ETV Bharat / state

17वीं शताब्दी तक हर्षोल्लास से निकाली जाती थी गणगौर की सवारी, इस भयानक हादसे के बाद बंद हुआ सार्वजनिक उत्सव - No Public event of Gangaur in Bundi - NO PUBLIC EVENT OF GANGAUR IN BUNDI

17वीं शताब्दी में गणगौर समारोह के दौरान हुए हादसे के बाद बूंदी में गणगौर की सार्वजनिक रूप से सवारी नहीं निकाली जाती है. बूंदी की गलियों में गणगौर की वह उत्सवी आभा कब बिखरेगी, इसका जवाब किसी के पास नहीं हैं.

No Public event of Gangaur in Bundi
बूंदी में गणगौर की सार्वजनिक सवारी पर अघोषित बैन
author img

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Apr 11, 2024, 4:40 PM IST

बूंदी. अरावली पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसी छोटी काशी के नाम मशहूर बूंदी में रियासतकाल में गणगौर का पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता था, जो किसी भी मायने में जयपुर की गणगौर से कम नहीं था. बून्दी हाड़ाओं की गणगौर इतनी प्रसिद्ध थी कि जयपुर से पहले बूंदी का नाम आता था. लेकिन बूंदी रियासत में 17वीं शताब्दी में गणगौर समारोह के दौरान हुए हादसे के बाद यहां गणगौर की पूजा घरों तक ही सीमित रह गई है. इस हादसे के बाद बूंदी में आज तक गणगौर के सार्वजनिक उत्सव पर एक तरह से अघोषित रोक सी लग गई. हालांकि शहर के कुछ जगहों पर सालों से स्थापित गणगौर होने के चलते वहां पर लोग एकत्रित होते हैं और गणगौर महोत्सव को धूमधाम से मनाते हैं. लेकिन इनकी संख्या बेहद कम है.

क्या हुआ था 17 वीं शताब्दी में: 17वीं शताब्दी में बूंदी नरेश महाराव बुध सिंह के छोटे भाई की गणगौर उत्सव के दौरान हुए हादसे में मृत्यु हो जाने के बाद यहां गणगौर पर्व की ओक (आंट) पड़ गई. तब से राजपरिवार ने गणगौर का उत्सव मनाना बंद कर दिया. इंटेक के सचिव राजकुमार दाधीच ने बताया कि महाराव बुध सिंह के साल 1695 से 1740 के दौर में उनके छोटे भाई जोध सिंह जैतसागर में सरदार और रूपसियों के साथ गणगौर का दरीखाना लगाकर सैर कर रहे थे. इस दौरान नशे में मदमस्त एक हाथी ने पूरी नाव को जैतसागर में गणगौर सहित पलटा दिया, जिसमें राजा के छोटे भाई सहित कुछ जागीरदारों की मौत हो गई थी. तब से लेकर अब तक बूंदी में पूर्व राजपरिवार गणगौर महोत्सव में आंट रखे हुए है.

पढ़ें: जयपुर की विरासत से जुड़ा है शाही पर्व गणगौर, सुरक्षा में तैनात होते हैं बंदूकधारी - Royal Festival Gangaur

एक और किंवदंती जुड़ी है गणगौर के साथ: राजकुमार दाधीच के अनुसार बूंदी की गणगौर के विषय में एक दूसरी किवदंती भी है. जिसके अनुसार 13वीं सदी में बूंदी के राव राजा नापा को परास्त कर शेरगढ़ के महाराज हरराज सिंह ने गणगौर को छीन ले गए थे. जिसे कुछ वर्षों बाद नापा के पुत्र हम्माजी ने शेरगढ़ के महाराज हरराज सिंह को युद्ध में परास्त कर बून्दी की गणगौर को वापिस लेकर आए थे. उसके बाद से गणगौर पर्व पर शुरू हुई उत्सव मनाने की परंपरा 17वीं शताब्दी तक जैतसागर झील में हुए हादसा होने तक जारी रही.

पढ़ें: जीनंगर समाज ने निभाई 250 वर्ष पुरानी परंपरा, जानिए क्या है मोरिया और जेले - Sheetala Saptami

पूर्व राजपरिवार सदस्य मयूराक्षी सिंह के अनुसार बूंदी में भी 17वीं शताब्दी में तत्कालीन महाराव बुद्धसिंह जी के समय तक गणगौर का पर्व भव्यता से आयेजित किया रहा था. तत्कालीन महाराव बुद्धसिंह जी के समय हुई दुर्घटना में महाराव के भाई जोधसिंह सहित राजपरिवार के अन्य सदस्यों की मृत्यु होने के बाद से बूंदी रियासत में गणगौर पर्व की आंट (बाधा) पड़ गई. उस ओक (आंट) का आज तक भी यहां निर्वहन करते हुए पूर्व राजपरिवार सार्वजनिक तौर पर गणगौर पर्व नहीं मनाता.

