प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नोएडा स्पोर्ट्स सिटी प्रोजेक्ट के नौ हजार करोड़ को घोटाले में शामिल बिल्डर कंपनियों द्वारा कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग कर हड़पे धन का पता लगाने के लिए ईडी को भी जांच करने का आदेश मंगलवार को दिया. साथ ही नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्युनल में दिवालिया घोषित करने की कार्यवाही में बैलेंस शीट का सत्यापन कर कार्रवाई करने का आदेश दिया.
कोर्ट ने कहा कि घर खरीदने वालों का हित सर्वोपरि है. उनकी सुरक्षा की जानी चाहिए. साथ ही बोगस ट्रांजेक्शन की भी जांच की जाए. कोर्ट ने कहा यदि याची कंपनियों को राहत दी जाती है, तो यह जालसाजी को स्वीकार करने जैसा होगा. न्यायालय ऐसा नहीं कर सकता. इसलिए बिल्डर कंपनियों द्वारा हड़पे गये धन का पता लगाया जाना चाहिए.
यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी एवं न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने मेसर्स एरिना सुपरस्ट्रक्चर्स प्रा लिमिटेड एवं मेसर्स सिक्वेल बिल्डकॉन प्रा लिमिटेड की याचिकाओं को निस्तारित करते हुए दिया. कोर्ट ने इस घोटाले की सीबीआई जांच का निर्देश भी दिया. कोर्ट ने कहा कि इस घोटाले में नोएडा के अधिकारी, आवंटी बिल्डर्स या अन्य कोई शामिल है, तो सीबीआई परिवाद दर्ज कर सीधे कार्रवाई करें. साथ ही बिल्डर कंपनियों की बंदरबांट से हड़पे धन का पता लगाने की जिम्मेदारी ईडी को सौंपी है.
कोर्ट ने कहा कैग की रिपोर्ट में बड़े घोटाले का खुलासा हुआ, जिसमें बिल्डर कंपनियों और नोएडा के अधिकारियों की मिलीभगत से करोड़ों रुपये प्राधिकरण में जमा नहीं किए गए. कंपनियों ने सब्सिडरी कंपनियों में धन स्थानांतरित कर हड़प लिया और कानूनी खामियों का फायदा उठाते हुए एनसीएलटी में इंसालवेंसी अर्जी दाखिल कर बचने का रास्ता निकाला. अधिकरण ने भी सत्यता की जांच किए बगैर अपनी मुहर लगा दी. ऐसे आदेश को चुनौती न होने के कारण कोर्ट ने कहा हम इसे रद्द नहीं कर सकते लेकिन सत्यापन कर कार्रवाई का निर्देश दे सकते हैं.
गौरतलब है कि 16 अगस्त 2004 को नोएडा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्पोर्ट्स सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए स्पोर्ट्स सिटी डेवलप करने का फैसला लिया. कंपनियों ने जमीन ले ली लेकिन कोई विकास नहीं किया. याची कंपनी ने 1080 फ्लैट में से केवल 785 फ्लैट बेचे और निर्माण बंद कर दिया. इसे पांच साल में प्रोजेक्ट पूरा करना था. कंपनी स्पोर्ट्स सुविधाएं देने में विफल रही. जब सीएजी रिपोर्ट में स्पोर्ट्स सिटी घोटाले का पर्दाफाश हुआ तो सरकार हरकत में आई.
नोएडा ने सेक्टर-78, 79, 101, 150, 152 में चार भूखंड आवंटित किए गए थे, जिनका क्षेत्रफल करीब 32 लाख 30 हजार 500 वर्गमीटर है. जमीन आवंटन के समय नोएडा ने शर्त रखी थी कि 70 प्रतिशत जमीन पर खेल सुविधाएं विकसित की जाएंगी. इसके अलावा 28 प्रतिशत जमीन आवासीय और दो प्रतिशत व्यावसायिक उपयोग में लाई जा सकेगी. शुरुआत में चार भूखंड जिन चार बिल्डर ग्रुप को आवंटित हुए थे. उन्होंने सब डिवीजन कर इन्हें अलग-अलग बिल्डरों को 84 टुकड़ों में बेच दिया. इसमें 74 सब-डिवीजन को नोएडा ने मंजूरी दी है.
नोएडा ने 46 ग्रुप हाउसिंग के नक्शे भी पास किए. बिल्डरों ने समय पर बकाया नहीं जमा किया. नोएडा का इन सभी पर करीब 10 हजार करोड़ रुपये का बकाया है. इस मामले में हाईकोर्ट ने सोमवार को आदेश में कहा कि सीबीआई मामले की जांच करे. कोर्ट ने कहा कि इस घोटाले में नोएडा व बिल्डर समेत अन्य भी शामिल हो सकते हैं इसलिए बिल्डर कंपनियों की याचिका पर हड़पे धन का पता लगाने की ज़िम्मेदारी ईडी को सौंपी है.
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