती है. इसके लिए हमारे विश्वविद्यालय और हमारे कृषि विज्ञान केंद्रों ने विभिन्न तरह के मिलेट्स के उत्पाद लड्डू, बर्फी, हलवे या अन्य तरीकों से तैयार कर रहे हैं. हम इसी रूप में युवाओं मिलेट्स दे रहे हैं. साथ ही साथ हम इसके लिए किसानों को भी प्रशिक्षित कर रहे हैं.
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