बूंदी. अरावली पर्वत श्रृंखला की तलहटी में बसी छोटी काशी के नाम मशहूर बूंदी में रियासतकाल में गणगौर का पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता था, जो किसी भी मायने में जयपुर की गणगौर से कम नहीं था. बून्दी हाड़ाओं की गणगौर इतनी प्रसिद्ध थी कि जयपुर से पहले बूंदी का नाम आता था. लेकिन बूंदी रियासत में 17वीं शताब्दी में गणगौर समारोह के दौरान हुए हादसे के बाद यहां गणगौर की पूजा घरों तक ही सीमित रह गई है. इस हादसे के बाद बूंदी में आज तक गणगौर के सार्वजनिक उत्सव पर एक तरह से अघोषित रोक सी लग गई. हालांकि शहर के कुछ जगहों पर सालों से स्थापित गणगौर होने के चलते वहां पर लोग एकत्रित होते हैं और गणगौर महोत्सव को धूमधाम से मनाते हैं. लेकिन इनकी संख्या बेहद कम है.

क्या हुआ था 17 वीं शताब्दी में: 17वीं शताब्दी में बूंदी नरेश महाराव बुध सिंह के छोटे भाई की गणगौर उत्सव के दौरान हुए हादसे में मृत्यु हो जाने के बाद यहां गणगौर पर्व की ओक (आंट) पड़ गई. तब से राजपरिवार ने गणगौर का उत्सव मनाना बंद कर दिया. इंटेक के सचिव राजकुमार दाधीच ने बताया कि महाराव बुध सिंह के साल 1695 से 1740 के दौर में उनके छोटे भाई जोध सिंह जैतसागर में सरदार और रूपसियों के साथ गणगौर का दरीखाना लगाकर सैर कर रहे थे. इस दौरान नशे में मदमस्त एक हाथी ने पूरी नाव को जैतसागर में गणगौर सहित पलटा दिया, जिसमें राजा के छोटे भाई सहित कुछ जागीरदारों की मौत हो गई थी. तब से लेकर अब तक बूंदी में पूर्व राजपरिवार गणगौर महोत्सव में आंट रखे हुए है.

पढ़ें: जयपुर की विरासत से जुड़ा है शाही पर्व गणगौर, सुरक्षा में तैनात होते हैं बंदूकधारी - Royal Festival Gangaur

एक और किंवदंती जुड़ी है गणगौर के साथ: राजकुमार दाधीच के अनुसार बूंदी की गणगौर के विषय में एक दूसरी किवदंती भी है. जिसके अनुसार 13वीं सदी में बूंदी के राव राजा नापा को परास्त कर शेरगढ़ के महाराज हरराज सिंह ने गणगौर को छीन ले गए थे. जिसे कुछ वर्षों बाद नापा के पुत्र हम्माजी ने शेरगढ़ के महाराज हरराज सिंह को युद्ध में परास्त कर बून्दी की गणगौर को वापिस लेकर आए थे. उसके बाद से गणगौर पर्व पर शुरू हुई उत्सव मनाने की परंपरा 17वीं शताब्दी तक जैतसागर झील में हुए हादसा होने तक जारी रही.

पढ़ें: जीनंगर समाज ने निभाई 250 वर्ष पुरानी परंपरा, जानिए क्या है मोरिया और जेले - Sheetala Saptami

पूर्व राजपरिवार सदस्य मयूराक्षी सिंह के अनुसार बूंदी में भी 17वीं शताब्दी में तत्कालीन महाराव बुद्धसिंह जी के समय तक गणगौर का पर्व भव्यता से आयेजित किया रहा था. तत्कालीन महाराव बुद्धसिंह जी के समय हुई दुर्घटना में महाराव के भाई जोधसिंह सहित राजपरिवार के अन्य सदस्यों की मृत्यु होने के बाद से बूंदी रियासत में गणगौर पर्व की आंट (बाधा) पड़ गई. उस ओक (आंट) का आज तक भी यहां निर्वहन करते हुए पूर्व राजपरिवार सार्वजनिक तौर पर गणगौर पर्व नहीं मनाता.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.