वाराणसी : काशी हिन्दू विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने कोरोना और मानव शरीर के डीएनए को लेकर बड़ा रिसर्च किया है. इस रिसर्च के माध्यम से वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि डीएनए तय करता है कि कोरोना हमारी शरीर के लिए कितना घातक होगा. इसके साथ ही यह कितना गंभीर होगा, रिकवरी किस मात्रा में होगी या फिर मौत हो जाएगी. इन सभी स्टेज में डीएनए का बड़ा रोल होता है.
बीएचयू के वैज्ञानिकों का दावा है कि इस रिसर्च से सरकार बड़ी आबादी को कोविड जैसी जैविक आपदा से बचाने की रणनीति के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है. वैज्ञानिकों ने भारत के साथ ही दुनियाभर के 743 लोगों पर यह शोध किया है. यह सरकार के लिए योजना बनाने में मदद कर सकता है.
कोरोना से हुए मौतों ने लोगों को डराया : कोरोना महामारी ने लगातार तीन साल तक पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले रखा था. इसके साथ ही कोरोना के अंतिम पड़ाव के बाद भी लोगों के मन में इस बात का डर था कि कोरोना कहीं वापस न आ जाए. कोरोना के कारण लोगों ने मौतों का बड़ा मंजर देखा था. चीन, अमेरिका जैसे देशों के खराब हालात देखकर भारत के लोग भी डरे हुए थे.
इन सब के बाद बीएचयू के वैज्ञानिक इस शोध में लग गए कि कोरोना महामारी का असर हमारे शरीर पर किस तरह से होता है. इसमें डीएनए का क्या रोल होता है और इससे कौन से स्टेज में बचा जा सकता है. इसमें यह भी पता लगाने की कोशिश की गई कि कौन से डीएनए वाले लोगों में अधिक रिस्क है.
जीन वैज्ञानिक प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे के साथ उनके रिसर्च स्कॉलर रुद्र पांडेय ने इस पर शोध किया है. प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि भारत के अलग-अलग राज्यों में 450 सैंपल लिया गया था. विदेश के 393 लोगों के नेक्स्ट जनरेशन सिक्वेंसिंग डेटा को कलेक्ट किया गया. इन दोनों के डेटा को मिलाकर शोध कार्य पूरा किया गया है. इस शोध में एक बात निकलकर सामने आई है कि दक्षिण एशियाई लोगों में कोविड-19 वायरस का अलग असर पड़ा है.
दुनिया के 743 लोगों पर हुए शोध : फ्यूरिन जीन के म्यूटेशन RS1981458 की पहचान हुई है, जो इसका बड़ा कारण रहा है. उन्होंने बताया कि दुनिया भर के 743 लोगों पर हुए शोध के अनुसार, यूरोप, चीन और भारत में लोगों के स्वास्थ्य पर अलग-अलग असर हुआ है. प्रो. चौबे ने बताया कि, इस शोध कार्य के लिए हमने कोरोना महामारी की पहली और दूसरी वेव के दौरान सैंपल कलेक्ट किए थे. इन्हीं सैंपल्स में हमें म्यूटेशन मिले हैं. ये म्यूटेशन इम्यून कोशिकाओं को अपने अनुसार संचालित करता है.
इसी म्यूटेशन से यह भी पता चलता है कि मरीज की रिकवरी जल्दी हो सकती है या फिर उसकी हालत और गंभीर होगी. उन्होंने बताया कि इम्यून का इस्तेमाल जेनेटिक बायोमार्कर के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है. उनका ये भी कहना है कि सरकार इस परिणाम को माध्यम से स्वास्थ्य को लेकर स्कीम बनाने या फिर योजना बनाने में आसानी रहेगी. जेनेटिक सिंप्टम्स के आधार पर उससे निपटने की योजना भी बनाई जा सकती है. इससे किसी बड़ी जैविक त्रासदी से बचा जा सकता है.
भारत के लोगों पर कोरोना का असर कम : रिसर्चर रुद्र कुमार पांडेय का कहना है कि शोध में पता चला है कि भारत और आसपास के देशों में कोरोना महामारी का असर किस तरह हुआ है या होता है. शोध के दौरान हमें जेनेटिक म्यूटेशन का पता चला है. यह भी पता चला है कि यूरोप के मुकाबले भारत के लोगों पर वायरस का असर कम होगा. इसके साथ ही चीन में इसकी गंभीरता और भी कम होगी.
भारत में इस महामारी गंभीरता अन्य देशों के मुकाबले कम रही है. वैज्ञानिकों ने यह भी माना है कि भारत के साथ ही साथ दक्षिण एशियाई देशों का जेनेटिक कैरेक्टर अलग है. यही कारण रहा है कि कोरोना महामारी के कारण अन्य देशों के मुकाबले भारत में कम मौतें हुईं हैं. भारत, चीन और यूरोप देशों में जेनेटिक अलगाव के कारण ही यह बदलाव देखा जा रहा है.
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