आगरा : राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने आगरा के रामसर साइट सूर सरोवर पक्षी विहार (कीठम) का ईको सेंसिटिव जोन शून्य घोषित करने के राज्य सरकार के प्रस्ताव को मंगलवार को नकार दिया. एनजीटी ने सवाल किया कि पक्षी विहार का ईको सेंसिटिव जोन शून्य कैसे घोषित किया जा सकता है? इसको लेकर एनजीटी ने राज्य सरकार को ईको सेंसिटिव जोन व बची 14 हेक्टेयर भूमि की अधिसूचना अगली सुनवाई 14 फरवरी से पूर्व जारी करके दोबारा एफीडेविट देने के निर्देश दिए हैं.
बता दें कि आगरा के पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ. शरद गुप्ता ने एनजीटी में एक याचिका दायर की थी. जिसमें रामसर साइट सूर सरोवर पक्षी विहार के ईको सेंसिटिव जोन कम करने की शिकायत की थी. इस मामले में पहले भी एनजीटी में सुनवाई हुई. मंगलवार को एनजीटी के न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल, न्यायमूर्ति ए. सेंथिल वेल एवं न्यायिक सदस्य डॉ. अफरोज अहमद की बेंच ने सूर सरोवर पक्षी विहार के क्षेत्रफल के निर्धारण की याचिका पर सुनवाई की. जिसमें राज्य सरकार की ओर से सूरदास रिजर्व फारेस्ट की 380.558 हेक्टेयर भूमि को सूर सरोवर पक्षी विहार का क्षेत्र घोषित करने के लिए 28 दिसंबर को की गई अधिसूचना व सूर सरोवर पक्षी विहार का ईको सेंसिटिव जोन शून्य घोषित करने का शपथ पत्र दाखिल किया था. जबकि, 403 हेक्टेयर भूमि की अधिसूचना पहले ही कर दी गई थी. ईको सेंसिटिव जोन शून्य होने पर इस क्षेत्र में निर्माण पर पाबंदी लागू नहीं होगी.
शाम को हुई सुनवाई : याचिकाकर्ता डॉ. शरद गुप्ता के अधिवक्ता ने 14 हेक्टेयर सरकारी भूमि की अधिसूचना नहीं किए जाने पर सवाल उठाए. जिस पर राज्य सरकार के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि डीएम के पास अधिसूचना करने को दो वर्ष का समय होता है. एनजीटी बेंच ने राज्य सरकार के अधिवक्ता के इस तर्क को नकार दिया. एनजीटी बेंच ने कहा कि शेष भूमि की अधिसूचना शीघ्र करें. वादी पक्ष की पक्षी विहार का ईको सेंसिटिव जोन शून्य घोषित करने की आपत्ति पर बेंच ने लंच के बाद दोबारा शाम चार बजे फिर सुनवाई की. जिस पर वादी पक्ष ने गोदावरन केस का हवाला किया.
दोबारा शपथपत्र दाखिल करने के निर्देश : डॉ. शरद गुप्ता की ओर से इस मामले की पैरवी अधिवक्ता अंशुल गुप्ता और आदित्य तेनगुरिया ने की. वादी पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पक्षी विहार के ईको सेंसिटिव जोन घोषित करने के संबंध में स्पष्ट निर्देश हैं. ये शून्य नहीं हो सकते हैं. इस पर एनजीटी बेंच के न्यायमूर्ति ए. सेंथिल वेल ने इस पर सहमति जताई. इस बारे में राज्य सरकार के अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश से अनभिज्ञता जताई. जिस पर ही एनजीटी बेंच ने राज्य सरकार को ईको सेंसिटिव जोन और 14 हेक्टेयर भूमि की अधिसूचना कर दोबारा शपथपत्र दाखिल करने के निर्देश दिए हैं.
799 से घटाकर 403 हेक्टेयर कर दिया था जंगल : वादी व पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ. शरद गुप्ता ने बताया कि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) ने सूर सरोवर पक्षी विहार के क्षेत्र निर्धारण को प्रारंभिक अधिसूचना 24 अप्रैल 2018 को की थी. जिसमें कीठम के सूर सरोवर पक्षी विहार का क्षेत्र 403 हेक्टेयर दर्शाया गया था. कीठम के सूर सरोवर पक्षी विहार का क्षेत्र 799 हेक्टेयर से घटाकर 403 हेक्टेयर कर दिया तो उन्होंने इसपर आपत्ति जताई थी. उनकी आपत्ति का संज्ञान लिए बगैर 10 अक्टूबर 2019 को अंतिम अधिसूचना कर दी गई थी.
डॉ. शरद गुप्ता ने इसके विरोध में 19 दिसंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की. सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल इम्पावर्ड कमेटी (सीईसी) की रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 2022 में सूर सरोवर पक्षी विहार के क्षेत्रफल का पुनर्निर्धारण करने की अधिसूचना करने का आदेश किया था. सीईसी ने रिपोर्ट में सूरदास रिजर्व फारेस्ट के 380.558 हेक्टेयर क्षेत्र एवं सरकारी भूमि के 15.514 हेक्टेयर क्षेत्र को पक्षी विहार में जोड़ने की सिफारिश की थी. इसका अनुपालन नहीं करने पर डॉ. शरद गुप्ता ने एनजीटी में अवमानना याचिका दायर की. राज्य सरकार ने बाद में 15.514 हेक्टेयर सरकारी भूमि को घटाकर लगभग 14 हेक्टेयर कर दिया था.
ईको सेंसिटिव जोंन शून्य का प्रस्ताव सही नहीं : वादी व पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ. शरद गुप्ता का कहना है कि सूर सरोवर पक्षी विहार को ईको सेंसिटिव जोन शून्य घोषित करने के राज्य सरकार का प्रस्ताव सही नहीं है. इस पर उन्होंने आपत्ति जताई है. इस प्रस्ताव से अधिकारी कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने का प्रयास कर रहे हैं. जिसे एनजीटी ने नकार दिया है.
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